सेकुलरिज्म के लिए मस्जिद से तोड़फोड़ का फतवा !

बिटिया खबर

: नागरिकता-आंदोलन के योद्धा मार रहे पैरों पर कुल्हाड़ी : झूठ की नींव पर कैसे खड़ी हो पाएगी धर्म-निरपेक्षता की इमारत : धार्मिक इबादत और राजनीतिक आंदोलन अलग-अलग :
कुमार सौवीर
लखनऊ : नागरिकता के सवाल पर देश भर में भडके आंदोलन को अगर कोई तहस-नहस करेगा, तो वह है दिल्ली की जामिया यूनिवर्सिटी में बसों को फूंकने को लेकर पुलिस के खिलाफ फैलाया गया झूठ और रेल समेत सरकारी सम्पत्तियों पर की गयी तोड़फोड़। हालत यह है कि इस आंदोलन से जुड़े लोग ही आंदोलन के पांवों पर कुल्हाडी मार रहे हैं। पूरा आंदोलन झूठ और आंदोलन की मूल आत्मा के खिलाफ जा रहा है।
जामिया में तो आप यह कह कर बच नहीं सकते कि ऐसी हरकतें मुर्शिदाबाद समेत बंगाल और कई अन्य प्रदेशों में नन्हें-मुन्ने और अबोध बच्चों में ऐसी बचकानी तोडफोड जैसी हरकतें की हैं।
फिर सवाल यह है कि जामिया में आगजनी और पुलिस के खिलाफ झूठा आपराधिक प्रचार तो पढे-लिखे लोग ही कर रहे थे। कैसे माना जा सकता है कि वे बच्चे या नन्हें-मुन्ने हैं। वे तो खुद को प्रबुदध कहे और कहलाये जाते हैं। फिर ऐसी हरकतें वे कैसे करने लगे।
दूसरी बात यह है कि रेलवे समेत सरकारी सम्पत्तियों को तोडने-फोडने वाले भले ही नन्हें-मुन्ने या अबोध बच्चे रहे हैं, लेकिन उनकी हरकतें अबोध या नन्हें-मुन्नों जैसी तो हरगिज नहीं थीं। यह वे लोग थे, जिन्हें न तो नागरिकता का मतलब पता होता है, न धर्म-निरपेक्षता अथवा देश या समाज का। यह वे लोग हैं जो भूख से बिलबिलाते वर्ग से आते हैं और भूख के सवाल पर हाड-तोड मेहनत करते हैं। और शर्मनाक बात तो यही है कि उनकी ऐसी भूख ही षडयंत्रकारियों और अलगाववादियों का शिकार बन जाती है। रोटी के सवाल का समाधान चंद टकों-रूपयों के बदले धर्म व समाज के ठेकेदारों की थैली से चूने लगता है।
जाहिर है कि वे अबोध व नन्हें-मुन्ने किन्हीं खास लोगों या गिरोह की उंगलियों पर नाच रहे थे। साफ:साफ षडयंत्र। एक को मूर्ख बना कर उसे अपने युदध का असलहा बनाने की साजिशें। हम धर्म निरपेक्ष समाज और राष्ट्र बनाने के लिए अपना प्राण देने पर तत्पर हैं, लेकिन आप नागरिकता से जुडे सवाल का श्रीगणेश भी मस्जिद, नमाज और अल्लाह से करने पर आमादा हैं।
यानी हम किसी के सवाल का अस्त्र बनाये जा रहे हैं।
पुख्ता खबरें हैं कि बंगाल में मस्जिदों में अचानक भारी भीड जुटी और उसने नमाज के फौरन बाद ही नागरिक बस्तियों और रेल समेत सरकारी सम्पत्तियों पर हमला बोल दिया। आपको याद होगा कि बर्मा और कोकराझार में फर्जी नरसंहार को लेकर मुलायम सिंह यादव ने जो बयान दिया था, उसके अगले ही दिन 17 सितंबर-12 को लखनऊ समेत देश के अनेक शहरों में नमाज के बाद मुसलमानों की भीड मस्जिद से निकल हर हिंसा का तांडव शुरू किया था। लखनउ में सडक से गुजरती महिलाओं और स्कूली लडकियों के कपडे फाड़े गये थे। बुदधा पार्क में महात्मा बुद्ध की प्रतिमा को चकनाचूर कर ​दिया गया था। मुम्बई में शहीद सैनिक स्थल पर तोडफोड़ की गयी थी।
ऐसी हालत में नागरिकता के सवाल पर सरकारी नीतियों के खिलाफ जूझ रहे लोगों को जल्दी ही तय करना होगा कि वे किस सवाल को भडका रहे हैं और किस सवाल को दबाने की साजिश सायास या अनायास ही कर रहे हैं।
बेहतर है कि हम अपने सह-योद्धाओं को सचेत करें, उन्हें अपनी करतूतें करने से रोकें। और अगर ऐसा न हो पाये तो हम अपनी राह को लेकर नये तरीके से सोचें।
हमें तय करना ही होगा कि नागरिकता का सवाल हमारे देश के धर्मनिरपेक्ष ढांचे को मजबूत करने को लेकर है। लेकिन जब लोग उस आंदोलन में अपने धार्मिक छौंक लगाने लगेंगे तो फिर हम न इस ओर के होंगे, और न उस ओर के। दोनों ही ओर खाई होगी, जिसमें किसी न किसी में गिर कर हमें हमेशा-हमेशा के लिए बर्बाद ही होना होगा।
बात साफ है कि वक्त रहते ही हम अपने चरित्र और अपने आंदोलन पर नये सिरे से सोचें।

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