कुछ सम्‍पादक अपनी इश्‍क-मिजाजी, तो कुछ दीगर धंधों में लिप्‍त

बिटिया खबर
: खबर अक्‍सर वह नहीं, जो आपने देखा। कभी खबर में छिपी खबर तो खोजिए : बरेली और जौनपुर के सरकारी अस्‍पतालों में हुई घटनाएं बेहद शर्मनाक हैं। लेकिन असलियत से परे : जानबूझ कर छिपायी जाती है खबरें, या अनजाने में : खबर की हत्‍या-एक :

कुमार सौवीर
लखनऊ : किसी भी अखबार या टीवी में दिखती खबर पर आप देखते ही विश्‍वास कर बैठते हैं। सामान्‍य तौर पर किसी भी घटना को हम बेहद सरसरी तौर पर ही देखते हैं। जो शब्‍द छपे या सुनाये-दिखाये जा रहे हैं, उसे ही ब्रह्म-वाक्‍य मान कर हम केवल व्‍यवस्‍था और आरोपी को ही अपराधी मान कर उसकी पुरजोर निंदा करना शुरू कर देते हैं। यह बिलकुल भी नहीं सोचने की जरूरत समझते कि उस सुनायी-दिखायी-पढ़ाई जा रही खबर के पीछे भी कोई तथ्‍य और भी है या नहीं। या फिर वह जानबूझ कर छिपायी गयी है, या फिर अनजाने में रिपोर्टर ने छोड़ दिया है। ब्‍यूरो प्रमुख को खुद भी अपनी खबर लिखनी होती है, और बाकी समय में वह विज्ञापन बटोरने जैसी बहुधंधी प्रवृत्तियों को पालता-पोसता है। ऐसे में वह दूसरे रिपोर्टर या संवादसूत्र की भेजी गयी खबर पर ज्‍यादा दिमाग नहीं लगाता। ज्‍यादा मीन-मेख निकालने का एक बुरा असर यह भी सकता है कि खबरों का फ्लो कम हो जाएगा और ऐसी हालत में पन्‍नों को कैसे भरा जाएगा।
बड़े-पत्रकार और सम्‍पादक भी इस बारे में अपनी मगज-मारी करने से बचते हैं, वजह यह कि उनके पास दीगर धंधे-खेल होते हैं। सत्‍ता से जुड़ी खबरों को पालने-पोसने उन्‍हें भड़काने-दबाने या काटने-उछालने की कवायद के बीच सम्‍पादक के पास और भी काम होते हैं। इनमें से कुछ सम्‍पादक तो अपनी इश्‍क-मिजाजी को काफी वक्‍त देते हैं, तो कुछ सम्‍पादक अपनी दीगर कमाई के रास्‍ते खोजने और उन्‍हें मजबूत करने की कवायद में जुटे होते हैं। आज नौकरी है, न जाने कब कुर्सी चली जाए। अखबारों-चैनलों में बच्‍चों के लिए भी एक कॉलम दिया जाता है, लेकिन उसके साथ ही लिंग-वर्द्धक यंत्र की बिक्री के विज्ञापन होते हैं, तो वहीं पर धर्म-आध्‍यात्‍म, आचरण, नीति-ब्रह्मवाक्‍य भी छापे जाते हैं। कोई भी यह सवाल नहीं उठाता कि बच्‍चों पर उसका क्‍या असर पड़ रहा होगा। ऐसे में खबरों की विश्‍वसनीयता का पैमाना मान लिया जाए, समझ में नहीं आता। जाहिर है कि ऐसी हालत में खबरों का गला ही घोंटा जाता है।

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खबर की हत्‍या

ताजा दो घटनाएं खबर की सुर्खियां बनीं। एक तो बरेली के सरकारी अस्‍पताल में भर्ती एक युवती के साथ दुष्‍कर्म की खबर आयी है। और दूसरी घटना में बताया गया है कि जौनपुर के महिला अस्‍पताल में तैनात एक डॉक्‍टर ने चेकअप के दौरान महिला मरीज के गुप्‍तांग को चाटने की कोशिश की। अखबारों ने इस घटना को खूब छापा। बरेली की घटना को तो मैं पूरी तरह कवर नहीं कर पाया, लेकिन जौनपुर वाली घटना को मैंने जब छानना शुरू किया तो पता चला कि यह घटना ही फर्जी है। शारीरिक तौर पर अशक्‍त-विकलांग मगर अपने काम में माहिर-कर्मठ डॉक्‍टर की छवि है उस डॉक्‍टर की, लेकिन उसकी प्रतिष्‍ठा की बर्बर-बेशर्म हत्‍या कर डाली इन अखबारों ने। पूरी बेशर्मी के साथ इन अखबारों ने उसे खूब छापा ही नहीं, बल्कि उस डॉक्‍टर का एक बयान तक लेने की जरूरत नहीं समझी पत्रकारों ने। हिन्‍दुस्‍तान और दैनिक जागरण ने तो उसे पहले पन्‍ने पर छापा, और सुर्खियों तथा मोटे हर्फों में छापा। हां, अमर उजाला इस मामले में कोसों दूर खड़ा दिखा और पूरी संवेदनशीलता का प्रदर्शन करते हुए खबर को खबर के तौर पर पेश किया। लेकिन इसके बावजूद किसी भी खबर ने उस खबर पर फालोअप की जरूरत नहीं समझी। हिन्‍दुस्‍तान और जागरण के सम्‍पादक तो इस खबर पर इतना जोशीले हो गये कि उन्‍होंने अपने अखबार में एक हीरा व्‍यवसायी को गोली मार कर पौने दो करोड़ रूपयों के हीरों की लूट वाली खबर को भीतर के पन्‍ने पर फेंक दिया, मगर अस्‍पताल वाली खबर पहले पन्‍ने पर चांप दिया।

( तो आइये, हम आपको दिखाते हैं कि खबर को किस तरह खेल का खेल बनाये हैं हमारे संपादक और पत्रकार। दोलत्‍ती डॉट कॉम इस मामले की गहरी छानबीन कर आपके सामने उन तथ्‍यों का साक्षात्‍कार कराना चाहता है, जो इन अखबारों ने छिपा दीं, या उन्‍हें कूड़ेदान में फेंक डाला। दोलत्‍ती का यह प्रयास श्रंखलाबद्ध है, आप चाहें तो अपने आसपास के इलाकों में पत्रकारों की ऐसी करतूतों का खुलासा कर कर सकते हैं। हमसे आप हमारे फोन 8840991189 अथवा 9415302520 पर बेहिचक सम्‍पर्क कर सकते हैं। आप चाहेंगे, तो हम आपका नाम गुप्‍त ही रखेंगे। सम्‍पादक: दोलत्‍ती डॉट कॉम )

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