लाशें भी न गिन पाये रिपोर्टर : नभाटा ने 14, तो हिंदुस्‍तान ने 32

बिटिया खबर

: बेशर्मी पर आमादा यूपी के बड़े अखबार और उनके संपादक : आंधी की खबर में जबर्दस्‍त गोलमाल, मेंथा की खेती पर खुश है जागरण : इन्‍हें जिम्‍मेदार कैसे मानें। यह खबरची नहीं, लाशों के सौदागर हैं : लिंग-वर्द्धक यंत्र बेचने में माहिर अमर उजाला ने बटोरीं 29 लाशें :

कुमार सौवीर

लखनऊ : यह तो मुमकिन हो सकता है कि यूपी में कोई बड़ा हादसा हो जाए और उसमें निरीह नागरिकों की मौत हो गयी हो। लेकिन यह कैसे हो सकता है कि इस हादसे में मारे गये लोगों की संख्‍या पर सारे अखबारवाले अलग-अलग संख्‍या दिखा रहे हों। मसलन, किसी को 14 लाशें मिल गयी हों, किसी ने 21 लाशों को गिन डाला हो, एक दीगर ने 29 लाशों को टटोला हो, जबकि एक अन्‍य को इस में 32 लाशें मिल चुकी हों।
यह मामला है दो दिन पहले यूपी में आयी एक बड़ी आंधी का। इस घटना को लखनऊ के लगभग सभी अखबारों ने प्रमुखता के साथ छापा। लेकिन इसके बावजूद कुछ ऐसे भी बड़े अखबार भी रहे, जिन्‍होंने इस खबर को पहले पन्‍ने में छापने की जरूरत ही नहीं समझी, और सिर्फ भीतर के पन्‍ने पर जगह दी। दैनिक जागरण ने तो इस हादसे को माखौल की तरह पेश कर दिया। लेकिन सबसे शर्मनाक हालत तो यह रही कि इन सभी अखबारों ने इस हादसे में हुई जान-माल के नुकसान को बेहद लापरवाही, अराजकता और मूर्खता के तौर पर लिया।
इस आंधी में हुई निरीह नागरिकों की मौतों को तो बाकायदा माखौल बना दिया इन अखबारों ने। शर्मनाक बात तो यह है कि यह हरकत यहां के तथाकथित बड़े अखबारों ने किया, जिनका नाम है दैनिक जागरण, अमर उजाला, हिन्‍दुस्‍तान और नवभारत टाइम्‍स। नवभारत टाइम्‍स ने इस हादसे की हेडिंग लगायी है कि प्रदेश में आंधी-बारिश से मची तबाही, हादसों में 14 लोगों की जान गई। जबकि लिंग-वर्द्धक यंत्र और दवाएं बेचने वाले विज्ञापन के लिए मशहूर अमर उजाला को 29 लाशें बरामद हो पायीं। अमर उजाला ने शीर्षक लगाया है कि:- आंधी-पानी से कई जगह हादसे, 29 लोगों की मौत।
दैनिक जागरण ने तो कमाल ही कर दिया। शीर्षक लिखा है:- खबर में हेडिंग तो अवध का जिक्र करते हुए बताया कि इस क्षेत्र में केवल 17 मौतें हुई हैं। लेकिन पूरे यूपी में गिनती वक्‍त दैनिक जागरण ने कुल 21 लाशें बटोर डालीं। इतना ही नहीं, हेडिंग में तो दैनिक जागरण ने आंधी को कहर माना और पहले पैराग्राफ में उस से जुड़ी बातें लिखीं। लेकिन इसके अगले पैरा में जो लिखा है वह तो वाकई पत्रकारों की मूर्खता की पराकाष्‍ठा है। लिखा है कि पद्मश्री किसान रामसरन वर्मा के मुताबिक मेंथा के लिए यह बारिश फायदेमंद है। कहने की जरूरत नहीं कि रामसरन वर्मा बाराबंकी के हैं और मेंथा उत्‍पादन का गढ़ है बाराबंकी।
हिन्‍दुस्‍तान के संपादक को इस आंधी में पूरे यूपी से कुल 32 लाशें मिल पायी हैं। यह अखबार ने शीर्षक लगाया है कि कहर- यूपी में आंधी-बारिश से जनजीवन बेहाल, 32 की मौत।
जाहिर है कि इन बड़े अखबारों के रिपोर्टरों से लेकर संपादकीय प्रभारी भी या तो मूर्ख हैं, काहिल हैं या हरामखोर। और सबसे बड़ी बात तो यह है कि अपनी टीम पर निगाह रखने वाले इन अखबारों के संपादकों को भी इतने बड़े हादसों के कवरेज के लिए इतना समय भी नहीं मिल पाता है कि वे सच और झूठ में फर्क कर सकें। कहने की जरूरत नहीं कि यह हालत तब ही होती है, जब संपादक से लेकर रिपोर्टर तक का पूरा रेला केवल दलाली पर आमादा हो चुका होता है। वे केवल सरकारी दफ्तरों में बैठ कर अंगड़ाई तोड़ा करते रहते हैं। वरना किसी भी खबर को लिखने से पहले इन अखबारों के रिपोर्टरों को प्रदेश के आपदा और राहत कार्यालय से एक बार पूछने की जहमत तो उठानी होती।
लेकिन यूपी के बड़े अखबार माने जाने वाले और सूचना विभाग समेत सारी सरकारी विभागों के खजानों से अधिकांश रकम हड़प लेने पर माहिर बाकायदा बेशर्मी, हरामखोरी और पत्रकारिता को गटर में प्रवाहित करने का बीड़ा उठाये बैठे हैं। कोई झूठी खबरों का धंधा करता है, तो कोई बेसिर-पैर की बकवास को खबर के तौर पर अखबारों के पन्‍ने काला करता रहता है। किसी को एक खास धर्म से खास नफरत है, और उसके लिए वह कुछ भी मूर्खतापूर्ण प्रयोग कर सकता है, जबकि एक अखबार को तो सबसे बड़ी चिंता इस बात पर है कि नागरिकों का लिंग-वर्द्धन कैसे हो सके। इसके लिए वह अखबार लगातार विज्ञापन छापा करता है कि चाहे कुछ भी हो, नागरिकों का लिंग बड़ा, कड़क और देर तक टिकाऊ बना रह सके। इतना ही नहीं, ऐसे अभियानों को प्रकाशित भी करता रहता है यह अखबार, जिनमें 64 या 128 जीबी की मेमोरी-चिप भी हो।

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