: दारू की खाली बोतल पर संज्ञान ले रहा हो उप-मुख्यमंत्री, तो समझो सत्यानाश : कई पीएचसी पर डॉक्टर तो दूर, फार्मासिस्ट तक नहीं : गोरखपुर मेडिकल कालेज जैसे हादसे रोकने के बजाय मजाक में जुटे हैं डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक : कहां एक डिप्टी सीएम, और कहां एक डीएम :
कुमार सौवीर
लखनऊ : समझ में ही नहीं आ रहा है कि पिछली योगी सरकार में अस्पतालों की व्यवस्था बेहतर थी, या इस योगी-सरकार में। दरअसल, यूपी के नवेले डिप्टी सीएम आजकल अपना नाम और चेहरा छपवाने की कवायद में हैं। हालत यह है कि पिछले 30 बरस से लगातार सक्रिय में राजनीति में गोते लगाने वाला शख्स अब अस्पतालों में अपने मुंह पर मास्क लगा कर मरीजों की लाइन में खड़ा होकर अपनी वाहवाही जुटा रहा है। कहने को तो इस कवायद को औचक निरीक्षण दिया जा रहा है, लेकिन सच बात तो यह है कि अस्पतालों को सुधारने की कोशिश करने के बजाय हमारे यूपी के डिप्टी सीएम साहब किसी न किसी चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी को फटकार रहे हैं, या फिर किसी अस्पताल की इमर्जेंसी के किसी कूड़े में पड़ा शराब की खाली बोतल टटोल कर उसका संज्ञान ले रहे हैं। कहने की जरूरत नहीं कि दारू की खाली बोतल को उठाने का काम या तो अस्पताल के सफाईकर्मचारी का होता है या फिर किसी कबाड़ीवाले का। किसी भी मीडियाकर्मी को यह सवाल कुरेद नहीं रहा है। अखबारवाले भी शराब की खाली बोतल को लेकर बड़ा हौवा खड़ा किये बैठे हैं।
बहरहाल, यह तो है हालत यूपी की। ऐसा ही जमीनी स्तर पर काम कर रही हैं राजस्थान में बूंदी जिले की डीएम साहब। यानी समझ ही नहीं आ रहा है कि यूपी और राजस्थान में एक ही चल रहा कोई काम बेहतर हो रहा है या फिर केवल छपास रोग से ग्रसित। कोई चार बरस पहले मुख्यमंत्री योगी के गृह-जनपद गोरखपुर के मेडिकल कालेज में दर्जनों बच्चों की दर्दनाक मौत ऑक्सीजन न हो पाने के चलते हो गयी थी। लेकिन तब से अब तक सरकारी अस्पतालों की हालत यह है कि कुछ दिन पहले ही बलिया में एक गरीब आदमी को अपनी पत्नी अपने ठेले पर अस्पताल तक ले जाना पड़ा, लेकिन विलम्ब हो जाने के चलते उस महिला की मौत हो गयी। उसी जिले में सरकारी अस्पताल में भर्ती मरीजों को दिये जाने वाले सरकारी दूध की सप्लाई ढाई महीना एक्सपायरी दे दी गयी। पूरे जिले में भ्रूण हत्या के लिए अल्ट्रासाउंड मशीनों का मेला लगा है। झोलाछाप डॉक्टरों की बाढ़ है। राजधानी लखनऊ में एक निजी मेडिकल कालेज ने वार्षिक जांच को आयी टीम को मरीजों की भीड़ दिखाने के लिए पांच सौ से ज्यादा लोगों को फर्जी तरीके से बेड पर भर्ती दिखा दिया। सच बात तो यह है कि यूपी के अस्पतालों की असलियत किसी से भी छिपी नहीं है। सीएमओ और सीएमएस केवल उगाही में जुटे हैं। लेकिन सड़ांध मार रहे मेडिकल सिस्टम और उसके चलते मौत की कगार तक पहुंचते जा रहे आम आदमी को दिक्कतों को सुलझाने के बजाय हमारे डिप्टी सीएम साहब इमर्जेंसी के बाहर पड़ी दारू की खाली बोतल को संज्ञान लेकर उसकी जांच का आदेश दे रहे हैं। आम आदमी कराह रहा है, मौत उसको चबाने में जुटी है, वह संज्ञान ले रहे हैं दारू की बोतल की मौजूदगी पर। कोई तीमारदार या उसके साथ आये लोग अगर रात को शराब पीकर इमर्जेंसी के बाहर दारू की बोतल फेंक दे आयें, तो उसमें अस्पताल प्रशासन का क्या दोष।
तो यह हालत है कि यूपी की, जहां का डिप्टी सीएम लखनऊ के अस्पताल में अपना चेहरा छुपा कर मरीजों का पर्चा कटवाने वाले दो-चार लोगों की भीड़ से बातचीत कर रहा है, जबकि वह पिछले तीस साल से राजनीति में सक्रिय है और विभिन्न दलों वाले घाट-घाट का पानी पी कर अब डिप्टी सीएम बन कर अस्पतालों को बदल देने के लिए सिस्टम नहीं, बल्कि आम आदमी को दी गयी पैरासीटामॉल गोली को चेक कर रहा है। जबकि जो कर रहे हैं यूपी में डिप्टी सीएम, राजस्थान में डीएम-एडीएम करते हैं। आपको बता दें कि राजस्थान के बूंदी जिले के एक चिकित्सालय बूंदी में कलेक्टर रेणु जयपाल और अतिरिक्त जिला कलेक्टर एयू खान औचक निरीक्षण करने पहुंचे। निरीक्षण के दौरान मिली खामियों पर कड़ी नाराजगी जताते हुए चिकित्सा अधिकारियों को फटकार लगाई। वहीं, खामियों पर नाराजगी जताते हुए बाहर की दवाई लिखने पर एक चिकित्सक और दवा काउंटर पर तैनात कर्मचारियों द्वारा दवा नहीं देने पर इनके खिलाफ कार्रवाई करने के प्रमुख चिकित्साधिकारी को निर्देश दिए। निर्देश में कहा कि डॉक्टर्स की मीटिंग लेकर बाहर की दवा नहीं लिखने के लिए पाबंद किया जाए।
कलेक्टर ने आउटडोर में मरीजों से अस्पताल में मिलने वाली दवा और जांच के बारे में जानकारी ली. इस पर मरीजों ने बाहर से जांच कराने और दवाईयां बाहर से मंगाने की शिकायत की तो कलेक्टर ने नाराजगी जताई. वहीं, एक मरीज द्वारा तीन नंबर काउंटर से दवाईयां नहीं मिलने की शिकायत की। कलेक्टर ने काउंटर पर दवाईयां नहीं देने के बारे में पूछा तो काउंटर पर बैठी महिला कर्मचारी ने कहा कि यह दवाईयां यहां उपलब्ध नहीं है, इस पर कलेक्टर ने दवाईयां नहीं होने का कारण पूछा तो कर्मचारी ने कहा कि चिकित्सक ने जो दवाईयां लिखी है वह उपलब्ध नहीं है. इस पर कलेक्टर ने दवा काउंटर पर तैनात महिला कर्मचारी सहित अन्य कर्मचारी के खिलाफ कार्रवाई करने और अस्पताल में उपलब्ध दवा के बजाए बाहर की दवाईयां लिखने वाले चिकित्सक के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए प्रमुख चिकित्सा अधिकारी को निर्देश दिए. कलेक्टर ने जनाना अस्पताल के बाहर खड़े होने वाले दोपहियां वाहन पर भी नाराजगी जताई और उपयुक्त व्यवस्था के निर्देश दिए.
कलेक्टर ने अस्पताल के निःशुल्क जांच केंद्र का भी निरीक्षण किया. निरीक्षण के दौरान मरीजों से उन्होंने अस्पताल में मिल रहे इलाज के बारे में जानकारी ली. उन्होंने कहा कि अस्पताल में उपलब्ध सभी दवाईयां मरीजों को मिलें, इसमें किसी प्रकार की कौताही नहीं बरती जाए. साथ हीं, अस्पताल में होने वाली सभी प्रकार की जांच कर मरीजों को राहत पहुंचाई जाएं.