लखनऊ में भी हैं मीटू वाले एमजे अकबर के कई नाती-पोते

बिटिया खबर
: इश्‍क ने यह भी नहीं सोचा कि हुस्‍न को कुछ आता भी है या नहीं : अब तो सतह पर आता जा रहा है मोहब्‍बत पर जां-निसार करने पर आमादा संपादक का इश्‍क : चर्चाएं सम्‍पादक के कमरे से बाहर गलियारे और केबिनों से भी बाहर सड़क पर भी छलकने लगीं :

कुमार सौवीर
लखनऊ : एक संपादक जी हैं लखनऊ में। संपादक से उप्‍पर, लेकिन बड़े सम्‍पादक से निच्‍चे तल्‍ले पर ओहदा है उनका। लेकिन उनकी हरकतें अब खुद सैंडविच के मसाले के बजाय, बाकी पत्रकारों को सैंडविच बना देने पर आमादा हैं। वजह है उनका मर्ज, जिसे आम बोलचाल में इश्‍क, मोहब्‍बत, लव, प्‍यार आदि शब्‍दों से व्‍याख्‍यायित किया जा सकता है। लेकिन उनकी यह बीमारी बाकी अधीनस्‍थों के बीच न केवल चर्चा-ए-आम होती जा रही हैं, बल्कि अब तो उपहास की सीमा भी पार होती जा रही हैं।
नहीं, नहीं। अभी इन सम्‍पादक जी का काम नहीं लगा है, लेकिन हालात यही हैं कि बहुत जल्‍दी ही अब यह संपादक जी मीटू-लिस्‍ट में दर्ज हो जाएंगे। जैसे एमजे अकबर। अरे वही अकबर, जो देश के बड़े पत्रकार रह चुके हैं, और दुनिया की करीब एक दर्जन महिलाओं ने उन पर आरोप लगाया है कि उनके साथ अकबर ने कुकर्म किया था, और जब अकबर ने उस पर ऐतराज करते हुए मुकदमा दर्ज किया तो वे खुद को पाक-साफ करार देते हुए खुद को अल्‍लाह-ओ-अकबर बोल गये। लेकिन इसके बावजूद उनकी कुर्सी केंद्र सरकार में बच नहीं पायी और अजीत डोभाल के हस्‍तक्षेप के बाद अकबर ने केंद्रीय मंत्री के अपने पद से इस्‍तीफा दे दिया है। तो इस समय अकबर साहब कुछ उन महिलाओं में अपने पक्ष में बयान दिलाने की जुगत में फुल-टाइम जुट गये हैं।
लेकिन यहां हम अकबर जैसे घोषित मीटू की नहीं, बल्कि भविष्‍य में कभी भी भड़क सकने वाले मीटू के शिकारों पर चर्चा कर रहा हूं। ऐसे अकबर के कई पोते-नाती इस समय लखनऊ में पत्रकारिता के विभिन्‍न संस्‍थानों के विभिन्‍न पदों पर जहां-तहां अपना मुंह मारते दिख जा सकते हैं। जी हां, यह लोग इस समय पत्रकारिता का तियां-पांचा करने पर आमादा हैं। इनमें से ही एक हैं एक बड़े पत्रकार, जो इस समय में लखनऊ के एक बड़े अखबार में एकाधिक महिलाओं के साथ इंडल्‍ज हैं, और पूरी उम्‍मीद-नुमा आशंका है कि वे बहुत जल्‍दी ही मीटू का स्‍वादिष्‍ट भोज्‍य-पदार्थ बन जाएंगे।
तो साहब, इन संपादक जी उन पर इश्‍क का भूत नहीं, अब सीधे जिन्‍न-जिन्‍नात तक चढ़ गया है। इश्‍क-मिजाजी तो उनकी तब ही परवार चढ़ने लगी थी, जब वे पत्रकरिता की नौकरी झटक गये थे। लेकिन ज्‍यों-ज्‍यों उनकी पदोन्‍नति होने लगी, उन में मोहब्‍बत का सुरूर तेज हो गया। इस समय तो वे बेशर्मी पर आमादा हैं। भविष्‍य की मीटू वाली एक नयी शिकारी के तौर पर उन्‍होंने एक नया बढि़या रास्‍ता खोज लिया है। कारण यह कि उसे न तो रिपोर्टिंग की तमीज है, और न ही संपादन की सहालियत। केवल अदा-स्‍टाइल के बल पर उस ने इन सम्‍पादक को फांस रखा है। जानकार बताते हैं कि उसने इस सम्‍पादक की कमजोर नस दबोच रखी है।
ऐसे में संपादक की मजबूरी है कि वे उसके हिसाब से पूरा काम करें। अन्‍यथा न जाने कब वह उस संपादक की नस दबोच कर उसे एमजे अकबर की श्रेणी में ला खड़ा कर दे, इसका कोई भरोसा नहीं। दोनों ही अपनी अपनी कोशिशें में जुटी हैं। तुम मुझे संतुष्‍ट करो, मैं तुम्‍हें संतुष्‍ट करूंगा। वरना तुम तो अपना नाम जग जाहिर कर ही दूंगी, लेकिन तुम तो बर्बाद ही हो जाओगी।
भास्‍कर वाले समूह-सम्‍पादक कल्‍पेश याज्ञनिक का नाम तो तुमने तो सुना ही होगा न।

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