इत्ती अर्जेंसी ! क्या परिवहन निगम की बोली लगनी शुरू ?

बिटिया खबर

: निगम की सम्पूर्ण संपत्तियों का मूल्यांकन 24 घंटे में कराने का सबब सवालों में : कर्मचारियों की आशंकाएं एकदम निर्मूल ही हों, ऐसा हरगिज नहीं : कानाफूसी जोरों पर कि कोई बड़ा षड्यंत्र तो नहीं :

कुमार सौवीर

लखनऊ : अन्नदाता ! अर्जेंसी-ऑयल बहुत ज्यादा पोत डाला है तुमने अपने ऊपर। इत्ता बड़ा काम, और टाइम-फेम इत्ता कम? इतनी जल्दबाजी का सबब क्या है हजूर? सरकारी कामकाज में तो ऐसा तो कभी हुआ ही नहीं कि प्रदेश भर की सारी सूचनाएं सिर्फ 48 घंटे के भीतर अन्नदाता के हाथ में देने के लिए सिर्फ 24 घंटे की नोटिस दी गई ? अब कानाफूसी यह है कि कहीं कोई बहुत बड़ा षड्यंत्र तो नहीं चल रहा है परिवहन निगम में? ऐसा तो नहीं है कि ऐसी सूचनाओं को इकट्ठा करके उत्तर प्रदेश सड़क परिवहन निगम के कर्मचारियों के पैरों पर कुल्हाड़ी मार देने का षड्यंत्र बुना जा रहा है? कर्मचारियों में हड़कंप मचा हुआ है कि कहीं परिवहन निगम को ही तो निजी हाथों में थमाने का गुल खुलाने का षड्यंत्र हो रहा है।
आपको बता दें कि उत्तर प्रदेश सड़क परिवहन निगम के एमडी ने हुक्म दिया है कि प्रदेश भर की सभी निगम संपत्तियों का मूल्यांकन तत्काल कर लिया जाए और उसे फौरन से पेश्तर मुख्यालय तक पहुंचा दिया जाए। प्रबंध निदेशक का यह आदेश है कि यह जानकारी सूचना 2 दिन के अंदर मुख्यालय तक पहुंच जानी चाहिए। जाहिर है कि एमडी का यह काम मोस्ट अर्जेंट माना गया होगा। इसके लिए मुख्यालय के अधिशासी अभियंता ने सभी क्षेत्रीय प्रबंधकों को हुक्म दिया है 24 घंटे के अंदर की सारी सूचनाएं उनके पास पहुंच जाए ताकि अगले ही दिन वह सारी सूचनाएं प्रबंध निदेशक को थमा दिया जाए
ताजा मामला है सड़क परिवहन निगम की जिलों या कस्बों में मौजूद संपत्तियों पर खंगालने की कोशिशें। इन कोशिशों ने परिवहन निगम के कर्मचारियों को बुरी तरह डराना और दहलना शुरू कर दिया है। प्रबंध निदेशक के आदेश ने आज ही यानी पहली नवम्बर को आदेश दिया है कि प्रदेश की सभी संपत्तियों का आर्थिक मूल्यांकन कर लिया जाए। इसे सर्वोच्च काम मानते हुए सभी क्षेत्रीय प्रबंधकों और उनके सहायक क्षेत्रीय प्रबंधकों को दायित्व सौंपा गया है। इन लोगों से कहा गया है कि वह उन संपत्तियों का जिला कलेक्टर द्वारा निर्धारित सर्किल रेट के हिसाब से उनका संपूर्ण मूल्यांकन मुख्यालय में प्रबंध निदेशक तक पहुंचा दिया जाए। इसके लिए उन्हें केवल 48 घंटे का समय दिया गया है। हैरत की बात तो यह है कि अभी तक स्पष्ट नहीं हो पा रहा है कि इस मूल्यांकन में केवल भूमि, भूमि पर बने भवन और कार्यशाला ही नहीं, बल्कि सभी बस और अन्य वाहन का भी मूल्यांकन किया जाना है अथवा नहीं।
अब चुकी परिवहन निगम के प्रबंध निदेशक का आदेश है और एमडी ही परिवहन निगम का माई-बाप यानी अन्नदाता होता है, ऐसी हालत में मुख्यालय में बैठे संबंधित अधिशासी अभियंता ने अपने आका को मक्खन लगाने के लिए 48 घंटे की समय-अवधि को सिर्फ 24 घंटे तक समेट दिया। यानी जो सूचनाएं एमडी को 3 नवंबर तक पहुंचना है, उन्हें अधिशासी अभियंता ने 2 नवंबर की शाम तक अपने पास लखनऊ मंगवा लेने का हुक्म दिया है। यानी अब यह सारी रिपोर्ट अगले 24 घंटे के अंदर मुख्यालय तक पहुंच जाएगी।
लेकिन समझ में नहीं आ रहा है कि प्रबंध निदेशक को ऐसी क्या अनिवार्य आवश्यकता पड़ गई है कि वह इन सूचनाओं को तत्काल प्रभाव में हासिल करना चाहते हैं। कर्मचारियों में चल रही कानाफूसी युक्त चर्चा में फिलहाल भय का माहौल है। कर्मचारियों को डर लग रहा है कि कहीं यह रिपोर्ट इसलिए तो नहीं मंगवाई जा रही है ताकि उसे किसी षड्यंत्र में निगम धकेल दिया जाए। साफ कर्मचारियों की आशंका तो यही है कि यह पूरी कवायद परिवहन निगम को निजी हाथों में सौंपने का मंशा रखती है। लेकिन ऐसा कब होगा, इस बारे में कर्मचारियों को अभी तक कोई भनक नहीं मिल पा रही है।
कर्मचारियों की आशंकाएं एकदम निर्मूल ही हों, ऐसा हरगिज नहीं है। निगम के अफसरों की कारगुजारी से वे आतंकित हैं। उनको डर है कि बात-बात पर कर्मचारियों को प्रताड़ित करना, उनको आर्थिक हितों पर ठोकर मारना, उन्हें अपमानित करना, उनकी सेवा अवरुद्ध करना ही नहीं, बल्कि खबर तो ऐसी भी आ रही है कि उनकी सेवा समाप्त करने की साजिशें चल रही हैं। हाल ही कुछ स्थाई कंडक्टर और चालकों समेत अनेक कर्मचारियों को बर्खास्त करने की कोशिशें इसी संबंध में देखी जा रही है।

इस बारे में अधिशासी अभियंता समेत कई अफसरों का पक्ष लेने की कई बार कोशिश की गई, लेकिन उनका फोन नहीं मिल सका।

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