खामोश: भाजपा की जीत की असल वजह तो तुम खुद हो

मेरा कोना

: अंध-विरोध के अलमबरदार सेक्‍युलरों ने गुजरात चुनाव में अपनी आंखें ही फोड़ रखी थीं : इतने अंधे बने रहे कि जमीनी धारा को महसूस तक नहीं कर पाये : हरकतें ही भाजपा-विरोधी लोगों ने सेक्‍युलरों से मिली-भगत में भाजपा-विरोधी धुंध का हवाई इल्‍यूजन पैदा किया :

कुमार सौवीर

लखनऊ : सवाल हिमाचल प्रदेश का नहीं, गुजरात का था, जहां से असल संदेश आना था कि देश की जनता क्‍या चाहती है। लो, आ गया फैसला। तय हो गया कि देश यह चाहती है। फिर इसके पहले इतना हल्‍ला-गुल्‍ला काहे कर रहे थे आप। क्‍या आपको क्‍या पता नही था कि गुजरात में क्‍या फैसला होना था। पता था, लेकिन आप शुतुरमुर्ग की तरह अपना चेहरा बालू में घुसेड़े रहे थे। खुशमिजाजी का रस चूस रहे थे, कि जनता ने अपने जूते निकाल रखा है, और 18 दिसम्‍बर को ही भाजपा, मोदी और अमित शाह के चेहरे पर तान कर मारेंगे। दरअसल, आपको खूब पता था कि गुजरात में क्‍या होना था। लेकिन आप केवल अपने सपनों के गुब्‍बारे फुलाने में व्‍यस्‍त थे। इतना ज्‍यादा फूंक मार डाली कि पूरा गुब्‍बारा ही फट कर चीथड़े हो गया।

सच बात तो यह है कि गुजरात में भाजपा की जीत नहीं, बल्कि आपकी खुद की हार है। आपके थोथे दावों और सपनों की हार है, जो शुरू से ही निराधार थे। आप केवल चिल्‍ल-पों करते रहे, मोदी सी-प्‍लेन तक पर फर्राटा भरते रहे। वह जमीन पर रहे, आप हवा में। उसके पांव जमीन में और भी ज्‍यादा गहरे तक जम गये, जबकि आप सीधे आसमान में कुछ ऐसा गिरे, जहां खजूर का पेड़ तक नहीं था।  यह हार है आपके शोर-शराबे की।

सच कहूं, तो यह जीत गुजरातियों की हार-जीत की उतनी नहीं है, जितनी कि आपके खुद के गलगप्‍पों की है। सबसे बड़ा ज्‍यादा करारा तमाचा तो खुद आप के चेहरे पर पड़ा है। जिसमें भाजपा-विरोधी लोग हैं, जिनका कोई दमखम नहीं। उन्‍हें केवल राजनीतिक लाभ ही दीखते हैं। हां, कुछ सेक्‍युलर लोग भी उसमें शामिल हैं, जो बुद्धिजीवी होने का पाखण्‍ड करते हैं। लेकिन हैरत की बात है कि पूरी की पूरी मुसलमान जमात भी इस गधा-पचीसी में सीपों-सीपों ही करती रही। उन्‍हें हकीकत नहीं दीखती है, केवल भाजपा, नरेंद्र मोदी, अमित शाह के प्रति नफरत, घृणा, लानत-मलामत ही सूझता है। वे यह भी नहीं सोचते कि नरेंद्र मोदी देश के निर्वाचित प्रधानमंत्री हैं, आपके इज्तिमा-मजलिस के चपरासी-अर्दली नहीं। नरेंद्र मोदी में अधिसंख्‍य जनता की आह्लाद-सिक्‍त भावनाएं लिप्‍त हैं, आपकी नाराजगी-घृणा नहीं। आप किसी भी मुसलमान की फेसबुक वाल बांच लीजिए, वहां मोदी के लिए गालियां ही गालियां मिलेंगी। सवाल यह है कि आप को आखिर चाहिए क्‍या। अगर जनता ने तय कर लिया था कि मोदी ही पीएम बनेंगे, तो आपको क्‍यों खुजली हो रही है।

सेकुलर-विचारक भी अपनी दाढ़ी बढ़ाये चुनाव विश्‍लेषण में जुटे थे। योगेंद्र यादव उसमें अव्‍वल हैं। उन्‍होंने तो ऐलान कर दिया था कि गुजरात का नतीजा मोदी को अरब सागर तक बहा ले जाएगा। दैनिक जनसत्‍ता अखबार में पत्रकार मेरे मित्र असरार खान ने कल दोपहर को लिखा था कि:- मेरे सर्किल में ज्यादातर लोग यही कह रहे हैं कि exit पोल के अनुमान गलत साबित होंगे ….और कल की गिनती में भाजपा की हार तय है जो भी हो लेकिन exit पोल के अनुमानों पर पहली बार इतना ज्यादा अविश्वास देख रहा हूँ …। गुजरात में भाजपा की हार का अनुमान लगाने वाले लोग यही कह रहे हैं कि यूं तो हर कोई मोदी के खिलाफ है और दिन भर उनकी आलोचना भी कर रहा है तो फिर भाजपा को किसने वोट दिया होगा जो वह जीत जाएगी ….?

मगर जब मैंने उनकी वाल पर यह राय दर्ज की तो वे केवल लाइक करके आगे बढ़ गये:- हो सकता है कि आपकी बात सच हो, क्योंकि आपके सर्कल के लोग आपको बता चुके हैं। लेकिन यह भी तो सोचिये कि हो सकता है कि वो अपने फ्रस्टेशन निकल रहे हों। तो असरार भाई, दरअसल सर्किल को ही खोल कहा जाता है। आपसे गुजारिश है कि आप इस खोल से बाहर आइये। हर जीत तो होती ही रहती है। जरूरी होता है सच, और उसको बर्दाश्त करने का माद्दा।

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