लखनऊ में भी खूब हैं उमेश जैसे बहुरूपिया पत्रकार-कलंकनुमा दलाल

बिटिया खबर

: अब तो लखनऊ राजधानी में ही नहीं, गली-मोहल्‍ले में भी पसर चुके हैं कुछ घटिया कुल-कलंक : समाचार प्लस वाले उमेश की गिरफ्तारी पर तुम्हारी क्या राय है : पत्रकार संगठन भी खामोश हैं कि उमेश शर्मा की गिरफ्तारी दलाल के तौर है या फिर पत्रकार की :

नवेद शिकोह
लखनऊ : बोलो अब तुम कब बोलोगे, बोलो अब तुम क्या बोलोगे! सोशल मीडिया पर तुम लोगों की मीटिंगों और कार्यक्रमों की रोज तस्वीरें जारी होती हैं। बयान आते हैं। वक्तव्य आते हैं। पत्रकारिता की भलाई पर तमाम तरीकों की फिक्र पर चर्चा करते हो। बड़े-बड़े दावे-वादे और बातें करते हो। आज पत्रकारिता से जुड़े दो मुद्दे जो सबसे अहम और चर्चा का विषय है उसपर बोलने की तुम्हारी हिम्मत नहीं। इस मसले पर तुम्हारे मुंह पर फालिज गिर गया है क्या ? ये दो सामायिक मुद्दे हैं –
पहला मुद्दा ये कि ब्लैकमेलर ब्लैकमेलिंग के लिए पत्रकारिता का मुखौटा लगा रहे हैं। और इस तरह पत्रकार और पत्रकारिता बुरी तरह से बदनाम हो रही है।
दूसरा मुद्दा – मौजूदा दौर में सरकार पर आरोप लग रहे हैं कि सरकार मीडिया यानी पत्रकारों का दमन कर रही है। संदेश दिया जा रहा है कि सरकार की चाटुकारिता नहीं कर सकते तो पत्रकारिता छोड़ दो। अखबार-चैनल बंद कर दो। किसी ने सरकार के खिलाफ खबर फ्लैश करने की जुर्रत की तो तीन काम होंगे। या तो तुम्हारे मालिक को ही तुम्हें निकालने पर मजबूर होना पड़ेगा। या फिर तुम्हारा अखबार – चैनल ही बंद हो जायेगा। या फिर तुम्हे जेल भेज दिया जायेगा।
यदि सरकार पर लगने वाले ये आरोप गलत हैं तो पत्रकार संगठन ये बयान दें कि मीडिया को लेकर सरकार पर लगने वाले ये आरोप निराधार हैं। सत्ता पक्ष और विपक्ष, मोदी समर्थक और मोदी विरोधियों की सियासत में मीडिया को बिना वजह बीच में ना लाया जाये।  और यदि मीडिया पर सरकार द्वारा दबाव बनाने के आरोप सहीं है तब भी इस गंभीर विषय पर पत्रकार संगठनों /यूनियनों को आगे आना चाहिए है। समाचार प्लस के मालिक उमेश कुमार की गिरफ्तारी हुई तो उक्त विषय पर लेख लिखने और पत्रकार संगठनों से सवाल करने का विचार आया।
उमेश वाले मामले के पीछे दो ही बातें हो सकती हैं।  या तो उमेश ब्लैकमेलर हैं या फिर फिर वो निडर होकर सरकार के खिलाफ सच दिखाने की हिम्मत रखते हैं। सरकार के खिलाफ सच दिखाने से नाराज सरकार उन्हें गिरफ्तार कर पूरे देश की मीडिया और पत्रकारों को संदेश देना चाहती है कि यदि सरकार के खिलाफ खबर की तो यही अंजाम होगा।
ये दोनों सूरतें मीडिया के क्षेत्र के लिए बेहद गंभीर हैं। यदि उमेश जैसे ब्लैकमेलर (कथित) पत्रकारिता को बदनाम कर रहे हैं तो पत्रकारिता के नाम पर ब्लैकमेलिंग करने वालों के खिलाफ पत्रकार संगठन मुखर क्यों नहीं होते !
और यदि सरकार ने बेबुनियाद तौर पर उमेश को गिरफ्तार कर मीडिया पर दबाव बनाने की कोशिश की है तब भी ये गंभीर मामला है। दोनों ही मामलों में पत्रकार संगठनों को अपना रूख स्पष्ट करना होगा। समसामयिक गंभीर विषय पर खामोश रहने और बेवजह की मीटिंगों और कार्यक्रमों के फोटो जारी करने वाले संगठनों सुधर जाओ l पत्रकारिता के अस्ल मुद्दों पर कम से कम बयान ही दे दो। यूपी और उत्तराखंड के एक चैनल का मालिक जेल में ठूस दिया गया लेकिन सिर्फ यूपी के ही पांच सौ से ज्यादा पत्रकार संगठनों/यूनियनों में से इस गिरफ्तारी के स्वागत या विरोध पर अब तक एक भी बयान नहीं आया।

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