कुमार विश्‍वास बनाम टल्‍ली-संपादक: न ख़ुदा ही मिला न विसाल-ए-सनम

बिटिया खबर
: शराब में धुत्‍त किसी व्यक्ति से मुंह नहीं जोड़ना चाहते थे कुमार विश्‍वास, इसलिए संपादक को कोई भाव नहीं दिया : साफ बात तो यही है कि मैंने अपने पत्रकारीय-दायित्व का निर्वहन ईमानदारी से किया :

कुमार सौवीर
लखनऊ : दोलत्‍ती ने अभी कुछ दिन पहले ही एक शर्मनाक हादसे का खुलासा किया था। इस हादसे में दो प्रमुख पात्र थे। एक तो था घमंड में चूर आप पार्टी वाला कुमार विश्वास और दूसरा था एक बड़े अखबार का संपादक, जो शराब में बुरी तरह धुत्‍त था। यह स्‍थानीय सम्‍पादक मध्य और उत्तर भारत का प्रमुख समाचार संस्थान से सम्‍बद्ध है। इसी संस्‍थान के बड़े यूनिट के संपादक ने यह शर्मनाक करतूत कर डाली थी।
हुआ यह था कि दिल्ली में बीएसएफ के मेस में एक बड़े पत्रकार ने अपने एक कार्यक्रम की सफलता को लेकर एक बड़ी पार्टी आयोजित की थी। इस पार्टी में कुमार विश्वास भी मौजूद थे। देश के प्रमुख और वरिष्ठ पत्रकार और संपादकों को भी इस समारोह में आमंत्रित किया गया था। इस आयोजन में निमंत्रित लोगों में उपरोक्त बड़े संस्थान का यह एक स्थानीय संपादक भी उस समारोह में आया था।
कार्यक्रम के खाने पीने की व्यवस्था थी। विभिन्‍न प्रकार की देसी-बिदेसी दारू देखते ही इस संपादक का चेहरा ही चौंचक हो गया। आनन-फानन उसने एक के बाद एक बड़े-बड़े पेग कंठस्थ करना शुरू कर दिया और 7-8 पैग पहुंचने तक वह बुरी तरह लम्‍ब-लेट होने की हालत तक पहुंच गया। बताते हैं कि उसके बाद संपादक ने अपने नशेड़ी-पना का प्रदर्शन करना शुरू कर दिया। पहले तो इस टल्‍ली-संपादक ने अपने बगल की मेज की ओर नशीली-डोलती नजर फेरी, जहां कुछ पत्रकारों के साथ बैठे थे कुमार विश्वास।
फिर क्‍या था। मौके पर मौजूद विश्‍वस्‍त सूत्र बताते हैं कि कुमार विश्‍वास की चिकनी-चुपड़ी शक्ल-सूरत पर अचानक फिदा हो गए यह टल्ली संपादक। उन्होंने कुमार विश्वास से बातचीत करने की कोशिश की। एक तो उस वक्‍त कुमार विश्वास कुछ दूसरे लोगों से बातचीत कर रहे थे और दूसरी बात यह कि वे शराब के नशे में धुत्‍त किसी व्यक्ति से मुंह नहीं जोड़ना चाहते थे, जो शराब के नशे में सहज औपचारिक व्‍यवहार तक को कुचलने पर आमादा हो। इसलिए कुमार विश्वास ने उस संपादक को कोई भी भाव नहीं दिया। हालांकि यह संपादक कई बार कुमार विश्वास से बातचीत करने की कोशिश करता रहा लेकिन बताते हैं कि कुमार विश्वास ने शराबी-संपादक की ओर से आंखें तरेर दिया। प्रत्‍यक्षदर्शी बताते हैं कि कुमार विश्‍वास ने उस टल्‍ली संपादक से बातचीत करना गवारा नहीं समझा। बस यही गुनाह बहुत भारी पड़ गया कुमार विश्वास पर। विश्वास के स्वर-व्यवहार से यह संपादक व्यथित हो गया और उसने जितनी भी गालियां हो सकती थीं, देनी शुरू कर दीं। इस औचक हमले से कुमार विश्‍वास और आसपास मौजूद कुछ लोग चिहुंक कर दूर भाग गये। कई पत्रकारों ने दोलत्‍ती डॉट कॉम को इस घटना की खबर पहुंचा दी।
अगले ही दिन दोलत्‍ती-संवाददाता ने उस टल्‍ली संपादक से उसका पक्ष जानने की कोशिश की। लेकिन तब तक उस संपादक का नशा टूट चुका था, और पता चल गया था कि उसने बीएसएफ की मेस में क्‍या-क्‍या करतूतें की थीं। उस घटना को लेकर मेरा फोन आते ही इस संपादक ने कुमार सौवीर पर काफी जोर दिया और अपनी पुराने परिचय का वास्ता देते हुए बार-बार अनुरोध किया कि इस खबर को न प्रकाशित करें क्योंकि इससे उसका भविष्य बुरी तरह प्रभावित हो सकता है। दोलत्‍ती संवाददाता ने उस संपादक से साफ-साफ आश्‍वासन दिया कि वह उस खबर को प्रकाशित करते समय उस खबर में अखबार का नाम और संपादक का नाम प्रकाशित नहीं करेगा।
लेकिन दोलत्‍ती पोर्टल में यह खबर छपते पर ही हंगामा खड़ा हो गया। उस दिन नशे में टल्‍ली हो चुके संपादक ने कुमार सौवीर से कई बार संपर्क करने की कोशिश की। इतना ही नहीं, उसके कई स्थानीय मित्रों ने भी कुमार सौवीर से संपर्क किया और अनुरोध किया यह खबर पोर्टल से तत्काल हटा दी जाए। इसी बीच इस संपादक ने फोन पर इस बात पर आक्रोश-मय भारी एतराज जताया। इस संपादक का कहना था कि जब एक बार अनुरोध किया जा चुका था कि इस खबर को नहीं छापा जाए, तो कुमार सौवीर ने उस खबर को छाप कर मित्रता को कलंकित किया है। ऐसा नहीं करना चाहिए था। किसी भी मित्र के किसी भी अनुरोध को मानना और उसका सम्मान करना किसी भी प्रकार के स्‍नेही रिश्तों का सर्वोच्च पायदान होता है, जिसे कुमार सौवीर ने पूरी तरह तोड़ दिया।
इस शिकायत पर मैंने अपना पक्ष साफ करते हुए कहा कि एक पत्रकार के तौर पर किसी भी खबर को रोक पाना न केवल नैतिक अपराध है बल्कि सामाजिक और पत्रकारीय मूल्यों के सख्त खिलाफ भी है। कुमार सौवीर का तर्क था कि क्‍या वह संपादक अपने यहां पहुंची किसी बड़ी खबर को दबा सकते थे। अगर नहीं, तो फिर उस संपादक का कुमार सौवीर के उस अनुरोध का औचित्‍य ही नहीं बनता है। यही क्‍या है कि मैंने उस खबर में उस संपादक और उसके संस्‍थान का नाम प्रकाशित नहीं किया। फिर ऐसी अपेक्षा कुमार सौवीर से क्यों की गई। बहरहाल, काफी बकझक के बाद भी संपादक का आक्रोश खत्म नहीं हुआ और उसने अपना गुस्‍सा व्यक्त करते हुए फोन काट दिया।
मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि मुझे ऐसे मौके पर क्या करना चाहिए था। अपने पत्रकारीय-दायित्व का निर्वहन करते हुए मैंने खबर छाप कर मैंने क्या गलत किया। मैं समझता हूं कि मैंने जो किया बिल्कुल ठीक किया। रही बात मित्रता की, तो यह एक अलग विशद प्रश्न है जिस पर मैं बाद में स्पष्ट व्‍याख्‍या करूंगा कि पत्रकारिता में मित्रता का मूल्य, आदर्श और उसका सामुच्चय समग्रता में कैसा होना चाहिए।
संपादक मुझसे नाराज है। मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि मैंने संपादक की बात को सम्मान देते हुए उस खबर से उसका नाम और उसके संस्थान का नाम हटा कर खबर प्रकाशित करके कोई बहुत बड़ी भारी अपराध कर दिया है या मुझे ऐसी दोस्ती को अपने ठेंगे पर रखते हुए उस संस्थान और उस सम्‍पादक के नाम का प्रकाशित कर देना चाहिए। सच बात तो यही है कि एक पत्रकार के तौर पर किसी भी खबर की आंशिक अथवा सम्‍पूर्ण हत्‍या करना न केवल नैतिक अपराध है बल्कि सामाजिक कार्य मूल्यों के खिलाफ भी।

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