: दिल्ली में हंगामा बरपाया पापा की परी ने : हचक-मदिरा से क्रोधावतार बनीं देवी के नाट्य-रूपांतण अभिनय से उपस्थित जन-समूह हतप्रभ : इन्हें तो अहसास भी नहीं होगा कि यह कालोनी है, उनका शयन-कक्ष नहीं : आक्रोश तो किसी में भी भड़कता है तो शालीनता की सारी सीमाएं ध्वस्त :
कुमार सौवीर
लखनऊ : आक्रोश तो किसी में भी भड़क सकता है। जब भड़कता है तो शालीनता की सारी सीमाएं तोड़ देता है। हालांकि गुस्सा तो पुरुष भी करता है और अपने हमलावरी विरोध में वह अश्लीलतम गालियों को भी अपना अस्त्र बना कर उसके मर्म-विषय का जीवन्त अभिनय भी करता है। स्थिति यह हो जाती है कि उस दौरान प्रतिस्पर्धी लोग या उनके समूह ऐसी गालियों और उनके अभिनय पर मन ही मन तालियां खूब बजाते हैं।
ऐसी हालत में इन देवी जी ने भी यही किया, तो मैं कहता हूं कि आखिर उन्होंने क्या गलत किया ? उनको भी अभिव्यक्ति का पूरा अधिकार है। मुकम्मिल गवाह है भारत का संविधान। कहो तो पन्ने पलट कर दिखा दूं।
बस, गालियां देने से पहले दारू में टल्ली मत हुआ देवी जी !
दिल्ली के शांति नगर में आज सुबह यही कीर्तन करती दिखी हैं अपना गुबार निकालतीं यह देवी जी। कहने की जरूरत नहीं है कि पापा की परी से साक्षात क्रोधावतार बन चुकीं और मस्त-मदिरा सेवन चुकी इन देवी जी के गूढ़-मर्म के जीवंत नाट्य-रूपांतण अभिनय से वहां उपस्थित पूरा स्थानीय जन-समूह हतप्रभ हो गया। हालांकि हमारे समाज में गालियां स्वीकार्य नहीं होती हैं, लेकिन गुजरात और बिहार राज्यों की शराबबंदी को मुंह चढ़ाने के लिए वहां की जनता आतुर ही रहती है। ठीक वही हालत है स्त्रियों की। सेक्स प्रक्रिया में सुभाषितानि स्वरूप शब्दों का प्रयोग चलता है, वह सुस्पष्ट गालियों का भी सुपर-टेक्नॉलॉजिकल डिक्शनरी बन जाती है, क्योंकि तब समेकित क्रियाओं में वह शब्द-गालियां भी अपना प्रभावोत्पादकता करना शुरू कर देते हैं।
मगर इन देवी जी की बात दीगर है। वे इतना ठांस कर दारू हलक में उड़ेल चुकी हैं, कि उन्होंने अहसास भी नहीं होगा कि यह कालोनी है, शयन-कक्ष नहीं, जहां हर प्रकार की क्रिया सहज ही नहीं, अनिवार्य और ओषधि बन जाती है।
होशियार, होशियार, होशियार।
इस वीडियो को देखने के पहले अपने मोबाइल पर इयर-फोन जरूर लगा दीजिएगा। इसमें अश्लीलतम गालियों की बौछार है। अन्यथा आप शर्मसार हो जाएंगे।
गुरूवर।सादर साष्टांग दंडवत् प्रणाम् –हम खुश है अंदाज देखकर –न ये गार्ड है और न ये सिक्यूरिटी –सोसायटी मे सब भीगी बिल्ली के अंदाज मे नाका उठाते गिराते है –सोसायटी मे मेंटेनेंस के नाम पर हर फ्लेट से तीन से सात हजार रू की राशि हर माह मिलती है –करोड़ो रू का खेल है यहां राजनीति चलती है पैसे की –बस ये झगड़े की खीचातानी चलती है रोज–