अब दैनिक जागरण ने पटना में थूक कर चाटा

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: प्रसार संख्‍या से जुड़े झूठे दावों का खुलासा होने पर जागरण की कलई उतरी : पटना संस्‍करण के पृष्‍ठ तीन पर छापा है जागरण ने खेद-प्रकाश : लेकिन उजाला के मुकाबले जागरण ने ज्‍यादा धूर्तता का प्रदर्शन किया :

कुमार सौवीर

लखनऊ : लगता है कि हिन्‍दी भाषा-भाषा इलाकों में छपने वाले अखबारों में झूठ बोलने और फिर उसका खुलासा होने के बाद सार्वजनिक रूप से थूक कर चाटने की होड़ लग गयी है। लखनऊ में 29 सितम्‍बर-17 को अमर उजाला ने एक बड़ा माफीनामा छापा था, जिसको लेकर अमर उजाला के प्रतिद्धन्‍द्धी अखबार दैनिक जागरण के लोगों ने बाकायदा जश्‍न मनाया था। लेकिन आज खुद जागरण अखबार की साख पर आज एक जबर्दस्‍त ठोकर पड़ी है। झूठ के बल पर अपनी साख बढ़ाने और प्रसारित करने की साजिशों का खुलासा हो जाने के बाद 7 अक्‍तूबर-17 को दैनिक जागरण ने भी बाकायदा अपनी करतूतों के लिए माफी मांगते हुए उसका सार्वजनिक क्षमायाचना भी प्रकाशित की है। हालांकि इस माफीनामा में भी उजाला प्रबंधन की ही शैली में जागरण ने भी काफी साजिश की, और इस माफीनामा को शुद्धिपत्र के शीर्षक के तौर पर छापा। हालांकि बेहद शातिराना अंदाज में जागरण ने इस मामले को सामान्‍य खेद शब्‍द का प्रयोग किया है, जबकि अमर उजाला ने बिना किसी लाग-लपेट के इसके लिए अपना अपराध मान लिया था और उसके लिए बाकायदा क्षमायाचना शब्‍द का भी इस्‍तेमाल कर लिया था। लेकिन जागरण वाले बेहद बड़े वाले साबित हुए।

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आपको बता दें कि लखनऊ के अमर उजाला अखबार ने आठ दिन पहले ही अपने एक झूठ का खुलासा होने पर उसकी माफी छाप दी थी। 29 सितम्‍बर-17 के पृष्‍ठ नंबर 3 पर इस बारे में सार्वजनिक नोटिफिकेशन भी छापा गया है, जिसमें साफ कहा गया है कि अमर उजाला प्रबंधन अपनी इस गलती के लिए अपने पाठकों, विज्ञापनदाताओं और बिजनेस साझेदारों से क्षमा याचना चाहते हैं। यह नोटिफिकेशन बाकायदा किसी विज्ञापन की शैली में छापा गया है। तीन कॉलम में छापे गए इस माफीनामे में इसे माफीनामा के बजाय शुद्धिपत्र के तौर पर पेश किया है। कहने की जरूरत नहीं यह इस माफीनामा को शुद्धिपत्र के तौर पर पेश करना अमर उजाला प्रबंधको के कुत्सित तो नहीं लेकिन निहायत बचकाना हरकतों में से जरूर शामिल किया जा सकता है।

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यहां हम आपको बता दें इस महीने अमर उजाला के लखनऊ संस्करण में अपना एक प्रचार कैंपेन छेड़ा था। शिक्षक दिवस के पुनीत पर्व पर यह शुरू हुए इस कैंपेन में अमर उजाला ने साफ तौर पर खुद को लखनऊ का नंबर वन समाचारपत्र होने का दावा किया था। लेकिन यह मामला उतना आसान नहीं हुआ जितना सामान्य तौर पर विभिन्‍न अखबार कर डालते हैं। आपको बता दें कि किसी भी अखबार की छपनी वाली प्रतियों का हिसाब रखने और जांचने का काम ऑडिट ब्‍यूरा आफ सर्कुलेशन के सामने लखनऊ के छपने वाले बड़े अखबारों ने हस्तक्षेप किया और अपना दावा करते हुए कहा कि अमर उजाला की यह कैंपेन पूरी तरह झूठी है, बेबुनियाद है, और भ्रामक भी है, जिसका मकसद दूसरे अखबारों के मुकाबले अपना झूठी शान बढ़ा चढ़ाकर पेश करना और परिणाम स्वरुप विज्ञापन का हिस्सा ज्यादा हड़पना ही रहा है।

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सर्कुलेशन एजेंसीज ने इस मामले को तत्काल हस्तक्षेप कर चेक किया और पाया कि उनको मिली आपत्तियां बिल्कुल सही है। एजेंसी ने पाया कि अमर उजाला ने बिल्कुल साफ झूठ बोलकर यह कैंपेन शुरू की थी इस पर सर्कुलेशन के लिए जिम्मेदार ऑडिट ब्यूरो ऑफ सर्कुलेशन ने कड़ी कार्रवाई कर अमर उजाला को चेतावनी जारी कर दी। जिसके रामस्वरूप अमर उजाला ने 29 दिसंबर सितंबर 2017 को बाकायदा एक माफीनामा प्रकाशित किया है। यह कहना बहुत जरूरी है कि अमर उजाला की छवि लखनऊ से छपने वाले बाकी अखबारों से बिल्कुल अलग रही है। खासतौर खबरों के मामले में अमर उजाला का प्रस्तुतीकरण और विश्वसनीयता जिगर अखबारों के मुकाबले कहीं ज्यादा विश्वसनीय और धरातल पर चाची पर की हुई मानी जाती हैं। जहां बाकी अखबार बिल्कुल झूठे और फर्जी आंकड़ों को बड़ी खबरों के तौर पर पेश करें देते हैं।  अमर उजाला की संपादकीय टीम उस पर कड़ी नजर नजर रखती है।

जबकि जागरण ने अपने माफीनामे में गजब तोडमरोड़ की है। जागरण ने क्षमायाचना शब्‍द का प्रयोग ही नहीं किया, और लिखा कि ऑडिट ब्‍यूरो आफ सर्कुलेशन( एबीसी) ने इंगित किया है कि दैनिक जागरण पटना ऑडिट अवधि जनवरी-जून-2016 से एबीसी का सदस्‍य बनने के बाद पटना में नम्‍बर वन हिन्‍दी प्रकाशन नहीं रह गया है। इसी क्रम में यह क्‍लेम एबीसी के गाईडलाइंस के अनुसार उपयुक्‍त नहीं था। इसलिए उसे वापस लिया जाता है। हमें हमारे पाठकों एवं विज्ञापनदाताओं के लिए इनकरेक्‍ट प्रतीत होने वाले क्‍लेम पर खेद है।

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