कल्‍याण सिंह ने धोबी-पाटा मारा था लालजी टंडन के कैरियर पर

बिटिया खबर

: योगी द्वारा सौ दिन की सफलता रिपोर्ट-कार्ड के वक्‍त ब्रजेश पाठक का दांव बगावत नहीं तो क्‍या : उप मुख्‍यमंत्री ब्रजेश पाठक का अपने विभागाध्‍यक्ष से झगड़ा का असल मामला क्‍या है : ऐसी घटनाओं से सबक लेना जरूरी है पत्रकारों के लिए। जब पूरी पत्रकारिता दलाली पर आमादा हो :

कुमार सौवीर

लखनऊ : कल यूपी की सेहत पर उसके इलाज का महकमा सम्‍भाले मंत्री बनाम अपर मुख्य सचिव के बीच कलह पहली बार सतह पर पहुंच चुकी है। राजनीतिक समझ रखने वाले लोग इस हालत को बगावत के तौर पर विश्‍लेषित करने लगे हैं। कहने की जरूरत नहीं है कि उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री बृजेश पाठक अब बहुत बौखला गये हैं। उनकी नाराजगी प्रदेश के स्वास्थ्य विभाग को संभाले अपर मुख्य सचिव अमित मोहन प्रसाद के खिलाफ है। हालत यह है कि उन्होंने अपने विभाग में तबादलों का सारा ठीकरा अपर मुख्य सचिव पर ही थोप दिया है। जवाब-तलब किया है कि ऐसा क्यों हुआ? बृजेश का आरोप है कि तबादलों पर अनियमितता हुई है, अराजकता हुई है और मनमर्जी भी बेहिसाब। जबकि ब्रजेश पाठक के आरोपों पर तुर्की-ब-तुर्की जवाब देते हुए अपर मुख्य सचिव अमित मोहन प्रसाद ने दो-टूक जवाब दे दिया है कि जो भी तबादले हुए हैं वह नियमानुसार हैं और इसकी पूरी जानकारी स्वास्थ-चिकित्‍सा विभाग संभाले उप मुख्यमंत्री को पहले ही दी जा चुकी है और उस पर ब्रजेश पाठक उस पर अपनी सहमति भी दे चुके हैं।
तो फिर झगड़ा क्या है? आखिर क्या वजह है कि अपर मुख्य सचिव स्तर के अधिकारी और प्रदेश का स्वास्‍थ्‍य-चिकित्सा महकमा संभाले बृजेश पाठक को इतना गुस्सा क्यों आ गया? आखिर अपना गुस्सा उन्होंने ठीक उसी दिन क्यों छेड़ डाला है जब प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपनी दूसरी पारी के तहत संभाले उत्तर प्रदेश के 100 दिनों में अपनी सरकार की उपलब्धियों पर रिपोर्ट कार्ड जारी कर रहे थे? राजनीतिक दल की गलियारों में तो इसे बगावत के तौर पर सूंघा, देखा और पहचाना जा रहा है।
लेकिन आज यह बातचीत बृजेश पाठक और अमित मोहन प्रसाद पर नहीं है। बल्कि अतीत में प्रदेश में दूसरे नंबर पर मंत्री माने जाने वाले हैसियतदार नेता और उनके प्रशासनिक आईएएस अफसरों के रिश्ते पर है। आपको बता दें कि तब मंत्री थे लालजी टंडन जो प्रदेश के आवास एवं नगर विकास विभाग को संभाले हुए थे। इतना ही नहीं, उनकी पहचान तब के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई तथा उनके प्रमुख सुरक्षा अधिकारी रहे शिव कुमार के सर्वोच्च शिष्‍य के तौर पर थी। यही वजह थी कि तब लाल लालजी टंडन की तूती पूरे प्रदेश में ही नहीं, बल्कि भाजपा में भी सर्वोच्च थी। कहा जाता था कि तब के मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के मुकाबले में लालजी टंडन भले ही पद में छोटे रहे हो या फिर दूसरे दर्जे पर पदाधिकारी हों। लेकिन वास्तविकता यह थी कि लालजी टंडन की पहचान अटल बिहारी बाजपेई के प्रथम चेले के तौर पर थी। मजाल थी किसी की, कि कोई भी अभिलाषी व्‍यक्ति लालजी टंडन के सिवाय किसी और की गोधूलि शिरोधार्य कर सके। लालजी टंडन का इशारा ही किसी भी पेड़ के पत्ता-पत्ता और बूटा-बूटा को सरकाने का साफ हुक्म माना जाता था।
बहरहाल, यह मामला है करीब 25 साल पहले 1997 का। उस दौर में प्रदेश का मुख्यमंत्री बने हुए थे कल्याण सिंह। कल्याण सिंह की पहचान प्रदेश में पिछड़ी जाति का सर्वोच्च नेता की थी। जबकि लालजी टंडन की पहचान लखनऊ के एक सभासद से होकर विधायक होते हुए सरकार में मंत्री का पद सम्‍भालने वाली कार्यकर्ता के राजनीतिक सफर की थी। बावजूद इसके कि कल्याण सरकार में दूसरे दर्जे पर थे लालजी टंडन, लेकिन प्रधानमंत्री के जेबी-शिष्‍य की हैसियत रखने वाले के चलते उनकी पहुंच दिल्‍ली तक में ज्‍यादा थी।
कहने की जरूरत नहीं कि दो कद्दावर लोग जब भी अपनी-अपनी तलवार लेकर निकलते थे तो अक्सर दोनों की तलवारें परस्पर टकराकर चिंगारियां फैलाना शुरू कर देती थीं। कल्याण सिंह और लालजी टंडन ऐसी टकराव को हमेशा बुना हुआ हादसा और गुस्सा भी मानते थे। यह भी जाहिर है कि कल्याण सिंह किसी भी कीमत पर कतई नहीं चाहते थे कि उनकी राजनीतिक रणनीतिक कुर्सी पर बगलगीर हो सकें लालजी टंडन।
इसके लिए कल्याण सिंह ने एक तरीका खोजा। उन्होंने लखनऊ विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष के तौर पर एक आईएएस अफसर प्रभात कुमार को तैनात कर दिया। प्रभात कुमार मुख्‍यमंत्री कल्याण के खासमखास थे। क्योंकि प्रभात कुमार की कार्यपद्धति और आस्था लालजी टंडन के बजाय सीधे मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के प्रति ही रहती थी। इतना ही नहीं, प्रभात कुमार की इच्छा भी एक निहायत ईमानदार लेकिन बेहद झक्की अफसर की ही थी। हालत यह हुई कि पहले दिन से प्रभात कुमार ने जो भी काम शुरू किया वह सीधे-सीधे लालजी टंडन के प्रभाव क्षेत्र को जबरदस्त ठोकर मारने वाला था। और कहने की जरूरत नहीं कि यह सारी कवायदें सीधे-सीधे कल्याण सिंह की राजनीतिक रणनीतियों को समर्पित थीं। जिसका असल मकसद लालजी टंडन को कमजोर करना डालना ही था।
मसलन लालजी टंडन ने एक बार लखनऊ में अवैध कब्जों के खिलाफ अभियान छेड़ने के लिए एलडीए को निर्देश दिया। प्रभात कुमार ने मंत्री लालजी टंडन के उस आदेश को अपने सिर-आंखों पर ले लिया, लेकिन उसका तरीका ही बदल दिया। प्रभात कुमार ने अपने अमले को हुक्म दिया कि महानगर के करीब एक बड़े व्यावसायिक क्षेत्र को तोड़ दिया जाए जो पूरी तरह अवैध है। प्रभात कुमार के आदेश पर एलडीए के अमले न अपने इस अभियान का श्रीगणेश कर दिया जाए। चल पड़ा बुलडोजर एलडीए का। लेकिन इसकी जबरदस्त धमक सीधे लालजी टंडन के दिल-जिगर पर पड़ा। वजह यह कि यह इमारत लालजी टंडन के एक बेहद घनिष्ठ और संपन्न परिवार की थी। उसका टूटना लालजी टंडन की छवि का चकनाचूर कर दिया जाना ही होता। बताते हैं कि यह खबर मिलते ही लालजी टंडन ने तत्काल प्रभात कुमार को हुक्म दिया वे एलडीए के बुलडोजर को तत्काल रोक दें। अभियान रुक गया। लेकिन अब क्या किया जाए, क्‍योंकि अभियान छेड़ने का आदेश तो लालजी टंडन ने ही दिया था। इसको रोकने का मतलब तो यह होता कि सरकार की ही नाक कट जाती। इसका जवाब लालजी टंडन ने खुद दिया और उन्होंने कहा कि ऐसा अभियान तो किसी और इलाके पर भी तो किया जा सकता है।
प्रभात कुमार भी कमाल के चेले थे कल्याण सिंह के। उन्होंने लालजी टंडन के आदेशों को अपने सिर-माथे पर लिया और एलडीए के बुलडोजर सीधे हजरतगंज वाले सहारागंज के आसपास की अवैध बनी इमारतों को रौंदने लगा। लालजी टंडन को फिर यह पता चला तो उनके पैर-तले जमीन ही खिसक गई। वजह यह कि इस इलाके की अधिकांश इमारतें सीधे-सीधे लालजी टंडन के करीबी धन्नासेठ और बिल्‍डर परिवारों की थी।
लब्‍बोलुआब यह कि लालजी टंडन अपने आदेशों-निर्देशों से बाज आ गए और उन्होंने प्रभात कुमार को कोई भी मीटिंग बुलाने मना ही कर दिया। हुआ यह तक कि वे प्रभात कुमार को सामने पड़ने तक से बचने लगे। लेकिन हैसियत का मामला तकाजा तो यही था कि वे अपने को मजबूत बनायें। इसके लिए लालजी टंडन ने सीधे प्रधानमंत्री आवास के माध्यम से कल्याण सिंह पर दबाव बनाना शुरू कर दिया। इस कवायद का असर भी पड़ा। प्रभात कुमार को पद से हटा दिया गया और उनकी जगह बीएस चौबे नामक प्रमोटेड आईएएस अफसर एलडीए के उपाध्यक्ष बना दिये गए।
लेकिन लालजी टंडन का यह दांव उन पर फिर उल्टा पड़ गये। हुआ यह कि चौबे जी लालजी टंडन के किसी भी ऐसे आदेश-निर्देश का पालन करने के पहले उसकी सूचना मंत्री को तो भेजते ही थे, साथ ही साथ, विभाग के सचिव और मुख्यमंत्री के प्रभारी सचिव को भी कॉपी कर दिया करते थे। इससे क्‍या फर्क पड़ता है कि यह नियमानुसार था या नहीं? जाहिर है लालजी टंडन की प्रत्‍येक गतिविधि या रणनीति की जानकारी सबसे पहले मुख्यमंत्री कार्यालय को मिल जाती थी और उस पर स्पष्ट जारी हो जाया करता था। ऐसे में लालजी टंडन के हर आदेश तो नहीं, लेकिन अधिकांश पर रुक लग जाती थी अथवा उस पर संशोधन की कागजी कार्रवाई शुरू हो जाती थी। इतना भी होता तो कोई बात नहीं थी, लेकिन इस कवायद के चलते इतना तय तो हो ही गया था कि लालजी टंडन का पद बड़ा होने के बजाय अब लगातार सबसे न्यूनतम पायदान तक पहुंचने लगा है।
लेकिन इस रिपोर्ट का मकसद यह नहीं है कि इस घटना को कल्‍याण सिंह, लालजी टंडन, प्रभात कुमार अथवा वीएस चौबे के बीच हुई गतिविधियों को आज की कार्रवाइयों से जोड़ कर देखा जाए। लेकिन इससे सबक देखना और सीखना भी तो एक बड़ा दायित्‍व होता है पत्रकारों के लिए। खास कर तब, जबकि पूरी पत्रकारिता दलाली पर आमादा हो।
है कि नहीं ?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *