कुमार सौवीर का चिराग तो बहुत पहले ही बुत जाना चाहिए था

बिटिया खबर
: नहीं, मैं आप लोगों से अपने लिए दुआ की गुजारिश नहीं कर रहा : मुझ जैसे शख्स के बाद रिसर्च कीजिए कि पूरी जिन्दगी निहायत प्रतिकूल हालातों के बावजूद मेरी कमबख्त उम्र इतनी लम्बी कैसे चलती रही : जीवन की जिजीविषा का मूल-मंत्र आपको शोध के नतीजों से ही मिलेगा :
कुमार सौवीर
लखनऊ : आज से करीब 24 बरस पहले सिर में खिंचाव जैसी दिक्कत होने पर मैंने लखनऊ के सिविल अस्पताल जाकर वहां के प्रमुख अधीक्षक डॉ एचपी कुमार से बात की थी। डॉ कुमार मेरे पापा को बड़े भाई की तरह सम्मान देते थे, इस लिहाज से मैं उन्हें अंकल कहता था। बाद में वे प्रदेश के स्वास्थ्य और चिकित्सा विभाग के महानिदेशक और उसके बाद सहारा हॉस्पिटल के एमडी बन गये थे। खैर, उस दिन वे मुझे लेकर सिविल अस्पताल में ही सीनियर हार्टस्पेशलिस्ट और डीएम डिग्री प्राप्त डॉ आरके मिश्र के पास ले गये। बोले:- यह मेरा बेटा है।
डॉ मिश्र ने मुझे थॉरोली चेक किया, पाया कि मैं खतरे में हूं। वजह है हाई ब्लड-प्रेशर। उन्होंने जो बताया उससे मैं समझा कि बाकी दिक्कतों के साथ ही मेरा रक्त-चाप 26 से 28 के बीच एक बार धीमा हो जाता है। यानी एक बार रक्त-संपंदन का धक्का रूक जाता है। न जाने कुछ ऐसा-वैसा ही कुछ बताया था डॉ आरके मिश्र ने। दवा शुरू हो गयी। सन-03 में जोधपुर में मेरी तबियत फिर बिगड़ी, तो दवाएं कुछ बदलीं और पता चला कि यह रक्त-संपंदन अब 17 से 18 के बीच दिक्कत करने लगा है।
फिर बनारस और जौनपुर की पोस्टिंग के दौरान ( सन-04 ) यह धड़कन 7 से 9 के बीच रूकने लगी। सन-08 के आसपास यह धड़कन का क्रम 6 से 7 के बीच बाधित होने लगा। कि अचानक 23 दिसम्बर-11 को मेरा ब्रेन-स्ट्रोक हो गया। दिमाग के कम्प्यूटर की हार्ड-डिस्क ही ससुरी फॉरमेट हो गयी। छह महीना तो थोड़ा-बहुत समझने में ही लग गया।
सन-15 के आसपास मैंने महसूस किया कि यह अवरोध 5 से 6 के बीच उतर गया है। पिछले हफ्ते प्रख्यात न्यूरोलॉजिस्ट कमर अब्बास डीएम ने मुझे कई जांचें कराने को कहा, लेकिन अचानक मुझे अपनी बेटी साशा सौवीर के साथ जौनपुर जाना पड़ा। जांचें लटक गयीं। मगर इतना तो पता ही चल गया कि मेरे धड़कनों की उठापटक ने ही मुझे सन-11 में मस्तिष्क-आघात करा दिया था।
पिछले चार दिनों से मैं अचानक हाई ब्लड-प्रेशर से जूझ रहा हूं। जौनपुर में गया था, वहीं पता चला कि यह हालत 190: 140 तक बिगड़ चुकी है। खैर, डॉ श्यामसूरत द्विवेदी और उसके बाद डॉ एचडी सिंह के यहां काफी सुधार हासिल कर जब मैं लखनऊ पहुंचा तो डॉ एसडी सिंह ने बताया कि रक्त-धक्कों की यह हालत एक से दो बीच उतरती जा रही है।
मुझे नहीं पता कि इसका अंजाम क्या और कब सामने आयेगा। इस बारे में ज्यादा सोचने की जरूरत भी नहीं समझता हूं मैं। मेरी जिन्दगी ही हादसों की दास्तानों से भरी-अटी पड़ी है।
नहीं नहीं, मुझे गलत मत समझिये। मैं आप लोगों से अपने लिए दुआ की गुजारिश कत्तई नहीं कर रहा हूं, और न ही मेरा ऐसा कोई मकसद ही है।
मैं तो सिर्फ यह अनुरोध कर रहा हूं कि आप लोगों को मुझ जैसे शख्स के बाद उस पर बाकायदा एक रिसर्च किया जाना चाहिए, कि आखिर पूरी जिन्दगी निहायत प्रतिकूल हालातों के बावजूद मेरी कमबख्त उम्र इतनी लम्बी कैसे चलती रही।
जीवन की जिजीविषा का मूल-मंत्र आपको मुझ पर होने वाले शोध के नतीजों से ही मिलेगा मेरी जान !
चलो, नमस्‍ते तो कर लिया जाए

4 thoughts on “कुमार सौवीर का चिराग तो बहुत पहले ही बुत जाना चाहिए था

  1. सौवीर साहब,
    हम आपके उन चंद अनुगामियों में से हैं जिन्हें आपके दैहिक-मानसिक दशाओं के क्षैतिज्य अवस्था में पहुंचने से पूर्व आपके कॅरियर के उरूज़ काल में आपके सान्निध्य में रहने,दो पग साथ चलने का सुख प्राप्त हो पाया।कालांतर में, हम जानते हैं,आप अत्यंत ही प्रतिकूल परिस्थितियों में मुस्कानाट्टहास के साथ अपने क्रूर भाग्यदंश को चुनौती देते,एक अवधूत की भांति पूरी दशा-दिशा को अपनी मस्त बनारसी-गाजीपुरी शैली में ठेंगा दिखाते जीवन की विभीषिकाओं को कहीं तैर के,कहीं डूब के,और कहीं हलक के पार करते रहे। हमने उस कीर्त्तियात्री को भी देखा। “मुहब्बत करने वाले भी,ग़ज़ब खुद्दार होते हैं/जिगर पर दर्द लेंगे,दर्द पर मरहम नहीं लेंगे” सदृश, आप सदैव “हार नहीं मानूंगा” शैली में आधि-व्याधि के बावजूद अपनी लेखन-तपश्चर्या में अहर्निश लगे रहे।यही आपकी जिजीविषा का
    अनुकरणीय रहस्य है।
    आपको नमन है।
    आप अपनी यात्रा के सोपानों का सफल आरोहण करते रहें,एक देदीप्यमान नक्षत्र की भांति,सदैव।
    “गगन के सिपाही गगन बेच देंगे,
    चमन के सिपाही चमन बेच देंगे;
    कलम के सिपाही,अगर सो गये तो
    वतन के सिपाही वतन बेच देंगे।”
    उत्तिष्ठत।
    जाग्रत।।
    प्राप्य वरान्निबोधत।।।

  2. देखो, मानवता हित में उचित तो यही रहेगा कि धड़कनें शून्य बटा सन्नाटा होने से पहले महामानव चंडीगढ़ पधारें! यहॉं पीजीआई में और कुछ हो न हो दिवंगत आत्माओं का वर्चुअल संरक्षण और पार्थिव शरीर का छेदन मर्दन बहुत तबीयत से होता है! सौवीर जैसे महाप्राण के महाब्रहमणत्व की गरिमानुकूल महाप्रयाण व्यवस्था हेतु संजय गॉंधी जैसे स्वनामधन्य प्रतिष्ठित पीजीआई की जगह पीजीआईएमईआर चंडीगढ़ सर्वथा उपयुक्त रहेगा! शेष जैसी यमराज की कृपा, यमदूतों को भरमाने में भी पीजीआई की ऐतिहासिक प्रतिष्ठा है. जेपी उर्फ़ जय प्रकाश नारायण का क़िस्सा याद है न!!

  3. चिन्ता नक्को। डॉ की बात मानते रहिए बस।
    अभी तो नाती/नातिन के साथ खेलना खिलाना भी है।
    अघोरियों से यमदूत भी घबड़ाते रहते हैं।

  4. जिसके साथ राम है उसकी बत्ती गुल नहीं होती।

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