मल्‍हनी सीट: लुच्‍चई जीत गयी बाहुबली को धूल चटा कर

दोलत्ती

: भाजपा प्रत्‍याशी पर पुष्‍पवर्षा नहीं किया देवताओं ने : पानी की तरह बहाया धनंजय और लकी यादव ने खजाना : कांग्रेस और बसपा गहरे में धंसे दिखे, भाजपा औकात में : यादवों को सिर्फ यादव नेता चाहिए, हर कीमत पर :

कुमार सौवीर

लखनऊ : यूपी विधानसभा के उप चुनाव में आज आये नतीजों ने सबसे ज्‍यादा हैरतनाक इशारा किया है। मतदाताओं ने साफ कह दिया है कि जौनपुर की जनता को अब साफ-सुधरी राजनीति कत्‍तई नहीं चाहिए। बल्कि मतदाता चाहते हैं कि उनकी नुमाइंदगी या तो बाहुबली करे या फिर लुच्‍चा। और अपने इस पहले प्रयास में मतदाताओं ने लुच्‍चई की राजनीति को अंगीकार कर अपनी मंशा पर मोहर लगा दी है। कुछ भी हो, इस चुनाव ने भाजपा को कड़ी चुनौती तो दे डाली है।

अब तक मिली खबर के मुताबिक इस चुनाव में समाजवादी पार्टी के लकी यादव को 73, 384 वोट मिले हैं, जबकि धनंजय सिंह को 68, 780 वोट हासिल हुए। भाजपा के बड़े-बड़े दिग्‍गजों ने जौनपुर में मनोज सिंह के पक्ष में जोरदार अभियान छेड़ा, लेकिन भाजपा के यह सारे नेता आज जौनपुर में करीब 28, 781 वोट पा कर अपना ही अंगूठा चूस रहे हैं। बसपा के जय प्रकाश दुबे को न तो दलितों ने भाव दिया, और न ही ब्राह्मणों ने। उनको महज 25, 120 वोट मिले हैं। कांग्रेस किस बिल में है, पता ही नहीं चल पा रहा है।

जौनपुर का इतिहास नैतिक राजनीतिज्ञों के नाम से भरा पड़ा है। सन-60 के लोकसभा चुनाव में विद्यापीठ के कुलपति आचार्य बीरबल सिंह को हराया था यहां के स्‍थानीय वकील वकील चंद्रजीत सिंह ने। बावजूद इसके कि चंद्रजीत सिंह को राजा जौनपुर का प्रश्रय था, लेकिन चंद्रजीत का कार्यकाल निर्विवाद रहा। चंद्रजीत सिंह की मृत्‍यु के बाद सन-62 में जनसंघ की ओर से दीनदयाल उपाध्‍याय चुनाव लड़े, लेकिन कांग्रेस के राजदेव सिंह ने उन पर 60 हजार वोटों से जीत दर्ज की। जौनपुर के केसरी पांडेय उन महानतम नेताओं में थे, जो हमेशा नैतिकता के पक्षधर रहे। अहमदपुर वाले बाबू हरगोविंद सिंह की छवि एक दबंग नेता की थी, लेकिन कभी भी उन पर कोई दाग नहीं पड़ा। यही वजह थी कि जननेता न होने के बावजूद वे यूपी सरकार में हमेशा कैबिनेट मंत्री रहे। नैतिकता के मामले में यही हालत उनके दाहिना हाथ रहे रामलगन सिंह जिलापंचायत अध्‍यक्ष का भी रहा।

मगर उसके बाद से जौनपुर की फिजा और हवा विषैली होने लगी। राजनीति में जातीयता, धर्म और माफियावाद का श्रीगणेश किया पारसनाथ यादव ने, और नतीजा यह हुआ कि पारसनाथ यादव सपा सरकारों में कैबिनेट बनने लगे और बाद में सांसद भी बने। पारसनाथ ने अपनी राजनीति में‍ किसी भी मूल्‍य को नहीं अपनाया। उनका मकसद केवल जीतना ही था, इसलिए वे हर उस इश्‍क और मुश्‍क को गले लगा लेते थे, जो उनका जिता सके। चाहे वह मुख्‍तार अंसारी रहे हों, या फिर अभय सिंह अथवा कोई अन्‍य। सन-04 के चुनाव में पारसनाथ ने मुख्‍तार अंसारी और अभय सिंह के साथ बाकायदा कई दिनों तक रोड-शो तक आयोजित किया था। पारस को लगता था कि जौनपुर उनकी सल्‍तनत है, इसलिए वे अपनी रियाया की जमीन हड़पने का पुश्‍तैनी हक रखते थे और अपने राजकुमार लकी यादव को भी उच्छृंखल राजकुमार की तरह प्रश्रय देते रहे।

नतीजा यह हुआ कि लकी यादव कभी ट्रक चालक को सरेआम पीट देता था, तो कभी किसी नर्तकी की नथनिया वाला गीत पर निशाना लगाते हुए गोली दाग देता था। मगर जब जौनपुर के लोगों को भी इस पर कोई ऐतराज नहीं था, तो क्‍या फर्क पड़ता। प्रशासन और पुलिस के अफसर पारसनाथ यादव और लकी यादव के सामने हाथ जोड़े खड़े रहते थे।

21 अगस्‍त-16 को इसी भस्‍मासुरी लकी और उसके नाजायज गनर ने एक पत्रकार को भरी बाजार में डण्‍डों से पीट दिया। यह मामला जौनपुर के मडि़याहूं-जौनपुर मार्ग के पास पाली बाजार के पास हुआ। वक्‍त था शाम करीब चार बजे का। फ्लाईओवर के निर्माण की प्रक्रिया के चलते इस बाजार में जाम लगा हुआ था। अचानक तेज सायरन बजाती एक स्‍कार्पियो कार ने पहले तो जाम में फंसे बेबस-निरीह नागरिकों को गालियां दीं, फिर पारसनाथ यादव के बेटे लक्‍की यादव और उसके नाजायज गनर ने डण्‍डा लेकर जाम में फंसे लोगों पर लाठियां बरसाना शुरू कर दिया।

इसी बीच अपनी मोटरसायकिल सवार एक पत्रकार ब्रजराज चौरसिया भी इस जाम में फंसे हुए थे। वे मडि़याहूं से जौनपुर जा रहे थे। गुण्‍डागर्दी पर आमादा लक्‍की यादव लगातार भद्दी गालियां बरसा रहा था नागरिकों पर। लक्‍की की शह पर उसके गनर ने ब्रजराज पर भी लाठियां बरसा दीं। ब्रजराज बताते ही रह गये कि वह पत्रकार हैं, लेकिन मदहोश गनर ने पत्रकार ब्रजराज पर कई लाठियां बरसा दीं, और मोटरसायकिल का शीशा, हैलमेट और टंकी तोड़ दी। यह अभद्रता और हमला देख कर ब्रजराज ने लक्‍की यादव से शिकायत की, तो लक्‍की ने ब्रजराज को भी गालियां देते हुए कहा कि:- साले मादर—– जनता सिर्फ गाली और लाठी की भी भाषा समझती है।

ब्रजराज ने लौट कर पत्रकारों को पूरी दास्‍तान बतायी और पुलिस व प्रशासन के बड़े अफसरों को लिखित अर्जी भेजी। खबर है कि यह अर्जी तो इन अफसरों ने ले लिया, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की। हालांकि कई पत्रकार संघों के प्रतिनिधियों ने बाद में इस बारे में कई बार अफसरों से फोन पर बातचीत की, लेकिन कोई भी नतीजा नहीं निकल पाया। मगर चंद घंटों में ही यह घटना जंगल की आग की तरह शहर भर में फैल गयी।

एक वरिष्‍ठ पत्रकार ने न्‍यूज पोर्टल को बताया कि शाम को मंत्री पारसनाथ यादव ने ब्रजराज चौरसिया को फोन किया और पूरी जानकारी हासिल की। इस पत्रकार ने बताया कि पूरी जानकारी हासिल करने के बाद पारसनाथ यादव ने ब्रजराज से हुई घटना पर दुख व्‍यक्‍त किया, लेकिन साथ ही यह भी कह दिया कि अगर लक्‍की यादव ने ऐसा किया है तो यकीनन लक्‍की उनकी असली औलाद नहीं है। बताते हैं कि पारसनाथ यादव ने आश्‍वासन दिया है कि जन्‍माष्‍टमी के दौरान वे इस मामले में हस्‍तक्षेप करेंगे।

तब दोलत्‍ती डॉट कॉम से बातचीत करते हुए जौनपुर के पुलिस कप्‍तान अतुल सक्‍सेना ने स्‍वीकार किया कि लक्‍की यादव को कोई भी सरकारी गनर मुहैया नहीं कराया गया है। उन्‍होंने बताया कि अगर पत्रकार पर हमला करने वाला वह हमलावर पुलिस का सिपाही है, तो वह लक्‍की यादव की सुरक्षा के बजाय, मंत्री पारसनाथ यादव की सुरक्षा में ही होगा। दोलत्‍ती डॉट कॉम ने जब यह पूछा कि इस मामले में पत्रकार की शिकायत के बावजूद कोई रिपोर्ट दर्ज क्‍यों नहीं की गयी, अतुल सक्‍सेना बगलें झांकने लगे।

आज वही लकी यादव अब मल्‍हनी से जनता का प्रतिनिधित्‍व करने जा रहे हैं। यह फैसला यादवों ने किया है। इस यादव-बहुल क्षेत्र के मतदाताओं ने साबित कर दिया है कि उनको अपने लिए एक आदर्श नेता नहीं, बल्कि केवल लकी यादव ही चाहिए और हर कीमत पर चाहिए।

वैसे यह भी गौरतलब बात है कि जौनपुर की जनता को केवल बाहुबली और लुच्‍चा के बीच ही फैसला करना पड़ा। हालांकि जौनपुर के जिस भी शख्‍स से दोलत्‍ती की बातचीत हुई, उन सभी का कहना था कि बाहुबली होने के बावजूद धनंजय सिंह की छवि आम आदमी के प्रति समर्पित की है। कुछ भी हो, लेकिन शर्मनाक बात तो यह है ही कि जौनपुर में भाजपा, बसपा और कांग्रेस की नाक ही इस चुनाव में कट गयी।

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1 thought on “मल्‍हनी सीट: लुच्‍चई जीत गयी बाहुबली को धूल चटा कर

  1. लकी यादव की इस दंबगई पर योगी सरकार में भी पुलिस द्वारा एफआईआर दर्ज न करना आश्चर्य जनक है.
    किसी जनता ने फोटो तो खीची ही होगी? जाम लगा था तो बहुत सारे प्रत्यक्षदर्शी भी रहे होंगे?
    बेहतरीन लिखा है सौवीर आपने.
    Story must be followed up by local papers. Pressurise d local police.

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