कानूनी की दुनिया का संकट, नहीं है महिलाओं के हाथ में लीडरशिप

बिटिया खबर

: मेनका गांधी बनाम भारत ‌संघ का वाद अनुपस्थित क्यों : आदमी अपनी मां के सामने सिर झुकाता हैं लेकिन महिला अधिवक्ता को लीडरशिप नही देना चाहता : क्यों महिला अधिवक्ता को किसी आदमी ‌का‌ प्रोटैक्शन चाहिए : सबका अपना अपना संघर्ष और अपनी अपनी जीवन की यात्रा : वकीलों ‌के नाम खुला ख़त :

शिवानी कुलश्रेष्‍ठ

लखनऊ : मुझे अपनी बात कहने का यहीं उपयुक्त मंच लगता है इसलिए मैं सभी बातों को यहां लिखती हूं। मैंने महसूस किया है कि महिला अधिवक्ताओं को लेकर एक अजीब तरह ‌का परसेप्शन बना हुआ है। या तो लोगों ने कोई विद्वान महिला अधिवक्ता नहीं देखी या फिर पुरुष अधिवक्ता इनसिक्योर हो जाते हैं। वह जलन का भाव रखते हैं। मैं महिलाओं अधिवक्ताओं की गरिमा हनन को लेकर अपनी आलोचना जाहिर करती हूं। मेनका गांधी को पढ़ते हुए, सालों ‌निकल गयें लेकिन क्यों कानूनी बिरादरी में मेनका गांधी बनाम भारत ‌संघ का वाद अनुपस्थित है? कुछ लोग ‌कहते है कि चंद लोगों की‌ वजह से ऐसा परसेप्शन तैयार हुआ लेकिन जो महिलाएं अपने आप को साबित करने के लिए इस क्षेत्र में आईं हैं। उनके लिए माहौल सकारात्मक क्यों नही? अधिवक्ता का काम अपनी ड्राफ्टिंग करना, मुकद्दमे की तैयारी करना और बहस करना होता है। उनका काम इससे इतर नहीं है लेकिन अपनी नकारात्मक सोच की‌ वजह से उनके लिए कितनी चुनौतियां तैयार कर दी जाती है।
मुझे बचपन में ताऊ जी के बेटे ने साइकिल चलाना सिखाईं थी। मैं पालीवाल इंटर कालेज के फील्ड में साईकिल चलाने जाती ‌थी। भैया पीछे से करियर पकड़ लेते थे और फिर छोड़ देते थे। मैं कुछ देर बाद संतुलन खो देती और गिर जाती थी। मेरे पैर में बहुत चोट लगती। मरहम पट्टी ‌करती थी। अभी भी निशान हैं। पापा इंटर में फर्स्ट डिवीजन आने के उपलक्ष्य में मेरे लिए स्कूटी लेकर आयें और मैं वो मुझे ‌भाई ने स्टार्ट करके दे दी। भाई ने कहा कि तुम जाओ और अकेले चलाओ। मैं डिसबैलेंस हुयी लेकिन गिरी नहीं और मैं दूर कहीं निकल गयीं। दूसरे दिन मैं एनएच-टू पर निकल गयीं और टूंडला फिर इटावा पहुंच ‌गयीं क्योकि घर से सपोर्ट था। मुझसे कोई कुछ पूछने ‌वाला और कहने वाला नहीं था। पापा स्कूटी में पेट्रोल डलवा देते थे। मुझे यह नहीं सोचना था कि कैसे पेट्रोल पड़ेगा फिर सहेलियां पेट्रोल डलवा देती। लेकिन वकालत में कहीं कोई ओर छोर नही है। कहीं बाहर केस करने जाओ तो महिला अधिवक्ताओं को लेकर एक परसेप्शन बना लिया है। सब अपने अपने पूर्वाग्रहों से ग्रसित है।
बड़े ‌बड़े शहरों में महिलाओं की शिक्षा को‌ लेकर जागरूकता है। आज से दस-पन्द्रह साल पहले छोटे कस्बों, देहात में लड़कियों को हाईस्कूल, इंटर से अधिक नहीं पढ़ाते थे। सबका अपना अपना संघर्ष और अपनी अपनी जीवन की यात्रा है। हम किसी को अपने पूर्वाग्रहों के अनुसार जज नहीं कर सकते और न करना चाहिए।
कानूनी बिरादरी में काम करने ‌वालों को सोचना होगा कि अधिवक्ता जगत में साथ काम करने ‌वाले भाई‌ बहन और आपस में मित्र भी हो सकते हैं। इतने पढ़ने ‌लिखने के बाद अगर सोच गुणवत्तापूर्ण नहीं हुयीं तो इसका मतलब यह स्वयं‌ के व्यक्तित्व की हार है।
क्यों एक महिला को बाप, भाई और पति ‌की‌ आवश्यकता है? क्यों महिला अधिवक्ता को किसी आदमी ‌का‌ प्रोटैक्शन चाहिए? क्यों चाहिए प्रोटैक्शन? क्या कानूनी बिरादरी में भी ऐसे लोग काम करेंगे? बाहर कीजिए ऐसे लोगों को…. कानूनी ‌बिरादरी की‌ सबसे बड़ी समस्या यह है कि महिलाओं के हाथ में लीडरशिप नही है। आदमी अपनी मां के सामने सिर झुकाता हैं लेकिन महिला अधिवक्ता को लीडरशिप नही देना चाहता। यह सारी लड़ाई सत्ता की लड़ाई है लेकिन जैसे आपके घर में छोटी बहनें हैं, उसी तरह और महिला अधिवक्ता भी आपकी बहन हैं और वह आपकी जिम्मेदारी हैं।
अगर वकील भाई चाह जाएं कि महिला अधिवक्ता एक सकारात्मक माहौल में वकालत करें। डाइस पर बोलें। कानून निर्मित करने में सहयोग करें तो यह समाज महिलाओं के प्रति अपना नज़रिया बदलेगा। यहीं असली महिला सशक्तिकरण है। सिर्फ अपने घर की बहन बेटियों के प्रति जिम्मेदार होने से काम नहीं चलेगा। आपके घर की लड़कियों को बाहर भी निकलना हैं।
वकील, समाज के सोशल इंजीनियर होते हैं। अगर आप महिलाओं को आगे नहीं बढ़ायेगें तो कैसे समाज बदलेगा?

शिवानी कुलश्रेष्‍ठ उत्‍तर प्रदेश की वकील हैं। महिला दिवस के दिन उन्‍होंने यह पत्र वकीलों के नाम पर लिखा था। लेकिन हम तकनीकी और स्‍वास्‍थ्‍य कारणों से उसे तत्‍काल नहीं प्रकाशित कर पाये, इसलिए लिए हम क्षमाप्रार्थी हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *