पॉलिटिक्‍स में भी बेली-डांस सरीखे ठुमके खूब पसंद हैं मुलायम को

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

: मुलायम कहीं भी रहे हों, सैफई महोत्‍सव में बेली-डांस किसी भी कीमत पर नहीं छोड़ते : राजनीति में जितने ठुमके मुलायम ने लगाये-लगवाये हैं, उनका हिसाब असम्‍भव : सपा का ताजा घमासान भी मुलायम की मनपसंद बेली-डांस सरीखी :

कुमार सौवीर

लखनऊ : बेली-डांस। इत्‍ता नशीला। मुलायम सिंह यादव को इस शौक का स्‍वाद चखाया था अमर सिंह ने। बस फिर क्‍या था। गजब जोश, अंगड़ाई, ठुमके और अदा ही नहीं, अदाकारी और अदा करने वाले लोग-लोगनियां भी। सच बात तो यह है कि पहली नजर में ही दिल हार गये थे मुलायम सिंह यादव। फिर नतीजा यह हुआ कि मुलायम सिंह यादव कहीं भी रहे हों, कितनी भी जरूरी मीटिंग में रहे हों, लेकिन सैफई महोत्‍सव के दौरान जब बेली-डांस का मौका आता था, मुलायम और सैफई एकाकार हो जाते थे। ऐसे हर एक शो को मुलायम ने कभी भी नहीं छोड़ा।

लेकिन केवल डांस ही क्‍यों। मुलायम को तो राजनीति के ठुमके भी खूब पसंद हैं। उनकी राजनीति का एकमेव सूत्र ही हमेशा रहा है कि काम ऐसा करो, जिसमें ठुमके खूब लगें। चाहे वह राजनीति में उठापटक का मामला हो, या फिर पेंच-दांव का। जैसे बेली-डांस में डांसर अपने कमर, नितम्‍ब और वक्षों के साथ ही साथ अपनी भौंहों और पेट को बलखाते हुए नाचती हैं, ठीक उसी तरह मुलायम सिंह यादव भी अपनी राजनीति में इस तरह के ठुमके लगवाने, नचवाने, और उसके बाद एक के बाद एक अंग को फड़काने के हिमायती रहे हैं।

समाजवादी पार्टी में आजकल जो कुछ भी दंगल, उठापटक, धर-चुक्‍कई और अखाड़ा का शोर चल रहा है, मुलायम सिंह यादव के पुराने और दिलचस्‍प, स्‍वादिष्‍ट और लज्‍जत स्‍वाद का मामला ही है।

आप खुद देख लीजिए कि अतीत में मुलायम सिंह यादव ने क्‍या-क्‍या नहीं किया है राजनीतिक अखाड़े में। चंद्रशेखर को पहले फुसलाया, लेकिन फिर अचानक वीपी सिंह का झंडा फहरा दिया। अयोध्‍या में भाजपा के लोग अपनी बीन बजा रहे हैं, लेकिन मुलायम सिंह यादव ने गोलियां चलवा कर अयोध्‍या से लेकर पूरे देश तक में लाशों वाली बेली-डांस करवा दिया। हालांकि शुरूआती दौर में लगा कि मुलायम सिंह यादव और उनकी समाजवादी पार्टी अब हमेशा-हमेशा के लिए राजनीतिक फलक से फूटे गुब्‍बारे की शक्‍ल अख्तियार कर लेगें। लेकिन ऐसा हुआ नहीं।

बल्कि हुआ तो यह, कि कांग्रेस हमेशा-हमेशा के लिए यूपी से गैरहाजिर होने को मजबूर हो गयी। राजनीति का ध्रुवीकरण नये अंदाज में आया और फिर भारतीय जनता पार्टी, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ही यूपी के अपरिहार्य बन गये। लेकिन इसके बावजूद मुलायम सिंह यादव इन तीनों ध्रुवों के केंद्र में बने रहे और भाजपा और बहुजन समाज पार्टी को पदनी का नाच नचाते ही रहे। बिलकुल बेली-डांस की तरह। उनका एक ठुमका तो मायावती के साथ राज्‍य अतिथि गृह कांड करा गया था।

अपने लोगों को भी खूब ठुमके लगाया है मुलायम ने। चाहे वह हृदयनारायण दीक्षित रहे हों, या फिर अब अखिलेश यादव और रामगोपाल यादव जैसे लोग। इसके बीच कभी बेनी प्रसाद वर्मा को ठुमका लगा, तो कभी अमर सिंह को। कभी आजम खान नोंचे गये, और तो कभी यह तो कभी वह विकेट गिरे। चर्चाएं तो ऐसी ही हैं कि सपा में आज कल जो कुछ भी चल रहा है, वह मुलायम की पॉलिटिकल-बेलीडांस के ठुमके के चलते ही है। कभी किसी को उत्‍तर दिशा में नचाना, फिर उसे दक्खिन कर देना जैसा जो कौशल मुलायम सिंह यादव ने किया और दिखाया है, वह अलौकिक है।

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