: उगाही की फसल हड़पते हैं अफसर, दोना-पत्तल चाटते हैं इंजीनियर-कुकूर : वैध-अवैध निर्माणों पर सीधा नियंत्रण केवल एलडीए के उपाध्यक्ष पर, फिर दीगर अफसर कैसे जिम्मेदार : चारबाग और नाका हिंडोला से लेकर अमीनाबाद, हुसैनगंज और आलमबाग में पांच सौ से ज्यादा होटल :
कुमार सौवीर
लखनऊ : यह सन-02 की घटना है। मेरे एक जबर्दस्त एक्सीडेंट के बाद मलहम-पट्टी करने घर आने वाले हड्डी के डॉक्टर मनोज सिंह ने एक दिन मुझसे कहा, “आप तो पत्रकार हैं, एलडीए के अफसरों को खूब जानते ही होंगे। मेरा एक काम कर दीजिए। ताड़ीखाने के पास सीतापुर रोड पर मेरा एक अस्पताल बन रहा है। पिछले एक महीने से एलडीए के एक्सईएन मेरे पीछे पड़े हैं। आज सुबह आखिरी चेतावनी दे गये हैं। उन्हें हर महीने दस हजार रुपया चाहिए, जब तक बिल्डिंग बन रही हो। तीन मंजिला इमारत एकसाथ बना रहे हैं आप, इसलिए हर महीना तीस हजार रुपया देना ही होगा। वरना बिल्डिंग का काम बंद कर उसे सील कर दूंगा।”
मैंने अपने कुछ मित्रों से फोन पर बात की, तो पता चला कि यह तो एलडीए के दस्तूर है। यमराज से लोग बच सकते हैं, लेकिन एलडीए के अफसरों से कत्तई नहीं। हर जायज मकान से भी वसूली होती है, कानून के क्लॉज बेहिसाब हैं। एलडीए में भवन सेक्शन इसीलिए ही तो बना है। वहां हर इमारत का नक्शा पास होता है। नक्शा दाखिल करना, उसमें नुक्स निकालना और उसका नक्शा पास करने का दायित्व होता है भवन प्रभाग का। इस प्रभाग का जिम्मा सीधे होता है प्राधिकरण के उपाध्यक्ष के पास। इतना ही नहीं, प्राधिकरण क्षेत्र में कौन सा निर्माण, कितना, कैसे और किस आधार पर हो रहा है, इसका भी लेखा-जोखा भी देखने के लिए एलडीए ने अपने अधिकार-सीमा क्षेत्र में इंजीनियरों की टोली तैनात कर रखी है। और उन पर सीधे नियंत्रण होता है वीसी का। लेकिन सच बात तो यही है कि इस पूरे कामधाम को निपटाने के लिए जितनी भी टोली या इंजीनियर तैनात किये होते हैं, उनका असल धंधा होता है वसूली यानी उगाही करना।
मैंने कह दिया है ना कि इस पूरे कामधाम का सीधा नियंत्रण केवल एलडीए के उपाध्यक्ष का ही होता है। अगर कोई वीसी यह कहे कि उसे पता ही नहीं चल पाता है कि कौन इमारत अवैध बन रही है या बन चुकी है, तो सच बात तो यही है कि वह पक्का झुट्ठा है। और अगर वह सरासर झुट्ठा नहीं है, तो यकीन मानिये कि उस पद पर बैठने का योग्य ही नहीं है।
पूरे चारबाग और नाका हिंडोला से लेकर अमीनाबाद, हुसैनगंज और आलमबाग तक के क्षेत्र में पांच सौ से ज्यादा होटल मौजूद हैं। और यह सब के सब पूरी तरह अवैध हैं। इनके निर्माण के दौरान करोड़ों नहीं, अरबों रुपयों की उगाही एलडीए के अफसरों ने की है। पूरे लखनऊ में ऐसे होटलों की संख्या एक हजार से ज्यादा बतायी जाती है। सन-18 में विराट होटल में हुई आगजनी में सात लोगों की मौत के बावजूद इन इलाकों में लगातार अवैध इमारतें बनती जा रही हैं। लेवाना होटल तो इसी क्रम में एक है। बस दिक्कत यह हुई कि यहां आग फैली, जिसमें चार लोग जिन्दा फुंक गये।
अब देखिये कि इस काम से जुड़े लोगों में बंटवारा कैसे होता है। पूरी या अधिकांशत: गैरकानूनी होगी तो बड़ी रकम देनी ही होगी। उसका काम तब ही चल पायेगा, जब मोटी रकम नियमित रूप से तब तक मिलती रहेगी। जब तक इमारत बनती रहेगी, नियमित रुप से पैसा ऊपर तक पहुंचता ही रहेगा। अगर लखनऊ की ही बात की जाए, तो कहने की जरूरत नहीं है कि राजधानी में 95 फीसदी बड़े मकान पूरी तरह या आंशिक रूप से अवैध ही बने हुए हैं। चाहे वह निर्माण के स्तर पर हैं, नक्शा के नियमों के अनुरूप हों, या फिर क्षेत्र क्षेत्र के भू-उपयोग के स्तर पर। मंझोली और बड़ी सड़कों पर बड़ी अधिकांश इमारतें इसी श्रेणी की हो चुकी हैं। यहां बात केवल होटलों की नहीं है। हर ओर अवैध निर्माण जारी हैं, और आम आदमी की जान के ग्राहक बने बैठे हैं। आरटीआई एक्टिविस्ट संजय आजाद कहते हैं कि डालीगंज के रामधारी सिंह कालेज में अवैध रूप से बनी इमारतों पर पिछले तीस बरसों से सवाल पर सवाल उठाया है, लेकिन कोई सुनवाई ही नहीं होती है।
यह हालत है राजधानी की। और इसके बावजूद अगर एलडीए का वीसी यह कहे कि फलां इमारत बिना रिश्वत के बन कर तैयार हुई है या तैयार हो रही है, तो यकीन मानिये कि वह शख्स सरासर झूठ बोल रहा है।
दरअसल, शहर की हर इमारत से की जानी वाली उगाही इमारत की श्रेणी के आधार पर ही तय होती है कि उसकी रकम कौन किसे पहुंचायेगा। सबसे बड़ी उगाही तो नक्शा में मीन-मेख निकालने के दौरान निपटा ली जाती है। बड़ी इमारत रही है तो एलडीए के बड़े अफसर, मंझोली इमारत है तो उसे एक्सईएन उसे डील करेंगे, लेकिन अगर छोटी इमारत का मामला है तो उसका जिम्मा सहायक अभियंता या जूनियर इंजीनियर के हिस्से में होगा।
लेवाना अग्निकांड के बाद जब बवाल भड़का तो एलडीए ने इस कांड के लिए जिम्मेदार 22 इंजीनियरों को जिम्मेदार ठहराते हुए उनके खिलाफ कार्रवाई करने के लिए शासन को बाकायदा एक लिस्ट भेज दी।
अब यह सवाल दोबारा मत पूछियेगा कि यह उगाही-स्रोत को किन-किन अधिकारियों की झोली में कितना-कितना पहुंचता है।
नि:संदेह … अवैध कब्बजे और उनपर खड़े किए गए अवैध अंपायरों को ध्वस्त करने की जिम्मेदारी लखनऊ विकास प्राधिकरण के मुखिया पर ही होती है। राजधानी के कुख्यात हिस्ट्रीशीटर भू-माफिया अवैध निर्माणकर्ता सूर्य कुमार उर्फ सूरज वर्मा द्वारा दबंगई के बल पर अरबों-खरबों की नजूल भूमियों पर खुलेआम अवैध व्यवसायिक गतिविधियां संचालित की जा रही हैं। 22 वर्षों से लगातार दिन-रात एक करके अंततोगत्वा ईमानदार लोकसेवकों के द्वारा ढाई वर्षों पूर्व पूरी निष्पक्षता के साथ ध्वस्तीकरण आदेश तो पारित कर दिए गए। किंतु आवास एवं शहरी नियोजन विभाग के अंतर्गत आवास एवं विकास परिषद में बैठे घूसखोर अजय चौहान जैसे सचिव स्तर के तथाकथित नौकरशाह पुनरीक्षण वाद की आड़ में हिस्ट्रीशीटर भू-माफिया अवैध निर्माणकर्ता से घूस की भारी भरकम रकम लेकर फरवरी,2021 से ध्वस्तीकरण आदेश को ठंडे बस्ते में डालकर बैठे हैं। ऐसे घूसखोर नौकरशाहों की खानदानी चल-अचल संपत्तियों की जांच भी ईडी सीबीआई आयकर विभाग जैसी शक्तिशाली एजेंसियों से कराई जानी चाहिएं।