: नीरज मुसाफ़िर भाई की किताब ‘पैडल पैडल लद्दाख’ : शहरों में रहने वाले धूर्त लोग आपकी आंखों से काजल छीन लेते हैं :
शेखर बहुगुणा
देहरादून : नीरज मुसाफ़िर भाई की किताब ‘पैडल पैडल लद्दाख’ पढ़ रहा था। जिसमें उन्होंने साइकिल पर की गई अपनी लद्दाख यात्रा के बारे में लिखा है। यात्रा के दौरान किसी दिन उन्हें रहने के लिए उन्हें कोई जगह नहीं मिलती है तो वो बीआरओ के टेंट में शरण लेते हैं। टेंट में सभी झारखंडी मजदूर थे। रात को सोते वक्त मजदूरों से कहा कि अपनी साइकिल भी टेंट के अंदर रख लीजिए नहीं तो पहाड़ी गड़रिये उठा ले जाएंगे। तो नीरज भाई पूरे आत्मविश्वास के साथ कहते हैं- कोई नहीं ले जाएगा, पहाड़ी लोग चोरी करना नहीं जानते।
ये लाइन पढ़कर में तेजी से फ्लैशबैक में गया मुझे पिछले महीने की अपनी उत्तराखंड यात्रा याद आ गयी- जब शुरू शुरू में हम पहाड़ों की सैर के दौरान कहीं भी रुकते तो हम हमारे साथी ड्राइवर साहेब (जो कि पहाड़ी ही थे) से कहते कि गाड़ी लॉक कर दीजिए क्योंकि उसमें हमारा लैपटॉप बैग कैमरा आदि होता था तो ड्राइवर साहेब और हमारे पहाड़ी साथी सतीश भाई का जवाब होता था – भैजी ( पहाड़ों में भाई जी को भैजी कहते हैं) आप चिंता मत कीजिये, ये पहाड़ हैं यहां लोग चोरी नहीं करते। मैं और मेरा सहयात्री अक्षय धीरे से मुस्कुरा देते!
लेकिन फिर भी थोड़ा डर रहता था हम शहरों में रहने वाले लोग जहां धूर्त लोग आपकी आंखों से काजल छीन लें उनके लिए ये नई बात थी। लेकिन 1-2 दिन तक हर बार यही जवाब मिला और समान भी सुरक्षित तो यकीन हुआ। हां सच में ‘पहाड़ी लोग चोरी करना नहीं जानते’दिल्ली लौटते वक़्त, दिल्ली सीमा लगते ही अक्षय ने मुझे आगाह कर दिया था कि बस में या ट्रेन में मोबाइल चलाते हुए गेट पर खड़े मत होना, लोग झपट्टा मारकर मोबाइल छीन कर भाग जाते हैं।
उसकी बात सुनकर लगा हम वापिस अपनी आधुनिक सभ्य(ता) में आ गए हैं।