कानपुर हत्‍याकांड: अनंत देव से यह सवाल अब वाजिब है

दोलत्ती

: दुर्दान्‍त अपराधी विकास दुबे का दाहिना हाथ अनंतदेव का खासमखास हो गया, और वो भांप न पाये कि वह कौन है : अनंत देव तो एसटीएफ के टाइकून हैं, जरा बताइये तो कि इंटेलीजेंस क्‍या होता है :

कुमार सौवीर

लखनऊ : यह कैसे हो सकता है कि यूपी के सबसे बड़े महानगर कानपुर में पुलिस प्रमुख की कुर्सी हासिल किये अधिकारी इतना मासूम और निर्दोष हो जाएगा कि कोई शातिर अपराधी पुलिस प्रमुख की कुर्सी तक पहुंच जाए। और सिर्फ एक बार ही नहीं, कई-कई बार और बाकायदा किसी दस्‍तूर की तरह वह पुलिस प्रमुख उस शातिर अपराधी को अपनी कुर्सी के बराबर का ओहदा अता फरमा दे। वह भी तब, जब वह अफसर न केवल उसी कानपुर में डिप्‍टी एसपी तैनात रह चुका हो, और उसकी सर्विस-शीट में 60 से ज्‍यादा लोगों को एनकाउंटर में मार डालने की उपलब्धि दर्ज हो चुकी हो।

लेकिन ऐसा कमाल हो गया। वह भी कानपुर में। दरअसल, एसटीएफ के डीआईजी हैं अनंत देव तिवारी। कानपुर के वरिष्‍ठ पुलिस अधीक्षक पद से प्रोन्‍नत होकर वे एसटीएफ में डीआईजी के ओहदे पर भेजे गये, और जब विकास दुबे ने आठ पुलिसवालों की नृशंस हत्‍या कर डाली, तो उसकी जांच की कमान भी अब अनंत देव तिवारी को सौंपी गयी है।

मगर इस तैनाती के साथ ही एक जबर्दस्‍त विवाद खड़ा हो गया है। वह विवाद है दुर्दान्‍त अपराधी-हत्‍यारे विकास दुबे का एक खासमखास, जो विकास दुबे की उगाही, उसकी सम्‍पत्ति का देखभाल और उसे बाजार में खपा कर उसे लगातार दिन-दूनी रात-चौगुनी बना सकने में सक्षम माना जाता था। इतना ही नहीं, यह शख्‍स विकास के लिए पुलिस और प्रशासनिक अफसरों के साथ दोस्‍ती गांठने में माहिर माना जाता है। यूपी सरकार में मंत्री ब्रजेश पाठक के साथ विकास दुबे की अंतरंगता इसी शख्‍स के चलते मुमकिन हुई थी।

इस शख्‍स का नाम है जय बाजपेई। अभी कोई छह बरस पहले वह एक छोटे से प्रेस में तीन हजार रुपयों की एक छोटी सी नौकरी करता था। लेकिन इसी बीच न जाने कैसे वह विकास दुबे के पास पहुंचा। विकास दूबे पर जय बाजपेई का इतना प्रभाव पड़ा कि उसने अपनी टोली में शामिल कर दिया। आर्थिक मदद भी मिलने लगी तो जय ने नौकरी छोड़ दी, और विकास दुबे के लिए लाइजनिंग करना शुरू कर दिया।

अब हालत यह है कि छह बरस में ही जय बाजपेई खरबपति बन चुका है। कहने को तो उसका धंधा ऑटो-पार्ट्स के साथ ही साथ प्रॉपर्टी डीलिंग का है, लेकिन सच यह यही है कि जय बाजपेई का मूल धंधा विकास दुबे की रकम को साहूकारी बाजार में खपाना ही है। कानपुर में उसका आलीशान मकान है। लेकिन हाल ही जय बाजपेई ने दुबई में 15 करोड़ रुपयों का एक बड़ा फ्लैट खरीदा है।

बहरहाल, आइये है अनंत देव तिवारी को विकास दुबे को सौंपे गये इस नये दायित्‍व पर बातचीत। उस नये दायित्‍व का मूल आधार है अनंत देव के इतिहास में उपलब्धियों की फेहरिस्‍त। जाहिर है कि इस उपलब्धि उनकी कार्य-कुशलता के बल पर ही है। और पुलिस में ऐसी कार्य-कुशलता का आधार माना जाता है इंटेलीजेंस। यानी पुख्‍ता और विश्‍वसनीय सूचना-तंत्र, जिसमें माहिर माने जाते हैं अनंत देव तिवारी।

लेकिन आज विकास दुबे और जय बाजपेई के मामले में यही अनंत देव तिवारी चारों खाने चित्‍त दिख रहे हैं। वजह है यह इसी जय बाजपेई के साथ उनकी गलबहियां। इस का खुलासा तब हुआ, जब विकास दूबे के मामले की चल रही जांच के दौरान पता चला कि जिस जय बाजपेई के साथ अनंत देव तिवारी की करीबी है, वह दरअसल विकास दुबे का दाहिना हाथ है। विकास दुबे के साथ जय बाजपेई की एक फोटो भी दोलत्‍ती संवाददाता को मिली है।

अनंत देव तिवारी के घर-दफ्तर तक में जय बाजपेई की बेरोक-टोक इंट्री होती रही है। जय बाजपेई तो अनंत देव की कुर्सी के बगल तक पहुंच चुका था। दोलत्‍ती संवादाता ने अपनी पड़ताल में जय बाजपेई के फेसबुक वाल को खंगाला। इन दोनों की सेल्‍फी वाली कई फोटो को जय ने अपने फेसबुक आदि सोशल साइट्स पर लगा रखा था। हैरत की बात तो यह है कि अनंत देव उसको इसकी पूरी अनुमति भी दे दिया करते थे कि वह उनके पास कुर्सी के बगल में खड़ा होकर सेल्‍फी ले ले। अनंत देव तिवारी ने एक बार भी यह जांचने की जरूरत नहीं समझी कि आखिर यह जय बाजपेई कौन है, और उसका मूल धंधा क्‍या है। वह तब, जब अनंत देव कानपुर में पुलिस क्षेत्राधिकारी से लेकर एसएसपी जैसे ओहदे पर लम्‍बे वक्‍त तक रह चुके हैं।

ऐसी हालत में अनंत देव से यह सवाल तो वाजिब ही है। है कि नहीं ?

 

 

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