औरत-मर्द प्रेम में बेवफाई। आखिर हम इंसान ही तो हैं

बिटिया खबर

: दो तीन उबाल के बाद चाय ने एकदम गहरा रंग पकड़ लिया : सदियों पुरानी इस संस्कृति का समाजिक ढांचा लगभग ढहने की कगार पर : लेक भारत और भारतीय संस्कृति के बारे में बहुत कुछ जानती है, दिल्ली, आगरा, मुंबई और जयपुर घूम चुकी : थाईलैंड यात्रा-4 :

अब्‍दुल करीम कुरैशी

थाईलैंड : गूगल मैप पर चेक किया तो लेक का बिल्डिंग एक किलोमीटर से भी कम अंतर पर था, थोड़ी आशंका और घबराहट के साथ साढ़े तीन बजे के आसपास मै लेक के अपार्टमेंट पर था, नीचे से फोन मिलाया तो वो फ़ौरन मुझे लेने आ गई और बड़ी सी चमकदार लिफ्ट द्वारा मुझे उपर ले गई।
फ्लैट में कदम रखते ही फूलों के गुलदस्ते जैसी परंपरागत थाई खुशबू से मन हल्का हो गया, छोटा लेकिन पुरानी शैली के शीशम की लकड़ी वाले फर्नीचर और सभी सुविधाओं से सज्ज लगभग 600 वर्गफीट का सुंदर वातानुकूलीन स्टूडियो था. सामने बुद्धा का आदमकद का चित्र था, शायद वो कोई महंगी कलाकृति थी. दाहिनी तरफ कांच के पार्टीशन से बना हुआ एक बेडरूम था जिसके पर्दे अंदर से खुले हुए थे कांच के आरपार शीशम का विशाल आकर्षक डबल बेड दिख रहा था।
आने में कोई तकलीफ तो नही हुई?
नहीं. मैंने जवाब दिया।
बैठिए हाथ से सोफे की तरफ इशारा करते हुए वो बोली।
58-60 साल उम्र की एक थाई महिला वहां पहले से मौजूद थी।
एक सुंदर सी बड़ी तश्तरी मे ना ना प्रकार के कटे हुए फल और तीन चार लाल रंग के कांटेदार दिखने वाले फल भी थे. सूखे मेवे पानी और ऑरेंज जूस की बॉटल महिला ने मेरे सामने रख दि “स्वादिका” कहते हुए हाथ जोड़े और थाई भाषा में कुछ पूछा।
मैंने भी हाथ जोड़कर उनका अभिवादन किया और लेक की तरफ देखने लगा! लेक ने परिचय करवाया ये मेरी मौसी है यही पर रहती है. और लेक टूटी फूटी हिंदी में बोली “मौसी पूछ रहा है की आप कैसा है?”
मैने कहा की मै ठीक हूं आप कैसी है मौसी जी?
लेक ने उसे थाई भाषा में मेरा जवाब सुनाया तो मौसी ने थाई भाषा में “खाप कुन खा” यानी धन्यवाद बोलते हुए एक बार फिर से नमस्ते की मुद्रा बनाकर मेरा अभिवादन किया और चली गई।
मेरी आशंका लगभग खत्म हो चुकी थी अब मै लेक के साथ बहुत आरामदायक महसूस कर रहा था।
छोटा सा लाल कांटे दार फल हाथ में लेकर वो बोली इसे पहचानते हो?
मैंने कहा नहीं आज पहली बार देखा है।
इसे “रामबुतान” कहते है उसने अलग तरीके से उस फल को अपनी उंगलियों से दबाया तो छिलका चीरता हुआ हल्का पारदर्शक सफेद गर्भ दिखने लगा, इसे चखिए कहते हुए उसने वो फल मेरी तरफ बढ़ाया. हल्के तुरे और मीठे स्वाद वाला वो फल सही मे बहुत स्वादिष्ट था।
फिर इधर उधर की बातें होती रही वो भारत और भारतीय संस्कृति के बारे मे बहुत कुछ जानती थी। दिल्ली आगरा मुंबई और जयपुर घूम चुकी थी।
उसने बताया की होटल उद्योग मे होने की वजह से वो हर रोज सैंकड़ों विदेशियों के संपर्क में आती रहती है.पाश्चात्य संस्कृति को जानते हुए भी उसने एक जर्मन स्कूबा डाइविंग प्रशिक्षक से शादी की. लेकिन 8 महीने पहले 12 साल की शादी को तोड़कर उसे और दोनों बच्चों को छोड़ वो हमेशा के लिए जर्मनी चला गया।
में उसकी तरफ देखता रहा लेकिन कुछ नहीं बोला. 8 घंटे के परिचय मे आखिर क्या कह सकता था।
ओह माफ करना बहुत बुरा हुआ कह कर मै चुप हो गया।
भारत के बारे में उसके खयाल बहुत अच्छे थे भारत में मृत्यु तक चलने वाले दाम्पत्य जीवन श उसके लिए अचरज का विषय था।
उसका कहना था की थाइलैंड मे पहले ऐसा कुछ भी नही था लेकिन प्रवासन उद्योग और पाश्चात्य संस्कृति ने सदियों पुरानी थाई संस्कृति को लगभग खत्म कर दिया है। ईशान, सुरिन जैसे गरीब प्रांत की लड़कियां बहुत सरलता से उपलब्ध होने की वजह से शादीशुदा थाई मर्द भी औकात के मुताबिक एक दो तीन गर्लफ्रेंड्स रखने लगे है।
यहां तलाक धड़ल्ले से हो रहें है. भारत के मुकाबले थाई औरतें काफी जिद्दी और मजबूत प्रकार की होती है. तलाक के बाद मां बाप के साथ रहकर अपने बच्चे और मां बाप दोनों का पालन करने के लिए नौकरी या बड़े शहर में जा कर मसाज पार्लर में काम या फिर देह व्यापार करती है. फिर वो औरत भी एक दो तीन देसी विदेशी प्रेमी रखती हैं जो उनके शौक पूरे कर सके।
कभी ना थमने वाला विषचक्र चल पड़ा हैं. सदियों पुरानी इस संस्कृति का समाजिक ढांचा लगभग ढहने की कगार पर है। लेक बहुत ज्यादा बोलने वाली महिला थी. वो बोलती रही और मै सुनता रहा. उसके बोलने का तरीका और हावभाव बहुत ही मनमोहक थे।
अचानक उसे कुछ याद आया वो खिलखिला कर हंसते हुए अंग्रेजी में बोली हे भगवान हम चाय तो भुल ही गए!!!
और उसने आदेश पारित कर दिया चलो अब भारतीय चाय बनाओ।
ठीक है चलो.मैं उठ खड़ा हुआ वो मुझे कोने में बने हुए किचन की तरफ ले गई और चलते चलते उसने अपनी मौसी को थाई भाषा में कुछ कहा. मौसी ने आकर एक चमचमाता हुआ बर्तन, दूध का बड़ा सा डिब्बा और एक ताजमहल टी बैग का पैकेट रख दिया। लेक उछलकर सीधी किचन पर दोनो टांगे लटका कर बैठ गई।
मुझे उसका व्यवहार थोड़ा अजीब सा लगा मुझ जैसे किसी भारतीय की अपने घरमें मौजूदगी से वो बहुत उत्साहित थी शायद इसी लिए खुद पर काबू नहीं रख पा रही थी।
किचन पर प्यारा सा इनबिल्ट ग्लास स्टोव लगा हुआ था मैंने बर्तन रखकर उसका नॉब घुमा दिया लेकिन गैस नही जला. हंसते हुए लेक ने कहा इलेक्ट्रॉनिक है आपको फ्लेम नही दिखेगी 30 सेकंड इंतजार कीजिए।
ठीक है कहते हुए मैंने चार पांच कप दूध बर्तन में उडेल दिया और इंतजार करने लगा। कांच के स्टोव के नीचे सुर्ख रंग का गोल आकार धधकने लगा तो मैंने बर्तन रख दिया।
अब वो किचन पर पालथी मारकर बैठ गई और मेरी तरफ देख कर बोली “मैंने बहुत ट्राय किया लेकिन इंडियन स्वाद नहीं आ रहा” मैने हंसते हुए कहा फिक्र मत करो
आज बिलकुल भारतीय स्वाद आएगा क्योंकि तुम एक भारतीय खानसामा पकड़ कर ले आई हो।
खिलखिलाकर हंसती हुई वो बोली सच में?
हां ।
ताजमहल की तीन टी बैग निकाल कर मैने उसे कैंची का इशारा किया। चाय पत्ती तो थी नही इस लिए मैंने जुगाड करते हुए तीनों टी बैग को कैंची से काट कर चाय का सारा पाउडर और तीन चम्मच चीनी मैंने दूध में डाल दी. खाली टी बैग्स को उठाकर हिलाती हुई वो बोली इसे तो डीप करना होता है ना?
मैने कहा की हां लेकिन अगली बार इसे दूध के अंदर डाल देना।
इलायची कहां है?
लेक ने थाई भाषा मे आदेश दिया तो आंटी ने कीचन के ड्रोअर से एक डिब्बी निकालकर मेरे सामने रख दी जिसमे इलायची का पाउडर था.डिब्बी खोलते ही पता चल गया की पाउडर बहुत अच्छी महक और गुणवत्ता वाला था. थोड़ा पाउडर डालने के बाद मैं चाय के उबलने का इंतजार करने लगा।
दूसरी तरफ वो ध्यान से सारी प्रक्रिया देख रही थी जैसे चाय बनाना सीख रही हो। दो तीन उबाल के बाद चाय ने एकदम गहरा रंग पकड़ लिया तो मैंने हिंदी में दो बार छलनी बोलते हुए उसे “छलनी” लाने का इशारा किया.
सच कहूं तो मुझे भी पता नही था की इस करमजली “छलनी” को इंग्लिश में क्या कहते है!
इधर उसे भी समझ नही आ रहा था की आखिर मै कहना क्या चाहता क्या हूं।
मुझे बड़ा आश्चर्य जब बिना कुछ कहे टीवी देखने में व्यस्त मौसी जी उठ खड़ी हुई और ड्रोअर में से तांबे की वजनदार छलनी निकाल कर मेरे हाथ में थमा दी.उधर ओह sieve कहती हुई लेक जोर से हंसने लगी।
चाय मेरी उम्मीद से कई गुना अच्छी बनी थी. लेक और उसकी मौसी को चाय देने के बाद मै अपना मग लेकर सोफे पर जा बैठा।
दिमाग में एक बार फीर से खयाल आने लगे, सुबह तक मै इन लोगों को जानता तक नही था और अभी मै इन्हें अपने हाथों से चाय बनाकर पीला रहा हूं!
कल ही तो इस देश में आया हुं ऐसा कैसे हो सकता है? मै अभी एक थाई महिला के शानदार घर पर बैठकर उसके साथ चाय पी रहा हूं!!!
सबकुछ बहुत शानदार रहा, वो शायद अंदर से टूटी हुई एक दुखी महिला थी.भारतीय लोगों के लिए उसके मन में बहुत सारा प्रेम और आदर था।
वह मुझे अपनी बालकनी दिखाने ले गई जहां अलग अलग प्रकार के फूलों के बहुत सारे गमले सजे हुए थे, मैने पूछा तो पता चला की हम इस विशाल इमारत के चौथे माले पर थे। नीचे स्विमिंग पूल और जीम सहित लगभग सारी सुविधाएं मौजूद थी।
उपर से बैंगकॉक का नजारा बहुत शानदार दिख रहा था।
वो सच में एक वैभवी जीवन जीने वाली औरत थी लेकिन अंदर से शायद खाली थी।
बालकनी पर अपने दोनो हाथ टीका कर मेरे चेहरे पर नजरें गड़ाए हुए वो बोली क्या आपको पता है अगर मुझे शादी करनी पड़ी तो इस बार मै किसी भारतीय पुरुष से शादी करना चाहूंगी क्योंकी मैने भारत के बारे मे बहुत पढ़ा है, भारतीय संस्कृति मे औरत को बहुत ऊंचा एक देवी का स्थान दिया गया है।
हां ये सच है लेकिन उतना भी सच नही है जितना तुम समझती हो। भारत ने भी शादी शुदा औरत आदमी के प्रेम संबंध छल कपट बेवफाई और तलाक सब होता है. आखिर हम सब इंसान ही तो है।
वो चुप रही।
मजे की बात ये थी की लेक ने अपने बारे मे इतना सब बता दिया लेकिन उसने मेरे या मेरे जीवन के बारे मे एक शब्द तक नहीं पूछा. ये मेरे लिए काफी निराशाजनक बात थी।
उसकी आंखों में आशनाई झलक रही थी लेकिन उसे मेरे बारे मे जानने में कोई दिलचस्पी नहीं थी।
मैं खुदको समझा रहा था “क्या पता शायद थाई लोगो का स्वभाव ही ऐसा होगा”
शाम को तकरीबन 5-35 को वापिस लौटने का मन बना लिया और लेक से इजाजत लेना चाही।
वो अंग्रेजी मे बात कर रही थी।
आप जा रहे है?
हां आपका बहुत शुक्रिया।
चलिए मैं आपको छोड़ देती हु।
अरे नही मैं चला जाऊंगा तुम्हे भी सात बजे एयरपोर्ट के लिए निकलना है, मैंने कुछ आत्मीयता से कहा।
ठीक है नीचे तक आ सकती हुं ?
क्यों नही? जरूर आइए।
मौसी ने मुझे “रामबुतान” नामक थाई फल भेंट किए जो मैने तुरंत स्वीकार कर लिए।
लिफ्ट में माहौल थोड़ा बोझिल होने लगा. हम दोनो चुप थे समझ नही आ रहा था की बात क्या की जाए.
फिर कब थाईलैंड आओगे?
पता नहीं लेकिन अगर तुम चाहोगी तो जरूर आऊंगा।
मेरे इस जवाब ने उसकी रही सही झिझक को खत्म कर दि। लिफ्ट से बाहर निकलते ही हम दोनो रूक गए।
उसने मुस्कुराते हुए मेरा हाथ पकड़कर कहा मै तो यही चाहूंगी कि आप हमेशा के लिए मेरे पास थाईलैंड आ जाइए और जोर से हंस पड़ी !!!
थोड़ी देर के लिए दिमाग सुन्न हो गया, उसका रूप,शानो शौकत और ऐश्वर्य के सामने बंदे की क्या हैसियत थी?
लग रही है ना कहानी पूरी फिल्मी!!
उस वक्त मैं खुद इस बात पर यकीन नही कर पा रहा था तो पाठक कैसे यकीन करेंगे की महज 12 घंटो में 45 साल के एक आदमी की इस तरह की लॉटरी भी लग सकती है?
असल बात ये थी की उसने मुझे बताया था की महज 8 साल की उम्र में उसने अपने पिता को खो दिया था.और 2 साल के बाद मां, उसके चाचा के घर बड़ी हुई थी उसके पिता और चाचा रिसॉर्ट के भागीदार थे, लेकिन अब पति भी खो चुकी थी शायद इसी लिए वो अपने जीवन में एक जिम्मेदार और स्थिर पिता जैसा पुरुष चाहती हो। और मैं तो फिर भी एक भारतीय था।
बात की गंभीरता को समझते हुए मैने चुप रहना सही समझा, मुस्कुराते हुए उसका मुलायम हाथ दबाकर मैंने इजाजत मांगी।
अब मुझे जाना होगा।
चलिए मैं सड़क तक आती हूं
अरे नही तुम जाओ मैं चला जाऊंगा।
ठीक है वो वहीं रुक गई।
मै चलने लगा तो वो बोली की मैं आज चली जाऊंगी अगर बैंगकॉक मे और कुछ दिन रुकना चाहो तो मेरे अपार्टमेंट पर आ जाओ मौसी है,आपको कोई परेशानी नहीं होगी।
नहीं कल सुबह मैं पट्टाया के लिए निकल जाऊंगा।
मैंने टेक्सी ली और होटल पर आ गया।
दिलो दिमाग में अजब बवंडर मचा हुआ था थाईलैंड यात्रा का रोमांच बिलकुल हवा हो चुका था।
अहमद फराज की दो पंक्तियां याद आ गई।
ऐसा है कि सब ख़्वाब मुसलसल नहीं होते
जो आज तो होते हैं मगर कल नहीं होते।
अंदर की फ़ज़ाओं के करिश्मे भी अजब हैं
मेंह टूट के बरसे भी तो बादल नहीं होते।
होटल पर पहुंचते ही कमरे में जाकर बिस्तर पर गिरते ही सो गया।
9-30 को आंख खुली तो मोबाइल पर लेक ने अपार्टमेंट छोड़ने से लेकर फ्लाइट मे बैठने तक के 4 छोटे मैसेज छोड़े थे।
“हैप्पी जर्नी” का मैसेज भेजने के बाद रात्रि भोज के लिए होटल से बाहर का रुख किया।
आज के लिए बस इतना ही
थाइलैंड का ये सफरनामा जारी रहेगा।
आप कुरैशी से बात करना चाहें, तो उनका नम्‍बर नोट कीजिए:- 9979750050

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *