: लखनऊ के गोमतीनगर थाना के हवालात में हुए इस हादसे को पांच महीनों तक दबाये रखा पुलिस ने : दो जुलाई-20 की रात हुई मौत को आत्महत्या साबित करते रहे पुलिस अफसर : एपल के विवेक तिवारी हत्याकांड के बाद राजधानी का हौलनाक हादसा :
कुमार सौवीर
लखनऊ : करीब 26 महीना पहले राजधानी के गोमतीनगर इलाके में एपल कम्पनी के रीजनल मैनेजर विवेक तिवारी हत्याकांड में जिस तरह हत्यारे सिपाही को पूरा पुलिस महकमा एकजुट हो गया था, लगभग उसी तर्ज पर पिछले दिनों एक डीआईजी को बचाने के लिए लखनऊ पुलिस ने सारी कवायदें बुन डालीं। खबर है कि गोमतीनगर विस्तार थाना में घुस कर पुलिस के इस पूर्व बड़े अफसर ने इस युवक को पीट-पीट कर मौत के घाट उतार डाला। शुरुआती दौर में इस मामले को दबाने के लिए एक दारोगा समेत पांच पुलिसकर्मियों को निलम्बित कर दिया गया था। तब पुलिस का दावा था कि उस युवक ने हवालात में अपना सिर दे मारा था और उसके बाद बेल्ट से फांसी लगा दी थी। लेकिन अब पूरा मामला शीशे की तरह साफ हो जाने के बाद लखनऊ पुलिस अपनी पूंछ बचाने के लिए जीतोड़ कोशिश में जुटी है। खबर है कि इस मामले की न्यायिक जांच के साथ ही साथ आरोपित पूर्व डीआईजी के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की कोशिश चल रही है।
थाने में घुस कर किसी व्यक्ति की हत्या का यह मामला अपने आप में अभूतपूर्व और बेहद चौंकाने वाला है। खास तौर पर तब, जबकि इस घटना में डीआईजी स्तर के एक अधिकारी का नाम सीधे-सीधे तौर पर हत्यारे के तौर पर जुड़ गया है। हैरत की बात तो यह है कि यह हत्या उस ने जिस इलाके में गोली मार कर मौत के घाट उतार दिया था, ठीक उसी इलाके में ही इस पूर्व डीआईजी ने थाने में घुस कर हवालात में बंद एक युवक को इतनी बुरी तरह पीटा कि उसकी मौत हो गयी। इस पूर्व डीआईजी का नाम उदयशंकर जायसवाल बताया जाता है।
आपको बता दें कि गोमतीनगर के खरगापुर क्षेत्र में डीआईजी उदयशंकर जायसवाल का मकान बनवा रहा था। दो जुलाई की रात ढाई बजे उदयशंकर और उसका नौकर राजकुमार ने मुकेश नामक एक युवक को पकड़ा था और सुबह करीब छह बजे उसे गश्ती पुलिस के हवाले कर दिया। सुबह आठ बजे के आसपास जब पुलिस ने मुकेश से पूछतांछ करने के लिए हवालात से निकाला गया, तो पता चला कि मुकेश मर चुका है। पुलिस ने बयान दिया कि हवालात में बंद मुकेश ने अपना सिर दीवार से चोटहिल कर दिया और बाद में अपने पैंट की बेल्ट से फांसी लगा ली। इस घटना के बाद लखनऊ के पुलिस आयुक्त सुजीत पांडेय ने थाने के सेकेंड अफसर और चार अन्य पुलिस सिपाहियों को सस्पेंड कर दिया था। जाहिर है कि मामला रफा-दफा हो गया।
लेकिन इस घटना के चार महीनों बाद मृतक मुकेश के भाई ने दौड़भाग की तो मामले का भंडाफोड़ हो गया। पता चला कि मुकेश ने आत्महत्या नहीं की थी, बल्कि किसी वहशी की तरह उसे पीट-पीट कर मौत के घाट उतार दिया गया था। पता यह भी चला कि डीआईजी उदयशंकर जायसवाल ने पुलिस को हवाले करने के पहले मुकेश को जमकर पीटा भी था। उस पर आरोप लगाया था कि वह निर्माणाधीन में चोरी करने की नीयत से घुसा था, जहां रात करीब ढाई बजे राजकुमार ने उसे दबोचा था। लेकिन मुकेश क्या चोरी करने गया था, इसका ब्योरा अब तक सार्वजनिक नहीं किया गया। लेकिन करीब सुबह छह बजे तक मुकेश की लगातार पिटाई होती ही रहे।
बताते हैं कि मारपीट के बाद मुकेश को गश्ती पुलिस के हवाले कर दिया गया। मगर अभी यह गश्ती पुलिसवाले थाने तक पहुंचे ही थे कि उदयशंकर और उसका नौकर थाना पर पहुंच गये। बताते हैं कि रिटायर होने के बावजूद उदयशंकर नीली बत्ती लगाये कार में आया था और थाने पर मौजूद पुलिसवालों को अर्दब में लेने के बाद सीधे हवालात में घुसा और मुकेश को काफी देर तक पीटता रहा। हैरत की बात है कि हवालात में बंद इस युवक की बुरी तरह पिटाई होती रही, लेकिन थाने में मौजूद किसी भी पुलिसवाले ने कोई भी हस्तक्षेप नहीं किया। एक सूत्र का तो यहां तक कहना है कि उस दौरान पहरा और एक अन्य पुलिस मुंशी के अलावा थाने में कोई मौजूद ही नही था। बाकी लोग कहां थे, इसका खुलासा अब तक नहीं हो पाया है।
उधर विश्वस्त सूत्र बताते हैं कि इस मामले को रफा-दफा करने के लिए पुलिस ने जान-बूझ कर ही आत्महत्या की कहानी बुनी थी कि मुकेश ने हवालात की दीवार पर अपना सिर फोड़ लिया था और लहूलुहान हालत में ही अपनी ही पैंट की बेल्ट से फांसी लगा कर अपनी इहलीला खत्म कर दी थी। लेकिन सूत्र बताते हैं कि यह कहानी सिरे से ही पूरी तरह झूठी, निराधार और साजिश भरी हुई थी। सच बात तो यही थी कि उमेश हवालात में फंदे से लटका हुआ नहीं पाया हुआ था, बल्कि सच बात तो यही थी कि उसकी लाश बैठे हुए ही मिली थी। पुलिस सूत्रों का कहना है कि हवालात में उमेश बैठा था और उसकी गर्दन में बेल्ट कसी हुई थी। परिजनों का कहना है कि पिटाई से मौत के बाद खुदकुशी दिखाने के लिए ही पुलिस ने उसकी गर्दन में बेल्ट कस दी होगी।
कुछ भी हो, मुकेश की इस नृशंस हत्या ने लखनऊ पुलिस की अमानवीयता और पाशविकता को जग-जाहिर तो कर ही दिया है। यह भी साबित कर दिया है कि हत्या जैसे निर्मम हत्यारे बन चुके पुलिसवालों को बचाने के लिए पुलिस न सिर्फ साजिशों का अम्बार खड़ा कर सकती है, बल्कि एकजुट होकर हत्यारों के पक्ष में जोरदार पैरवी भी कर सकती है। आपको बता दें कि करीब 26 महीना पहले 29 सितम्बर -18 को प्रशांत चौधरी और उसके एक साथी सिपाही ने जिस तरह इसी गोमतीनगर विस्तार क्षेत्र में देर रात एपल कम्पनी के रीजनल मैनेजर को सीधे माथे पर गोली मार कर हत्या कर दी थी, उस हत्याकांड में भी हत्यारे पुलिसवालों की पैरवी के लिए तब के डीजीपी ओपी सिंह और लखनऊ के डीएम कौशलराज शर्मा व एसएसपी ने सारे घोड़े खोल दिये थे। इतना ही नहीं, इन आला अफसरों को शासन में बैठे अफसरों ने भी खूब प्रश्रय दिया था।
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