: धनतेरस-दीपावली से लेकर होली तक खुद को चकाचक कर देना चाहते हैं बड़े चैनली पत्रकार : अवैध खनन को लेकर होने वाली लूट-खसोट का बड़ा हिस्सा ऊपर तक वसूलने अभियान : खनन को लेकर कमाऊ माने जाने वाले जिलों के रिपोर्टरों को दिया गया नया टारगेट, अपनों को फिट करने की कवायद तेज :
दोलत्ती रिपोर्टर
लखनऊ : उत्तर प्रदेश के न्यूज चैनल अब खबर नहीं, बल्कि खनन के भरोसे से चल रहे हैं। अपनी सहालग को चमाचम करने की जुगत में कई बड़े चैनलों के दिग्गज पत्रकारों ने खनन पर अपना सारा ध्यान एकाग्र कर दिया है। मकसद है कि अवैध खनन को लेकर होने वाली लूट-खसोट का एक बड़ा हिस्सा ऊपर यानी उन तक पहुंच जाए। इसके लिए ऐसे कमाऊ जिलों में सीजन आते ही अपने रिपोर्टरों को ताश के पत्तों की तरह फेंटने का अभियान छिड़ गया है।
धनतेरस और दीपावली तक अपनी जेब गरम करने और इस तरह कई पुश्तों भर की कमाई कर लेने में कुछ चैनलों के मुखिया या प्रमुखों ने यह नया तरीका खोजा है। यह तरीका उन चैनलों में ज्यादा प्रभावी बताया जा रहा है, जहां नया-नया निजाम लागू हुआ है। हालांकि कुछ अन्य चैनलों में भी यही करतूतें यह नयी फसल काटने में चल रही हैं। कुछ चैनलों में तो ऐसे कुछ जिलों के रिपोर्टरों को हटा कर वहां अपने पुराने ट्रस्टेड लोगों को फिट कर ही दिया है।
दरअसल, खनन माफिया ही तय करते हैं कि किस जनपद में कौन रिपोर्टर रहेगा जो उनके खनन खण्डों को मीडियाई संरक्षण दे पाने में सक्षम हो। जैसे फतेहपुर, बाँदा हमीरपुर, कौशाम्बी, चित्रकूट, जालौन, सोनभद्र आदि जनपदों में मुख्यतः जो भी रिपोर्टर काम कर रहे होते हैं उनको उक्त खनन के पट्टा धारकों से उगाही कर चैनल में स्थापित उच्चाधिकारी को पहुंचाना ही होगा। अन्यथा चैनल से निष्कासित होना तय है। इसके बदले में उसे जान जोखिम में भी डालनी पड़ती है कुछ रिपोर्टर पर तो उगाही के दौरान माफियाओ के गुर्गों पर गोली भी चला दी जाती है। अपनी बढ़ी हुई टीआरपी की हनक में रिपोर्टर से मात्र खनन इलाकों से राजस्व संग्रही का कार्य करवाया जाता है । आज के दौर में रिपोर्टर का जीवन कितना सुरक्षित है? यह अपने आप मे बड़ा सवाल है।
( एक रिपोर्टर की चिट्ठी के आधार पर ) उ
बिल्कुल सही पकड़े हैं कुमार भाई,
हमारे एक परिचित पत्रकार ने एक रीजनल चैनल के लखनऊ के ब्यूरो चीफ को डेढ़ लाख रुपए और एक आईफोन देकर अपनी नियुक्ति जालौन जिले में करवा ली