रिया को क्‍यों पकड़ा ? गांजा, चरस तो मैंने भी खूब पी

दोलत्ती

: मामला था सुशांत की हत्‍या का, रिया गिरफ्तार हुई गांजा पीने के आरोप में : हर गली, गांव, मोहल्ले, साधुओं के डेरे, नगा बाबाओं के अड्डे पर यही गांजा चौबीसों घण्टे धौंका जाता है :

कुमार सौवीर

लखनऊ : इतिहास में अब यह भी दर्ज किया जाएगा कि घिनौने राजनीतिक स्‍वार्थों के लिए बुने गये षड्यंत्रों के तहत एक युवती को गांजा पीने के आरोप में निर्वस्त्र करने जैसी साजिश बुनी गयी। रिया की आज हुई गिरफ्तारी साबित करती है कि मुल्‍क में अब अराजकता का दौर अब लम्‍बे वक्‍त तक छाया रहेगा। जी हुजूर। अब आप 45 बरस पहले लगाये गये आपातकाल से भी भयावह दौर से गुजरने के लिए तैयार रहिये।

एफआईआर के हिसाब से सीबीआई को सुशांत सिंह की हत्या की गुत्थी सुलझाने के लिए रिया को पूछताछ के लिए बुलाया था। अचानक यह खबर आई कि रिया ड्रग्स यानी मारिजुआना लेती थी। अब जरा समझने की कोशिश कीजिये कि मारिजुआना है क्या।

मरिजुआना। हिंदी और भारत से परिचित लोग इसे गांजा कहते हैं। भांग स्त्री भाव में है, जबकि गांजा पुरुष भाव में प्रभावकारी। दोनों ही पौधों की पहचान कर पाना आम आदमी की नजर में असंभव होता है। हर गली, गांव, मोहल्ले, साधुओं के डेरे, नगा बाबाओं के अड्डे पर यही गांजा चौबीसों घण्टे धौंका जाता है। मैंने भी सन-81 से 84 तक गांजा पिया है। लेकिन ज्यादा नहीं। मुझे गांजा का नशा बिल्कुल भांग के नशे जैसा ही लगता था। साधुओं की संगत में कभी पी लेता था। एक दिन एक साधु ने मुझे एक अद्भुत चीज चिलम में पिलवा दी। पूछा, तो साधू बोला:-यह चरस है।

फिर तो जब भी मैं परेशान हुआ करता था, तो चरस खोजा करता था। अप्रतिम सुगंधि होती है चरस में, और गांजा में भी। फर्क सिर इतना कि भांग से दिमाग चक्करघिन्नी और उठापटक कराता है, जबकि चरस का आनंद सर्वोपरि भाव में आपको चैतन्‍य बनाये रखता है। लेकिन इन दोनों ही नशों में अपराध करने क प्रेरणा, ग्‍लानि, अपराध-बोध, या नैराश्‍य की स्थिति नहीं बनती है। किसी भी स्थिति में। भारतीय सांख्यकीय सेवा के अनिल मलिक ने दिल्ली में मुझे खूब पिलाया। एक बार पी लिया, तो आनंद के सागर में आनंद ही आनंद। अनिर्वचनीय। न रात को कोई दिक्कत, न दोपहर को बवाल, और सुबह को तनिक भी कोई टेंशन नहीं। पाखाना ऐसा और इस तरह साफ होता है, जैसे एटीएम मशीन में खटाखट गिनते-गिरते नोट। कोई झांसा नहीं, यह नहीं कि पंद्रह लाख रुपये एकाउंट में मिल जाएंगे। आत्‍मविश्‍वास बना रहता है।

नशा तो झूट पर झूट बोलने पर होता है, चीन-नेपाल से लात खाकर पाकिस्तान को गुर्राने में होता है, दल बदल पर होता है, सरकारें पलटने में होता है, अपराधियों को राष्ट्र भक्त कहलाने में होया है,कोरोना को शुरुआती दौर में मजाक बनाने में होता है, मुसलमानों से घृणा करने में होता है, मरकज को गाली देने में होता है, रिजर्व बैंक को खाली करने में होता है, लाशों को न गिनने में होता है, देश को मूर्ख बनाने में होता है, मानव को भक्त में तब्दील करने में होता है।

डब्ल्यूएचओ यह भी कहता है कि कुछ अध्ययन के मुताबिक कैंसर, एड्स, अस्थमा और ग्लूकोमा जैसी बीमारियों के इलाज के लिए गांजा मददगार है। कीमोथैरेपी के बाद यह न केवल दर्द से राहत देता है बल्कि क्लीनिकल प्रयोग बताते हैं कि यह कैंसर की कोशिकाओं को विकसित होने से भी रोकता है। चिकित्सा में गांजे के शुरुआती प्रयोग की जानकारी 1500 ईसवीं पूर्व अथर्ववेद में मिलती है। इस प्राचीन ग्रंथ में भांग का उल्लेख है जो गांजे का ही एक रूप है। इसे पांच प्रमुख पौधों में से एक माना जाता है। होली के पर्व पर भी आज भी भांग के खाने की परंपरा है। प्राचीन चिकित्सीय ग्रंथ सुश्रुत संहिता में गांजे के चिकित्सीय प्रयोग की जानकारी मिलती है। सुस्ती, नजला और डायरिया में इसके इस्तेमाल का उल्लेख मिलता है।

अध्ययन में बताया गया है कि गांजे में पाए जाने वाले कैनाबाइडियॉल (सीबीडी) से क्रोनिक पेन का सफलतापूर्वक इलाज किया जा सकता है और इसके विशेष दुष्परिणाम भी नहीं हैं। इंडियन जर्नल ऑफ पैलिएटिव केयर के संपादक और मुंबई स्थित टाटा मेमोरियल सेंटर में असोसिएट प्रोफेसर नवीन सेलिंस का कहना है कि सीबीडी सकारात्मक नतीजे देता है।

संयुक्त राष्ट्र के पूर्व जनरल सेक्रेटरी कोफी अन्नान कहते हैं कि शुरुआती रुझान बताते हैं “जहां गांजे को वैद्यता प्रदान की गई है, वहां ड्रग और इससे संबंधित अपराधों में बढ़ोतरी नहीं हुई है। हमें यह सावधानी से तय करना पड़ेगा कि किसे प्रतिबंधित किया जाए और किसे नहीं। ज्यादातर गांजे का प्रयोग विशेष अवसरों पर होता है और यह किसी समस्या से भी नहीं जुड़ा है। फिर भी इससे होने वाले संभावित जोखिमों के कारण इसे विनियमित करने की जरूरत है।”

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