: पश्चिम उत्तर प्रदेश का कुख्यात अपराधी माना जाता है डीपी यादव : जो जानते थे वे कतरा कर चले गये, और जो अनजान थे, उम्मीद की किरण बन गये : एक जुझारू मां की बात सुनिये जिसने अपने बेटे के हत्यारों को हमेशा के लिए जेल तक ठूंसने का संघर्ष किया :
निर्मल पाठक
नई दिल्ली: चौदह साल के लंबे संघर्ष के बाद वह कई लोगों के लिए उम्मीद की किरण बन गई हैं। अपने बेटे के हत्यारों को सजा दिलाने के लिए नीलम कटारा ने जो लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी, वह उनके जज्बे को तो बताती ही है, व्यवस्था के प्रति हमारी आस्था भी बढ़ाती है। नीतीश कटारा हत्याकांड में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ जाने के बाद जब नीलम कटारा अपने अगले सफर की तैयारी कर रही हैं, तो उनसे बातचीत की दैनिक हिन्दुस्तान के राजनीतिक संपादक निर्मल पाठक ने।
– नीतीश कटारा हत्याकांड के मामले में सुप्रीम कोर्ट का जो फैसला आया है, उसका असर कहां तक पड़ेगा?
फैसले के बाद मुझे ऐसे बहुत से लोगों की तरफ से भी प्रतिक्रियाएं मिली हैं, जिन्हें मैं जानती तक नहीं। यह केवल कानूनी लड़ाई की वजह से नहीं। लोगों के जीवन में कई तरह के संघर्ष हैं। लोग कई बार छोटे-छोटे मसलों पर भी परेशान हो जाते हैं। वे अब मुझसे बात करते हैं और कहते हैं कि कैसे मैंने उनका मनोबल बढ़ाया है, उन्हें प्रेरणा दी है। कुछ समय पहले एक रेस्तरां में एक पिता अपनी 12 वर्ष की बेटी को मेरे पास लाए और कहा कि यह आपसे मिलना चाहती थी। उस बच्ची ने बताया कि किस तरह वह इस केस में दिलचस्पी ले रही थी। ऐसे बहुत से किस्से हैं।
– जिस तरह के लोग इस मामले में शमिल थे, उसे देखते हुए इतनी लंबी लड़ाई लड़ना आसान नहीं था। कहां से ताकत मिली आपको?
पता नहीं…। दैवीय ताकत ही होगी कोई। मैंने तो कभी परेशानी देखी ही नहीं थी। बचपन में, स्कूल में, पढ़ाई से लेकर शादी होने और बच्चों के बडे़ होने तक कभी किसी दिक्कत का सामना करना ही नहीं पड़ा था। और अचानक एक दिन पूरी दुनिया ही बदल गई। मुझे लगता है कि मैंने जिस हाल में अपने बेटे (लाश) को देखा, वह क्षण था, जब मुझे लगा कि मैं अगर टूट गई, तो इस बच्चे को न्याय नहीं मिलेगा। जब वह घर से निकला था, तो एक शादी के समारोह में जाने के लिए पूरी तरह सज-धजकर निकला था। और यहां… मैं वहां गई थी शिनाख्त के लिए और मुझे आधा मिनट भी नहीं लगा पहचानने में। दृश्य देखकर मैं हिल गई थी, मेरे पांव कांपने लगे थे। लेकिन फिर मैंने सोचने में जरा भी देर नहीं की। वह खुद भी कहीं अन्याय होते देखता, तो परेशान हो जाता था। मैंने सोचा, उसके लिए लड़ना पड़ेगा। और फिर किसी दूसरे के बच्चे के साथ ऐसा न हो। मैं तो घर से बाहर के हर काम के लिए हमेशा अपने पति पर निर्भर रही। इसलिए मुझे लगता है कि भगवान ने ही मुझे शक्ति दी। पोस्टमार्टम, डीएनए टेस्ट वगैरह कानूनी औपचारिकताओं को लेकर मैं जिस तरह के सवाल कर रही थी, मेरे साथ वाले भी आश्चर्यचकित थे। मुझे ध्यान आया कि जेसिका लाल के प्रकरण में डीएनए से छेड़छाड़ की खबरें आई थीं। मैंने वहीं फैसला किया कि डीएनए टेस्ट गाजियाबाद में नहीं, दिल्ली में होगा।
– बेटे के साथ हादसा, फिर आपके पति नहीं रहे। 14 साल के संघर्ष में आपको कभी लगा कि अब हिम्मत जवाब दे रही है?
लगता था कभी-कभी। बहुत सारी दिक्कतें थीं। मैं खुद नौकरी कर रही थी। आर्थिक दिक्कतें थीं। केस लड़ने के लिए अच्छे वकील की जरूरत होती है और पैसा भी लगता है। इसलिए कभी-कभी लगता था कि बस हो गया। पर ऊपर वाला समस्याएं हल कर देता था। फिर एक स्टेज ऐसी आ गई थी, चार-पांच साल बाद, जब लगा कि अब छोड़ा, तो पिछली सब मेहनत बेकार चली जाएगी। भारती यादव को गवाही के लिए लाना सबसे थकाऊ प्रक्रिया साबित हुई। 30-40 आदेश हैं, ढेर सारी चिट्ठियां हैं। उसमें बहुत दौड़-भाग करनी पड़ी। उसको लाने में सफलता मिली, उससे भी आत्मविश्वास बढ़ा। तब तक मुझे यह फीडबैक मिलने लगा था कि जो मैं कर रही हूं, वह केवल एक कोर्ट केस नहीं है। मीडिया ने साथ दिया, जिससे मुझे लगा कि मैं अकेली नहीं हूं।
– आपके सामने आपराधिक बैकग्राउंड और राजनीतिक रसूख वाले लोग थे। कभी धमकियां मिलीं? डर लगा?
हां, धमकियां मिलीं। शुरू में तो मुझे आपराधिक बैकग्राउंड के बारे में इतना पता भी नहीं था। यह पता था कि नेता हैं और जैसी धारणा है नेताओं के बारे में कि भ्रष्ट होते हैं। बस उतना ही पता था। विकास यादव के बारे में जानकारी थी कि जेसिका लाल केस में शामिल है, पर उसके आपराधिक इतिहास के बारे में पता नहीं था। नीतीश ने कभी इस तरह से जिक्र नहीं किया था अपने और भारती के अफेयर के बारे में। जब डीपी यादव पर मकोका के तहत मामला दर्ज हुआ, तब मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ। तीन तरह के फोन और पत्र आते थे। कुछ मदद करना चाहते थे, पर सामने नहीं आना चाहते थे। दूसरे सीधे धमकी वाले होते थे कि आपको और आपके पति को बाइज्जत आपके बेटे के पास पहुंचा दिया जाएगा। और तीसरे होते थे, जो कहते थे कि हमने भी लड़ाई लड़ी, पर बर्बाद हो गए। ये सब अज्ञात थे, कोई खुलकर सामने नहीं आया, इसलिए मैंने भी ज्यादा तवज्जो नहीं दी।
– राजनीतिक दलों की ओर से किसी ने कभी मदद की पेशकश की?
नहीं। बिल्कुल नहीं। जिनको मैं व्यक्तिगत तौर पर जानती थी, जैसे कांग्रेस की नेता मोहसिना किदवई। उनकी बेटी और मैं साथ पढ़े थे लखनऊ में। इस नाते वह जानती थीं। नीतीश की तेरहवीं में वह आई थीं। ऐसे ही कुछ और भी थे, पर वह केवल मिलने तक सीमित था। एक और नेता, जो उस समय भाजपा सरकार में महत्वपूर्ण मंत्री थे, उनके सबसे नजदीकी सहायक को मैं जानती थी। उन्हें जरूर मैंने फोन किया। वह मिलने भी आए, लेकिन जो सलाह उन्होंने दी, उससे मुझे बड़ी हैरत हुई। उन्होंने कहा, आप मीडिया के चक्कर में ज्यादा न पड़ें, इससे आप परेशानी में भी आ सकती हैं। अब मैं ईश्वर को धन्यवाद देती हूं कि मैंने उनकी सलाह नहीं मानी, वरना यह केस तो आगे बढ़ता ही नहीं।
– इस दौरान कभी विकास यादव, विशाल यादव या डीपी यादव से कहीं आमना-सामना हुआ?
उस तरह से तो नहीं, पर कोर्ट में तो वे रहते ही थे। डीपी यादव ट्रायल के दौर में नहीं आते थे। जब भारती आई, तब आए। बाद में, जब हाईकोर्ट में मामला चल रहा था, तब भारती आती थी। आखिरी बार जिस दिन फैसला आया, उस दिन सुप्रीम कोर्ट में मुझे उस परिवार से कोई नहीं दिखा। ट्रायल कोर्ट तक काफी लोग आते थे। पांच-सात को तो रोज देखते-देखते मैं पहचानने लगी थी। शुरुआत में अजीब लगता था, पर बाद में मैं नजरअंदाज करने लगी।
– भारती यादव के व्यवहार ने आपको निराश किया?
मुझे भारती से ज्यादा अपने बेटे नीतीश से निराशा हुई कि उसने ऐसी लड़की चुनी। मुझे ऐसा लगता है कि उस रात, जब नीतीश की हत्या हुई, वह चाहता तो भारती के भाइयों को झूठ बोलकर बच सकता था। लेकिन उसने भारती से संबंधों को स्वीकार किया होगा और तब उनकी बात बढ़ी होगी। मुझे देश की ऐसी बेटियों से शिकायत है, जो संपन्न घरों से हैं, अच्छे स्कूल-कॉलेज से पढ़ी हैं, अपने पैरों पर खडे़ होने में सक्षम हैं, बावजूद इसके सच बोलने की हिम्मत नहीं करतीं। मुझे उसका बुरा लगा। भारती को तो पता था उसका परिवार कैसा है? नीतीश का तो तर्क होता था कि इसमें भारती की क्या गलती? वह तो वहां से निकलना चाहती है। वह अपने नाम के आगे यादव नहीं लगाती। भारती सिंह लिखती है। अपने भविष्य के लिए वह कुछ भी करती, पर नीतीश और अपने संबंधों के बारे में सच तो बोल सकती थी। आखिर उसकी वजह से नीतीश की जान गई थी।
– आप खुद अच्छे घर से हैं, कॉन्वेंट से पढ़ी हैं। आपके पति प्रशासकीय सेवा में रहे। क्या इस वजह से आपको कोई मदद मिली?
शिक्षा बहुत बड़ा कारण है। मुझे घर या स्कूल में जो शिक्षा मिली, उसने मुझे हमेशा सवाल पूछने के लिए प्रेरित किया। मैं चाहे कोर्ट में वकील हों या जानने वाले, उनसे सवाल पूछती रहती थी। मुझमें यह आत्मविश्वास था, जो हर व्यक्ति में नहीं होता। कोर्ट में ऐसे लोग मिलते थे, जिन्हें अपने केस के बारे में उतनी ही जानकारी होती थी, जितना उनके वकील बताते थे। दूसरा कारण डीपी यादव की वजह से इस केस में मीडिया की दिलचस्पी बनी हुई थी। राजनीति और अपराध का घालमेल होना। आम आदमी अपराधी किस्म के नेताओं से घृणा करता है। मीडिया को शायद नीतीश से कुछ सहानुभूति भी थी.. फिर धीरे-धीरे मीडिया के लोगों से मेरी भी अच्छी बनने लगी थी। ज्यादातर उनमें नीतीश के ही उम्र वाले थे और घर पर उनका आना-जाना लगा रहता था। पर प्रशासनिक तौर पर मदद मिली हो, ऐसा मुझे नहीं लगता। थोड़ी-बहुत जान-पहचान के चलते कहीं सहूलियत हुई होगी, पर वह ऐसी नहीं।
– आपने कहा है कि अब आप ऑनर किलिंग के खिलाफ अभियान में जुड़ना चाहेंगी। किस तरह से करेंगी?
बहुत से सुझाव हैं, पर अभी अंतिम रूप से कुछ तय नहीं है। मुझे लगता है कि इस पर रोक के लिए सख्त कानून की जरूरत है। और जिस तरह का बहुमत इस समय सरकार के पास है, उसमें यह हो सकता है। स्वयंसेवी संगठन सेमिनार वगैरह करते रहते हैं और उनमें मुझे बुलाया जाता है, तो मैं इस मसले को उठाना चाहूंगी और चाहूंगी कि मीडिया भी इसमें साथ दे। अगर इस विषय पर कुछ कर पाई, तो यह इस केस की बहुत बड़ी उपलब्धि होगी। अपनी तरफ से मैं पूरी कोशिश करूंगी।
– आपको नहीं लगता कि ऑनर किलिंग के साथ यह मामला धनबल, बाहुबल के अहंकार का भी था?
बिल्कुल था…। मैं राजनीति के अपराधीकरण के खिलाफ भी लड़ना चाहूंगी। पर एक समय में एक ही मुद्दा लूं, तो बेहतर है। आप देखिए, केंद्रीय मंत्रिमंडल में बलात्कार का एक आरोपी पूरे दो साल रहा। कोई कुछ नहीं कर पाया। क्या इतना समय सुबूतों को नष्ट करने के लिए पर्याप्त नहीं होगा? यह गलत है कि जब तक अपराध साबित न हो जाए, तब तक अपराधी नहीं मान सकते। विधायक, सांसद जैसे पदों पर बैठे लोगों के ऊपर तो इस तरह के गंभीर आरोप लगना ही इस्तीफे के लिए पर्याप्त कारण होना चाहिए। अगर ऐसे लोग एक चुनाव नहीं लडे़गे, तो क्या हो जाएगा? विकास या विशाल यादव को भी यही लगता होगा कि उनके पिता के खिलाफ कई मुकदमे होने के बावजूद वह सांसद बन सकते हैं, तो अपराध करने से उनका क्या बिगड़ जाएगा? उनकी पूरी भाव-भंगिमा में यह अहंकार झलकता रहा है। मैं अब भी आश्वस्त नहीं हूं कि यह कौन सुनिश्चित करेगा कि जितने साल तक उन्हें जेल में रखे जाने की सजा हुई है, उतने साल वे रहेंगे। इस बात की क्या गारंटी है कि किसी दिन किसी सार्वजनिक जगह पर वे लोग मेरे बगल में खड़े नहीं मिलेंगे?
– इस केस के चलते पिछले 14 साल में आपकी रोजमर्रा की जिंदगी में किस तरह के बदलाव आए?
अच्छी-खासी नौकरी कर रही थी। केंद्रीय विद्यालय संगठन में एजुकेशन ऑफिसर के तौर पर मेरा प्रोमोशन भी हो चुका था। और अचानक बैकफुट पर आ गए। अदालतों की तारीखें, और दौड़-भाग वगैरह। ऑफिस में लोग अच्छे थे, लेकिन वहां भी काम तो करना ही था। यह एक और अहम मसला है कि आम आदमी कोर्ट में क्यों नहीं लड़ पाता? तारीख के लिए आप छुट्टी लेते हैं और पता चलता है कि उस दिन सुनवाई हुई ही नहीं। दूसरे दिन आधे दिन की छुट्टी ली, तो पता चला कि सुनवाई दोपहर बाद होगी। पारिवारिक, सामाजिक कार्यक्रम तो बिल्कुल ही बंद हो गए। टीचर ट्रेनिंग का मुझे जुनून था। अब मैं वापस जाना भी चाहूं, तो नहीं जा पाऊंगी।
साभार: हिन्दुस्तान