झारखंड सरकार का पहला फैसला पहले पन्ने से नदारत

बिटिया खबर

: दस हजार पत्‍थलगाड़ी समर्थकों पर से मुकदमा वापसी की खबर पर खेल कर गये अखबार : राजनीति ऐसी हो तो अखबार कैसे हों? :
संजय कुमार सिंह
नई दिल्‍ली : झारखंड में हेमंत सोरेन की सरकार का शपथ लेना और पहले ही दिन पत्थलगड़ी मामले में 10 हजार आदिवासियों पर से मुकदमा वापस लेने का फैसला कई मायने में महत्वपूर्ण है। 2014 चनाव में जीत कर प्रधानमंत्री बने भाजपा नेता देश को कांग्रेस मुक्त करने के अभियान पर थे और 2019 में उससे भी ज्यादा सीटें जीतकर भाजपा ने अपने दो बड़े सहयोगी खो दिए और इस कारण दो राज्य हाथ से निकल गए। झारखंड सीट, क्षेत्रफल, आबादी और राजनीति के लिहाज से छोटा या कम महत्वपूर्ण हो पर महाराष्ट्र का मामला तो निश्चित रूप से गंभीर था। वहां सत्ता बचाने की कोशिश और गिनती के विधायकों तथा तोड़फोड़ कर सरकार गिराने की कोशिशों के बीच झारखंड में ऐसा मौका नहीं मिलना या कोशिश नहीं होना कम दिलचस्प नहीं है।
हेमंत सोरेन को राजनीति और कुर्सी पर रहने का अनुभव भले कम हो लेकिन लेकिन 10 हजार लोगों पर मुकदमा चलाने के पिछले सरकार के आदेश को वापस लेना साधारण राजनीति नहीं है। खासकर तब जब दबंगई और मनमानी पर आमादा एक मुख्यमंत्री खुद राजनीति के शिकार हुए थे तो संसद में रोए थे और सत्ता में आए तो अपने ही खिलाफ मामला वापस ले लिया। अपनी पीठ खुद ठोंक रहे हैं। राजनीति जब ऐसी हो तो अखबार कैसे हों? आदर्श अखबार की परिभाषा तय करना बहुत मुश्किल है। लेकिन जनहित के एक मामले में राष्ट्रव्यापी विरोध के मद्देनजर एक राज्य की हिन्सा और खास मनमानी कार्रवाई पर अखबार चुप रहें तो उनकी खबर लेना भी जरूरी है। इसलिए आइए, देखें झारखंड के इस पहले प्रमुख फैसले को हिन्दी अखबारों ने कितनी प्रमुखता दी है।
दैनिक जागरण में यह खबर पहले पन्ने पर चार कॉलम में है। इसके साथ सिंगल कॉलम में एक खबर है, हेमंत के बहाने एकजुट हुए भाजपा विरोधी दल। पर मुख्य खबर यही है, खत्म होंगे पत्थलगड़ी समर्थकों पर देशद्रोह के केस। इस खबर का उपशीर्षक है, झारखंड के 11वें सीएम के रूप में हेमंत सोरेन ने ली शपथ, सरकार ने किया पहला फैसला। ऐसे में यह खबर इतनी महत्वहीन भी नहीं है कि दूसरे अखबार में हो ही नहीं। पर खबरों के मामले में ऐसा होता है और यह अखबारों की विशेषता है। पर गड़बड़ यह है कि यही अखबार सरकार के खिलाफ या समर्थन वाले खबरों के मामले में एकदम एक जैसा निर्णय लेते हैं और ऐसी खबरें नहीं के बराबर छापते हैं जो सरकार को तकलीफ पहुंचाए। रोज ऐसी कई खबरें होती हैं जिन्हें भिन्न अखबारों में भिन्न ट्रीटमेंट मिलता है लेकिन सरकार के समर्थन और विरोध वाली ज्यादातर खबरें अक्सर ज्यादातर अखबारों में एक जैसा ट्रीटमेंट पाती रही हैं।
दैनिक भास्कर में शपथ ग्रहण की खबर पहले पन्ने पर सिंगल कॉलम में है। मुकदमा वापस लेने की खबर अंदर है। अमर उजाला में पहले पन्ने पर नहीं है। ग्राहकी लिए बगैर मैं इंटरनेट पर बाकी के पन्ने नहीं देख सकता इसलिए नहीं देखा। दिलचस्प यह है कि पहले पन्ने पर पूरा विज्ञापन हो और अखबार अपने तीसरे पन्ने को पहला पन्ना बनाए तो भी मैं नहीं देख सकता। नवभारत टाइम्स में शपथ ग्रहण की फोटो है पर मुकदमा वापस लेने की खबर नहीं है। दैनिक हिन्दुस्तान में शपथग्रहण की खबर के साथ पत्थलगड़ी के सारे केस वापस लिए जाने की खबर भी है। ब्यौरा अंदर के पन्ने पर है। नवोदय टाइम्स में यह खबर पहले पन्ने पर नहीं है। शपथग्रहण की खबर दूसरे पन्ने पर है। लेकिन शीर्षक, उपशीर्षक या साथ की दो खबरों में पत्थलगड़ी की खबर नहीं है। राजस्थान पत्रिका में शपथग्रहण की खबर सिंगल कॉलम में है। पत्थलगड़ी की खबर नहीं है। इस खबर को इस तथ्य से मिलाकर देखिए कि उत्तर प्रदेश में सीएए विरोधी आंदोलन में हजारों अज्ञात लोगों के खिलाफ मामला दर्ज हुआ है।

सच्‍ची-मुच्‍ची की खबरों के लिए जेहाद के लिए जनसत्‍ता जैसे अखबार को छोड़ कर स्‍वतंत्र पत्रकारिता कर रहे संजय कुमार सिंह नई दिल्‍ली में वरिष्‍ठ और सक्रिय पत्रकार हैं।

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