: पत्रकार हत्याकांड पर सच कुबूलने का हौसला जरूरी : इश्क, खाद्यान्न, रंजिश : बलिया में पत्रकार चिल्लाये, आगरा में व्यापारियों ने हंगामा काटा था : साजिश थी कुमार सौवीर को पीटने की :
कुमार सौवीर
लखनऊ : हम किसी निर्णायक नतीजे तक पहुंचने का दावा नहीं कर रहे हैं। लेकिन बलिया में जिस तरह एक पत्रकार की हत्या की गयी, उसके कारण क्या-क्या हो सकते हैं, इससे जुड़े सारे तथ्य हम आपके सामने जस का तस रख देना चाहते हैं। और आपको बता दें कि करीब सात बरस पहले आगरा में हुई एक घटना वाकई दिलचस्प और मौजू हो सकती है। शायद ठीक उसी तरह, जैसे बलिया में हुआ पत्रकार की हत्या का सनसनीखेज मामला।
तो पहले बलिया की घटना को संक्षेप में समझ लीजिए। 24 अगस्त-20 की शाम सहारा समय टीवी चैनल से जुड़े रतन सिंह मुख्यालय से करीब 15 किलोमीटर अपने राजू होटल में बैठे थे। शाम करीब पौने आठ बजे के करीब रतन के पास एक फोन आया। फोन पर बात करते ही रतन हड़बड़ा कर उठे और होटल वाले राजू से बोले कि अपनी बाइक दे दो, मैं थोड़ी देर में आ रहा हूं। राजू ने बाइक रतन को थमा दी। बाइक लेकर रतन चले गये। करीब आधे घंटे के बाद होटल पर बैठे एक ग्राहक चिल्लाया कि उसकी बाइक गायब हो गयी है। राजू ने मामला देखा। उसकी खुद की बाइक खड़ी थी, ऐसे में रतन कौन सी बाइक लेकर इतनी जल्दी में गया है, राजू की समझ में नहीं आया। राजू ने रतन को फोन किया और बताया कि वह राजू की नहीं, बल्कि किसी दूसरे ग्राहक की बाइक लेकर चला गया है।
इस पर रतन ने बताया कि बस थोड़ी देर रुको, मैं वापस आ रहा हूं।
लेकिन उसके बाद से ही रतन हमेशा हमेशा के लिए दुनिया से चला गया। पता चला कि पास के ही एक गांव के बीचोंबीच उसकी गोली मार कर हत्या कर दी गयी। इसको लेकर ढेरों सवाल उछल रहे हैं। एक दूसरे की बाइक को कोई कैसे लेकर निकल सकता है। जहां रतन सिंह का कई बरसों से हिंसक विवाद चल रहा हो, वहां अकेले क्यों गया रतन। सवालों की तो खान है यह घटना।
बहरहाल, जिले के पत्रकारों और विपक्षी दलों के लोगों ने इस हत्या पर उसी रात खूब बवाल किया। रसड़ा बाजार पर सड़क जाम हुआ। एक करोड़ मुआवजे मांगे गये, पत्नी को सरकारी नौकरी चाही गयी। लेकिन किसी भी पत्रकार ने इस सवाल का जवाब नहीं सोचा कि आखिर रतन की हत्या क्यों हुई। यह जानते हुए भी कि रतन दूसरे धंधों में लिप्त था, और पत्रकारिता केवल अपनी सुरक्षा और पत्रकार के तौर पर सामाजिक सम्मान के लिए ही बना था। यह जानते हुए भी रतन सिंह ने एक भी स्टोरी ऐसी नहीं की, जिससे उसका विवाद किसी से हो जाए, जानी दुश्मनी तो बहुत दूर की बात है। हैरत की बात है कि हत्या के बाद जब रतन की पत्नी को नौकरी की बात उठायी गयी थी, उस दौरान एक पत्रकार ने खुलेआम कह दिया कि किस पत्नी को यह नौकरी दी जाएगी, यह सवाल बहुत बड़ा है।
हां, इतना जरूर है कि सहारा समय के काउंटर-पार्ट यानी दैनिक राष्ट्रीय सहारा के जिला प्रतिनिधि रंजीत मिश्र के साथ उनकी ठनी हुई थी। इतनी ठनी थी कि हत्या की खबर भेजते वक्त रंजीत मिश्र ने मृतक रतन सिंह नाम तक नहीं भेजा था।
दोलत्ती की पड़ताल में साफ जाहिर हो गया है कि यह खबर केवल तीन लाइनों में लिखी गयी थी, जिसमें रतन सिंह का नाम ही नहीं था। इतना ही नहीं, नोएडा से दोलत्ती को पता चला कि हत्या की दोपहर को ही रंजीत मिश्र ने सहारा समय के आला अफसरों को फोन करके कहा था कि, सर अब तो कोई दिक्कत नहीं है। जगह भी खाली हो गयी है। अब यह दोनों काम भी हमको भी दिला दीजिए। आपको बता दें कि राष्ट्रीय सहारा का तीस लाख रुपयों की रकम रंजीत मिश्र ने बरसों से दबा रखी है। बनारस में राष्ट्रीय सहारा के बिजनेस मैनेजर रहे शिशिर गोपेश ने दोलत्ती संवाददाता को बताया कि इस बारे में कई बार चेतावनी देने के बावजूद रंजीत मिश्र ने वह रकम सहारा को वापस नहीं की। इस पर रंजीत मिश्र के साथ दोलत्ती ने कुछ जानकारी चाही, तो रंजीत मिश्र बुरी तरह भड़क गये।
हैरत की बात है कि जिले के अधिकांश पत्रकार तो दोलत्ती की खोजबीन से इतने भयभीत और आक्रोशित थे कि कुमार सौवीर को जूतों से मारने का दुष्चक्र रचने लगे। साजिश की गयी कि कैसे किसी बहाने से कुमार सौवीर को बुलाया जाए, और उसकी जम कर पिटाई की जाए, ताकि दोलत्ती और कुमार सौवीर भविष्य में कभी पत्रकारिता का साहस न कर पायें।
इस कहानी का अगला अंक आगरा में हुई एक बड़े व्यापारी के बेटे की हत्या को लेकर है।
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