: रमा जैन ने गाजियाबाद में करोड़ों के पीएफ घोटाले का खुलासा किया : राजेंद्र सिंह की डायरी में दर्ज हैं न्यायपालिका के बड़े अफसरों के रंग-बिरंगे किस्से :
कुमार सौवीर
लखनऊ : करीब एक महीना पहले हमने न्यायपालिका के चूहों द्वारा सरकारी खजाने में छेद-सुराख की साजिशें बुनी जाती हैं। इस अभियान के तहत हमने ज्यूडिसरी में होने वाले घोटाले का खुलासा किया था। हमने बताया था कि किस तरह रमा जैन नामक एक जुझारू अपर जिला सत्र न्यायाधीश ने गाजियाबाद में अपनी तैनाती के दौरान कर्मचारियों की भविष्य निधि में हुए करोड़ों के घोटालों का बेधड़क खुलासा किया था। उस समय रमा जैन सीबीआई कोर्ट की जज थीं और हाईकोर्ट के आदेश पर उन्हें नजारत का प्रभारी बनाया गया था।
अपने चौंका देने वाले इस खुलासे में रमा जैन ने पाया था कि नजारत के एक अदना सा नाजिर किस तरह बड़े-बड़े जजों को अपनी उंगलियों पर नचाता था। और ऐसे नाचने-नचाने का मकसद हुआ करता था छोटे स्वार्थों का चारा। ऐसा चारा खा जाने के बाद ऐसे नाजिर के सामने बड़े-बड़े जज अपने घुटने टेक देते थे। कहने की जरूरत नहीं कि रमा जैन को ऐसा खुलासा करना काफी भारी पड़ा था। उन पर जानलेवा हमला करने की साजिशें बुनी गयीं, घटिया हरकतें की गईं। लेकिन अपने हौसलों के बल पर रमा जैन बिल्कुल सुरक्षित और बेदाग बनी रहीं। मुजफ्फरनगर में जिला एवं सत्र न्यायाधीश पद से सेवानिवृत्त होने वाली रमा जैन को आज भी तनिक भी कोई क्लेश या दुख नहीं है। बल्कि वे तो अपने हौसलों पर बिलकुल सही फैसला मानती हैं। बावजूद इसके कि उनके इस साहस का खामियाजा उन पर काफी भारी पड़ा। चर्चा तो यहां तक है कि रमा जैन को रिटायर होने के पहले तक कोलोजियम ही लटकाया रहा था कर्णधारों की ओर से।
लेकिन ऐसा हरगिज़ नहीं है कि रमा जैन न्यायपालिका में कोई इकलौती किरदार रही हों। ऐसे लोग भी सामने आए हैं जिन्होंने पूरे जोश और जुनून के साथ अपना युद्ध लड़ा और जीत हासिल की। ऐसे लोगों में राजेंद्र सिंह एक बड़ा नाम हैं। हालांकि राजेंद्र सिंह रमा जैन की तरह एकला चलो अभियान नहीं छेड़ पाए, लेकिन अपनी पूरे सेवाकाल के दौरान राजेंद्र सिंह ने भी एक बड़ा नायाब साहस का प्रदर्शन किया था। इसके पहले उन्हें हाईकोर्ट में एलिवेट करने का फैसला हो चुका था। लेकिन राजेंद्र सिंह को बाद में रणनीतिक तौर पर कोलोजियम से हटा दिया गया। तब के मुख्य न्यायाधीश डीबी भोंसले ने गायत्री प्रजापति की जमानत के विवाद में उठे विवाद पर अपनी रिपोर्ट में दर्ज कर लिया था कि 10 करोड़ों का लेनदेन हुआ था। उसके बाद ही मुख्य न्यायाधीश डीबी भोंसले ने राजेंद्र सिंह को लखनऊ जिला एवं सत्र न्यायाधीश पद से हटाकर उन्हें चंदौली भेज दिया था। हालांकि उसके बाद यह पूरा मामला ही न्यायपालिका के बड़े दबा दिया।
कुछ भी हो, राजेंद्र सिंह ने अपने सेवाकाल में कई मामलों का खुलासा किया है। ऐसे पूरे प्रकरणों को उन्होंने अपनी डायरी पर दर्ज किया है कि किस तरह न्यायपालिका के बड़े लोग अपने छोटे-छोटे स्वार्थों के लिए अपने घुटने टेक देते हैं।
यह डायरी हमारे पास है, और हम उसे श्रृंखलाबद्ध तरीके से छापने की जा रहे हैं। हम यह प्रकाशन सिर्फ इस मकसद से करने जा रहे हैं कि आम आदमी हमेशा हमारी कोशिशों से उत्साहित होंगे और ऐसे साहस को अपने दिल-दिमाग से मजबूत करेंगे। इतना ही नहीं, बल्कि ऐसे और लोगों को भी प्रकाश-स्तंभ के तौर पर स्थापित करेंगे, जिन्होंने अपने पूरे सेवाकाल में अपने मूल्यों से पीछे कदम नहीं रखा।
ऐसी दास्तान को बांचने के लिए कृपया धाकड़ जज शीर्षक से श्रंखलाबद्ध कहानी पर क्लिक करें।