: बुद्ध की उंगली क्यों नहीं काटी अंगुलिमाल ने : बहुत सरल होता है महा-प्रश्नों का समाधान : न हुआ बुद्ध का वध, न बनी उंगलियों की माला : उत्तिष्ठ अंगुलिमाल। समय प्रतीक्षा में है :
कुमार सौवीर
लखनऊ: तो दोस्तों। अब उस महानतम प्रश्न का उत्तर आखिरकार मिल गया है कि अंगुलिमाल ने महात्मा बुद्ध का वध क्यों नहीं हुआ? क्यों बुद्ध की उंगली को अंगुलिमाल ने क्यों नहीं काटा? अंगुलिमाल ने अपनी अंगुलिमाल में बुद्ध के अंगुलि-माला को काटने के अभियान को समाप्त कर लिया? इतना ही नहीं, उस क्षेपक के बाद ही अंगुलिमाल ने अपना वध-अभियान हमेशा-हमेशा के लिए क्यों समाप्त किया और क्यों बुद्ध की शरण में आ गया ?
इस राज का खुलासा एक विशिष्ट शोध के बाद ही सम्भव हो पाया है। इसके शोधार्थी थे सतर्क-सजग-क्रियाशील, उद्धत समर्पित शोधार्थी कुमार सौवीर, और उसके गाइड हैं उप्र के सरकारी अफसरों की मानस-यूनियन के प्रमुख महामना आरके पाण्डेय स्वयंभू महाप्राण महाभन्ते सरस्वती जी।
आपको यह काण्ड तो पहले से ही पता हो होगा कि अंगुलिमाल एक लुटेरा-डाकू था जो अपने शिकंज में फंसने वाले हर आदमी की लूटने के लिए पहले उसकी हत्या करता था और उसके बाद उसकी एक उंगली काट कर अपनी माला को मनके तौर पर विस्तार दे देता था। लेकिन इतिहास में यह अनुत्तरित ही प्रश्न रहा है कि उसने महात्मा बुद्ध की उंगली क्यों नही काटी?
महाभंते आरके पाण्डेय के निर्देशित इस शोध से पता चला है कि इस का कारण बुद्ध नहीं, बल्कि अंगुलिमाल ही रहे हैं। अब इस प्रकरण को जरा सिलसिलेवार देख-समझने की कोशिश कीजिए, तो पूरा मसला ही खुल जाएगा।
बुद्ध के दर्शन में चार आर्य-सत्य का सिद्धांत हैं।
पहला आर्य सत्य है: दुख है
दूसरा आर्य सत्य है:- दुख का कारण है
तीसरा आर्य-सत्य है:- कारण का निरोध पीड़ा है
चौथा आर्य सत्य है: निरोध का निदान है
महा-शिक्षक भंते आरके पाण्डेय के निर्देशन से प्राप्त ज्ञान से मुझे जो स्पष्ट महानतम दृष्टि-समाधान प्राप्त हुआ है, वह है अंगुलिमाल का ही अंग-विशेष अंग। अर्थात अंगुलि यानी उंगली।
बुद्ध से मिलने के बाद अंगुलिमाल समझ गया कि उसे दुख है और उसके दुख का कारण उंगली है, उसके चलते ही पीड़ादुख है और अगर इस उंगली-प्रकरण को समाप्त कर लिया जाए तो उसके पीड़ा-दुख-कारण का समूल निदान कर सकता है।
अंगुलिमाल ने जिन भी लोगों की उंगली काटी, वे किसी न किसी कारण से उसके जीवन में उंगली करते रहे थे, जिसके चलते अंगुलिमाल ही नहीं, बल्कि पूरा सामाजिक असंतुन की हालत बिगड़ती जा रही है। लोगों में दूसरों के उंगली करने की प्रवृत्ति के चलते ही उंगली-त्रस्त लोग भड़क जाते थे। लेकिन असहाय भाव के चलते शांत ही रहते थे। लेकिन अंगुलिमाल ऐसा शांत-भावी नहीं था। उसने दोनों की उंगली करनी वाली पाप-प्रवृत्ति का जवाब उनकी उंगली काट कर अपने कंठ-माला बुनने का संकल्प कर लिया।
लेकिन बुद्ध से भेंट के बाद ही बुद्ध को प्रज्ञा प्राप्त हो गयी। वह बुद्ध के चरणों में लम्बलोट हो गया।
कारण यह कि उसे महात्मा बुद्ध के तौर पर कम से कम एक व्यक्ति मिल ही गया जो अंगुलिमाल के उंगली नही करता था। अंगुलिमाल ही नहीं, किसी के भी उंगली नहीं करता था बुद्ध। और चूंकि बुद्ध ने अंगुलिमाल को उंगली नहीं की, इसलिए अंगुलिमाल ने भी बुद्ध की उंगली नहीं काटी। इतना ही नहीं, उसने बुद्ध के बाद से किसी भी व्यक्ति की उंगली नहीं काटने का अभियान समाप्त कर दिया। सदा-सदैव के लिए।
साधु साधु साधु
लेकिन वह आज हालात बदल चुके हैं और उंगली करने वालों की संख्या बेतहाशा बढ़ गयी है। लेकिन दुख की बात है कि इस युग में अंगुलिमाल नहीं बचे हैं।
यानी कारण तो आजकल मार्किट में हचाहच उंगलियां बेहिसाब हैं जो इसे-उसे उंगली करने को तत्पर हैं। आज प्रश्न तो उपस्थित है, लेकिन समाधान अन्तरधान हो चुका है।
तो चलिये, अब हम आह्वान करते हैं अंगुलिमालों का।
उत्तिष्ठ अंगुलिमाल, जागो। उंगली करने वालों की संख्या उत्तरोत्तर बढ़ती ही जा रही है, तुम अपने धर्म पर सक्रिय-उद्धत हो जाओ महामना उंगलिमाल।
आओ, हम तुम्हारा आह्वान करते हैं।
तुम उंगली करने वालों का समूल नाश करो।
साधु साधु साधु
बहुत अच्छा।