: ऐसे-वैसे पत्रकार, मेरे सवालों पर झुंझलाया, फिर रिमूव किया : मुझ को गुरूदेव पुकारा, और मुझ ही से गुरू-घण्टाली शुरू कर दी : अब सवाल यह कि ऐसे लोगों को घुटा दलाल न क्यों पुकारा जाए : साथी की छवि बर्बाद करने वाले बिकाऊ और दलाल ही :
कुमार सौवीर
संतकबीर नगर : आपको एक ऐसे व्यक्ति से हुई बातचीत का ब्योरा बताना चाहता हूं, जो पत्रकारिता के मूल्यों को बेच डालने की सारी साजिशें बुनता है। वह तो गनीमत है कि यह शख्स कुमार सौवीर के हत्थे चढ़ गया, अन्यथा उसके खेल के चक्कर में न जाने कितने लोग आज खून के आंसू बहाने पर मजबूत हो जाते। यह शख्स खलीलाबाद में पत्रकारिता में सड़ांध कर रहा है। लेकिन ऐसा भी नहीं कि ऐसे लोगों की तादात केवल खलीलाबाद में है। कम से कम हिन्दी भाषा-भाषी क्षेत्रों में ऐसे पत्रकार कलंकों की भरमार है। लेकिन चूंकि हम ऐसे लोगों की करतूतों का विरोध नहीं करते, सोचते हैं कि क्या ऐसे लोगों के मुंह क्यों लगा जाए। इसीलिए हालत लगातार बदहाल ही होती जा रही है। लेकिन मेरा दावा है कि अगर हम सब लोग तय कर दें कि हम ऐसे लोगों को बेनकाब कर देंगे, तो हालात में उत्तरोत्तर सुधार होता जाएगा।
खलीलाबाद से जुड़ी खबर को पढ़ने के लिए निम्न लिंक पर क्लिक कीजिए:-
बहरहाल, आज हम आपको बताते हैं उस शख्स से वाट्सऐप पर हुई बातचीत का ब्योरा, जिसमें इस पत्रकार ने पूरी पत्रकारिता के चेहरे पर कालिख पोत डाली है। इस पत्रकार का नाम है अजय श्रीवास्तव, और इस समय वह जी-हिन्दुस्तान चैनल में स्ट्रिंगर के तौर पर काम कर रहा है। तो यह खबर कुछ इस तरह थी, जिसका जिक्र मैंने पिछली खबरों में किया था। खबर में उमेश भट्ट को जेल भेजने वाली खबर का जिक्र था। अजय श्रीवास्तव चाहता था कि मैं उमेश भट्ट की छीछालेदर करूं। उसने एक किसी शख्स का नाम देकर उमेश भट्ट के खिलाफ खबर लिख भेजी। लेकिन समस्या यह है कि मैं ऐसा कर ही नहीं सकता। यह कैसे हो सकता है कि कोई मुझे अपने स्वार्थों की राह में मुझे अपना अस्त्र-शस्त्र बना ले। बिना सच को खंगाले मैं ऐसा कभी भी नहीं करता।
इसीलिए मैंने मामले की तह तक पहुंचने की कोशिश की। तो मेरे होश ही उड़ गये। पता चला कि उमेश भट्ट एक जुझारू पत्रकार है, और उसके खिलाफ एकजुट होकर अफसरों और अजय श्रीवास्तव जैसे लोगों ने मिल कर साजिश तैयार की। नतीजा उमेश को जेल भेज दिया गया। मेरे हिसाब से तो ऐसी पूरी साजिशें तो किसी भी समर्पित, जुझारू और ईमानदार पत्रकारिता के सेनानियों की हत्या से कम नहीं होती है। अब सुन लीजिए कि अजय श्रीवास्तव द्वारा तैयार की गयी उस खबर पर जब दो दिन लग गये, तो अजय बुरी तरह परेशान हो गया। ऐसे में अजय श्रीवास्तव ने मुझे एक पत्र लिखा कि:-
“अजय श्रीवास्तव : प्रणाम गुरुदेव उपरोक्त खबर को प्रकाशित करने का कष्ट करें ।।
कुमार सौवीर : ओके। गुड न्यूज। इसे लगाता हूं। लेकिन कुछ जानकारियां चाहिए। पहला तो यह कि उस महिला बीडीओ का नाम। आपने जिस शैलेश सिंह राजन का नाम दिया है, उसका पता, उसका फोन नम्बर, वह किस चैनेल का पत्रकार है, और सभी का फोन नंबर भेजिए। और हां, यह भी बता दीजिएगा कि आखिर यह खबर राजन ने क्यों नहीं भेजी, उसके लिए आपने अपने माध्यम की क्यों जरूरत महसूस की। यह मामला स्पष्ट नहीं हो पायेगा तो संदेह भड़क पड़ेगा।
अजय श्रीवास्तव : बेबाक कलमकार कुमार सौवीर को पहली बार इतनी पड़ताल करते देखा । धन्यवाद।
कुमार सौवीर : इसीलिए कहता हूँ कि अपनी आँखें खुला रखिये।
गलतफहमी नही होगी।
फिर मेंहदावल वाले शैलेश राजन के नाम से आपको खबर लिखने, लिखाने की जरुरत नहीं पड़ेगी। जो भी होगा, सीना ठोंक कर लिखा करेंगे आप।
और हां, अजय श्रीवास्तव जी। दरअसल, मैं सिर्फ सुलेख नहीं लिखता, जड़ तक घुसने की कोशिश करता हूँ। क्या समझे? इसीलिए मुझसे भिड़ने की औकात नहीं जुटा पाते है अधिकाँश लोग।”
बस, सिर्फ इतनी ही बातचीत हुई वाट्सऐप पर अजय श्रीवास्तव से मेरी। अजय श्रीवास्तव यानी खुद को जी-हिन्दुस्तान का संवादसूत्र बताता है। उसके बाद से ही अजय का कोई जवाब नहीं आया, तो मैंने ही मामले की तफतीश करना शुरू कर दिया। पता चला कि अजय श्रीवास्तव को बड़े खिलाड़ी हैं, जिनकी राम-धुन खलीलाबाद की हर गली-चौराहे पर बजती-सुनती है। जबकि उमेश भट्ट एक सरल, लेकिन जुझारू पत्रकार है। उसका जन्म ही पत्रकारिता के लिए हुआ है।
बहरहाल, अजय श्रीवास्तव से हुई बातचीत के दूसरे दिन ही अजय श्रीवास्तव ने मुझे अपने वाट्सऐप ग्रुप सत्यमेव जयते से रिमूव कर दिया।
पत्रकारिता से जुड़ी खबरों को देखने के लिए निम्न लिंक पर क्लिक कीजिए:-
अच्छा ही किया तुमने अजय श्रीवास्तव। मैं वैसे भी हराम की कमाई से बने और हराम की कमाई के बल पर सत्यमेव जयते जैसे राष्ट्रीय भावनाओं से ओतप्रोत को गंदा करने वाली साजिश में कत्तई भी शामिल नहीं होना चाहता। लेकिन अब यह कत्तई बर्दाश्त नहीं कर पाऊंगा कि तुम या तुम जैसे लोग उमेश भट्ट जैसे जुझारू पत्रकारों पर हमला करें। यकीन मानो, और कोई साथ हो या नहीं हो, लेकिन मैं हमेशा उमेश भट्ट जैसे पत्रकारों के साथ हमेशा रहूंगा, जब तक वे पत्रकारिता के मूल सिद्धांतों पर अडिग रहेंगे। (क्रमश:)
खलीलाबाद का किस्सा है यह, जहां दलाल पत्रकारों ने अपने ही उस साथी को जेल भेजने की साजिशों का तानाबाना बुना, और फिर उनके खिलाफ दुष्प्रचार का अभियान भी छेड़ दिया। उमेश भट्ट नाम का यह पत्रकार ऐसे ही साजिशों के चलते इस वक्त संतकबीर नगर के जिला कारागार में बंद है। लेकिन उसे जेल भेजने पर उसके ही पत्रकारों ने जम कर अभियान छेड़ा और मिठाइयां भी खायीं-बांटीं। यह जानते हुए भी कि उमेश भट्ट की पहचान एक जुझारू और प्रतिबद्ध पत्रकार के तौर पर है।
आप के आसपास भी ऐसे ही कथित दलाल लोगों और उमेश भट्ट जैसे पत्रकारों की कहानियां मौजूद होंगीं। आइये, ऐसे दलालों को बेनकाब किया जाए, और उमेश भट्ट जैसों को न्याय दिलाने के लिए कदम उठाया जाए। आइये, प्रमुख न्यूज पोर्टल मेरीबिटियाडॉटकॉम की इस मुहिम में हाथ बंटाइये, हाथ बढ़ाइये।
इस खबर की अगली कड़ी को पढ़ने के लिए कृपया निम्न लिंक पर क्लिक कीजिएगा:-