: भाजपा ने साफ कर दिया कि औरत हो तो पहले अपना खानदान सम्भालो : अखिलेश के खिलाफ अपर्णा बहुत कूद रही थीं, दयाशंकर से कुटम्मस का झगड़ा था स्वाती का : रीता बहुगुणा जोशी के खानदानी झगड़े को निपटा पा रही है भाजपा : कैंट में चार बार के विधायक सुरेश तिवारी पर थोपे गये ब्रजेश पाठक, खुदाल-खुरपी तैयार :
कुमार सौवीर
लखनऊ : मोदी जी ने भले ही टेली-प्रॉम्प्टर के चलते बेटी पढ़ाओ, बेटी पटाओ कह दिया, लेकिन सच बात तो यही है कि यूपी की राजधानी में बेटी पटाओ आंदोलन एकदम्मे से ही सीधे मुंह के बल गिर पड़ी हो गयी है। नारा लगाना तो दीगर बात है, लेकिन भाजपा अब इतनी भी मूर्ख नहीं है कि कई गंभीर सार्वजनिक विवादों को गले से नीचे उतार ले। मसलन, सायकिल की कैरियर से उचक कर कूदीं अपर्णा बिष्ट यादव और योगी सरकार में राज्यमंत्री स्वाती सिंह। भाजपा ने इन दोनों का पत्ता ही साफ कर दिया है।
अपर्णा बिष्ट यादव के मामले में तो भाजपा यह समझ ही नहीं पा रही है कि अपर्णा यादव अब तक ठाकुर हैं या फिर यादव। उधर सरोजनीनगर वाली स्वाती सिंह के मामले में दयाशंकर के बीच इतना जोरदार टनाटन्न बवाल चल रहा है कि भाजपा ने अपनी हांडी एक पुलिसवाले के चूल्हे के चढ़ा दी है। ईडी के पूर्व डायरेक्टर राजेश्वर सिंह को उम्मीदवार बनाया है। राजेश्वर सिंह ने कल ही भाजपा की सदस्यता हासिल की थी, और आज ही उनके हाथों में छप्पनभोग वाले थाल की तरह थमा दिया गया। यानी साफ संदेश है कि स्वाती और अपर्णा बिष्ट ही जब हाथ-पैर से ही अपना पारिवारिक सौहार्द्र नहीं निपटा रहे हैं, बल्कि ऐन चुनाव के वक्त पर उनका मुखारबिन्द भी एक-दूसरे के प्रति अगाध स्नेह और प्रेम से गुंथ चुके हैं। सुना तो है कि ऐसे प्रेम, स्नेह और आत्मीयता का संबंध अब जूता-चप्पल तक पहुंच चुका है। जाओ, पहले अपना घरेलू टंटा-झगड़ा निपटाओ, फिर बात करेंगे, बशर्ते वक्त बचा तो।
इतना ही नहीं, अमित शाह और राजनाथ सिंह के पुत्रों को टिकट देना तो भाजपा की परम्परागत नीति-रीति भले ही रही हो, लेकिन रीता बहुगुणा जोशी के मामले में भाजपा ने उनको खुला ठेंगा दिखा दिया है। हालांकि उन्होंने नड्ढा तक को पत्र लिख कर खुलेआम अपनी ख्वाहिशों का तस्करा कर दिया था। लेकिन पार्टी का मोहभंग अब हो चुका लगता है। इशारा में ही सही, लेकिन पार्टी ने सरेआम इशारा कर दिया है कि इतनी रोटियों से पेट अगर नहीं भर रहा हो तो जाओ किसी दूसरे के भंडारे का रास्ता नापो।
जबकि योगी सरकार में मंत्री का कालीन बिछाये ब्रजेश पाठक का अब कालीन मध्य क्षेत्र की जनता ने खिसकाना शुरू कर दिया है, तो भनक मिलते ही ब्रजेश पाठक ने ऐन वक्त पर खतरा सूंघा, और फिलहाल कैंट क्षेत्र की डाल पर कूद कर उछल गये। लेकिन यह उछलकूद इतनी भी आसान नहीं हो सकती है। वजह यह कि यहां चार बार विधायक रह चुके सुरेश तिवारी के समर्थकों की फौज ने भाजपा के खिलाफ खुरपी-कुदाल थाम ली है। मतलब यह कि इस बार राजधानी में विधानसभा क्षेत्रों में चुनाव का मामला कई मामलों में पार्टी के लिए खतरनाक भी हो सकता है।
इस मामले में सबसे बड़ी बेइज्जती तो अपर्णा बिष्ट यादव की हो गयी है। न ख़ुदा ही मिला न विसाल-ए-सनम, न इधर के हुए न उधर के हुए। पहाड़ के बिष्ट खानदान छोड़ कर सपा के यदुवंशी ससुराल में पहुंची अपर्णा, लेकिन खानदान में घरेलू खटपट और बर्तनों का उठापटक युद्धोन्माद के स्तर तक पहुंच गयी। किसी को पता नहीं कि मुलायम सिंह यादव ने इस मामले में क्या हस्तक्षेप किया, लेकिन बद-हालत यह बन गयी कि अपर्णा बिष्ट ने पूजा-अर्चना की थाली को भाजपा की दहलीज पर रख दिया। भाजपा में उदारमना माने जाने वाले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष स्वतंत्रदेव सिंह जैसे महानतम दिव्य-अवतारी पुरुषों ने सीधे अर्पणा बिष्ट यादव को कृष्ण की तरह लपक कर सम्भाला और पार्टी में उनको गृहप्रवेश कराया।
इतना ही नहीं, इस प्रवेश-कार्यक्रम में इन दोनों महान-विभूतियों को तो अपर्णा बिष्ट को हाथोंहाथ लिया, लेकिन पार्टी में नव-चयन के लिए बनाये गये एक नये आयोग के अध्यक्ष लक्ष्मी शंकर बाजपेई को कानोकान खबर तक नहीं दी। कुछ भी हो, पार्टी में आने से गदगद अपर्णा बिष्ट ने इन दोनों महान लोगों का चरण-स्पर्श किया और यह आशीर्वाद मांगा कि वे सीधे अखिलेश यादव के चुनाव क्षेत्र करहल में ताल ठोंकने की अनुमति दें। लेकिन आज तो पार्टी ने उनको सीधे-सीधे ठेंगा दिखा दिया। करहल तो दूर, पार्टी में कैंट में सुरेश तिवारी को जमींदोज कर वहां की इमारत ब्रजेश पाठक के नाम पर तामीर करने का फैसला किया। अब अपर्णा बिष्ट क्या करेंगी, अल्लाह जाने। सपा में वापस जाने का सवाल फिलहाल जल्दी नहीं हो पायेगा।
यूपी विधानसभा चुनाव के लिए बीजेपी की नई सूची आ गई है। इसमें 17 उम्मीदवारों के नाम हैं। बख्शी का तालाब में अविनाश त्रिवेदी अब गहरे धंसा दिये गये हैं। उसे पाटने के लिए योगेश शुक्ला लगाये गये हैं। लखनऊ पश्चिम में स्वर्गीय सुरेश कुमार श्रीवास्तव की जगह रजनीश गुप्ता यानी कायस्थ की जगह बनिया को उतारा गया है।