इस बड़ा-दारोगा ने गलती तो की, अपराध नहीं

दोलत्ती

: तबादला बीमार अफसर को विश्राम की व्‍यवस्‍था के तहत भी हो सकता : कार्रवाई तो पहले जस्टिस संजय मिश्र व तेजप्रताप पर हो : अनिरुद्ध सत्‍यार्थ की पहचान कर्मठ बड़ा-दारोगा की :
कुमार सौवीर
लखनऊ : शिक्षक भर्ती घोटाले का पर्दाफाश करने वाले प्रयागराज का बड़ा-दारोगा यानी एसएसपी सत्यार्थ अनिरुद्ध अब ढक्‍कन कर दिया गया है। आरोप है कि उसने एक मित्र को अपने सरकारी आवास पर टिकाया, यह जानते हुए भी कि वह कोरोना पॉजिटिव था। यह भी नहीं देखा सत्यार्थ ने कि उसके घर में उसके बुजुर्ग पिता भी रहते हैं। नतीजा यह हुआ कि सत्‍यार्थ के साथ ही साथ उनके पिता, उनका ड्राइवर और गनर भी बीमार हो गये। अब मुख्यमंत्री ने सत्‍यार्थ को सत्यार्थ को धर्मनगरी से हटा कर प्रतीक्षा सूची में कोरंटाइन कोठरी में बंद कर दिया है।
यहां सवाल इस बात पर नहीं है कि अनिरुद्ध सत्‍यार्थ इस मामले में निर्दोष हैं। हालात साफ गवाही दे रहे हैं कि अनिरुद्ध ने अपने पद का अनुचित प्रयोग किया है। इतना ही नहीं, सहज बुद्धि और समझदारी का भी प्रदर्शन नहीं कर पाय था इस पूरे दौरान इलाहाबाद का यह बड़ा-दारोगा सत्‍यार्थ। लेकिन इस पूरे मामले में यह जानना जरूर समीचीन है कि अनिरुद्ध सत्‍यार्थ अपराधी है या फिर उससे इस मामले में गलती हो गयी। मेरा मानना है कि यह बड़ा-दारोगा निष्‍पाप दारोगा है, जिससे बस एक गलती हो गयी। मीडिया अब इस तबादले को फुटबॉल बना रहा है, लेकिन हमें यह भी देखना ही चाहिए कि अनिरुद्ध का यह तबादला एक बीमार अफसर को पर्याप्‍त विश्राम देने की व्‍यवस्‍था के तहत भी हो सकता है।

कुछ भी हो, कोरोना से संक्रमित किसी व्‍यक्ति को अपने घर पर अपने साथ टिकाना गले से नीचे नहीं उतर रहा है। एसएसपी जैसे ओहदे पर बैठा और 69 हजार शिक्षकों की भर्ती में हुए घोटाले का पर्दाफाश कर रहा शख्‍स इतनी बडी मूर्खता कर सकता है, यह कोई भी मानने को तैयार नहीं होगा। मेरा साफ दावा है कि यह किसी न किसी साजिश का ही हिस्‍सा है। बहरहाल, दोलत्‍ती-टीम तो इस मामले पर जुटी हुई ही है।
बहरहाल, इस पूरे मामले को जरा तरतीब से देखने की कोशिश कीजिए। अनिरुद्ध सत्यार्थ का जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय का छात्र रहे चुके हैं। पिछली आठ जून को उनका जेएनयू का सहपाठी विश्वदीपक त्रिपाठी उनसे मिलने प्रयागराज आया था। 10 जून को कोरोना के लक्षण दिखे, तो सरकारी अस्‍पताल में जांच कराई गई। 12 जून को मिली इसकी रिपोर्ट में त्रिपाठी पॉजिटिव निकला। बताते हैं कि इस रिपोर्ट के आधार पर डॉक्टर ने आईपीएस सत्यार्थ को सलाह दी कि उसे अस्पताल में भर्ती करा दें। लेकिन सत्यार्थ ने ऐसा करने के बजाय अपने मित्र को अपने घर में ही रखा। आरोप है कि डॉक्टर को सत्‍यार्थ ने धमकी की वह इसका खुलासा न करे।
12 जून को सत्यार्थ अनिरुद्ध में भी कोरोना लक्षण दिखे, तो जांच रिपोर्ट पॉजिटिव आने के बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती होने के कहा गया। लेकिन उन्होंने भर्ती होने से मना कर दिया। उनका सैम्पल लेकर जांच के लिए मोतीलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज प्रयागराज भेजा गया। जिसमें वह पॉजिटिव निकले, इस पर डॉक्टर ने उन्हें अस्पताल में भर्ती होने को कहा पर वह नहीं माने और ड्यूटी करते रहे। वरिष्ठ अधिकारियों ने जब उन पर दबाव डाला तो उसी तारीख की शाम में फिर से उनका सैम्पल लिया गया। पहले सैम्पल की रिपोर्ट 15 जून को आई जिसमें वह पॉजिटिव निकले। वहीं दूसरे सैम्पल की रिपोर्ट 16 जून को आई, जो पॉजिटिव थी। इसके बाद वह अस्पताल में भर्ती हुए।
आईपीएस सत्यार्थ की गलती और लापरवाही की वजह से पुलिस फोर्स में कोरोना संक्रमण फैलने का खतरा बढ़ गया है। इस बात की जानकारी जब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को हुई तो उन्होंने सख्त रुख अख्तियार करते हुए आईपीएस सत्यार्थ का 15 जून को तबादला करते हुए उन्हें प्रतीक्षा सूची में डाल दिया।
आपको बता दें कि 69000 हजार शिक्षकों की भर्ती के मामले में प्रयागराज में आईपीएस सत्यार्थ अनिरुद्ध ने भंडाफोड़ किया। अपनी इस कार्रवाई में अनिरुद्ध को खासी ख्‍याति मिली थी। वैसे भी बताते हैं कि अनिरुद्ध सत्‍यार्थ की पहचान मूलत: एक कर्मठ बड़ा-दारोगा की ही है।
सच बात तो यही है कि किसी भी घटना के कारणों को किसी दूसरी घटना के कारणों से नहीं तौला-आंका जा सकता है। लेकिन जब सरकारी और प्रशासनिक कार्रवाइयों का सवाल उठने लगता है कि तो फिर ऐसे सवाल उठने स्‍वाभाविक हो जाते हैं, जहां एकसमान घटनाओं में लिए गये फैसलों पर जमीन-आसमान का अंतर दिख रहा हो।
इसके पहले भी कई घटनाएं हो चुकी हैं, जहां कोराना संक्रमण या उसके आशंका होने की बात रही हो, और ऐसे मामलों में प्रदेश के खासे रसूखदार लोगों का नाम शामिल रहा हो। ऐसे मामले तब हुए, जब कोरोना-काल के दौरान लॉकडॉउन चल रहा था और धारा 144 लागू कर एकसाथ पांच से अधिक लोगों का जमावड़ा लगाने पर सख्‍त मनाही थी। ऐसे दौर में यूपी के एक बड़े आईएएस अफसर ने अपनी दो दो बेटियों को इंग्‍लैंड और पेरिस से बुलवा लिया था। लेकिन उसकी जांच कराने के सारे कानून ठेंगे पर रख दिये गये।

इतना ही नहीं, इन बेटियों के साथ यह अफसर दिल्‍ली में अपने घर में रुका, और उसके तीन दिन बाद लखनऊ पहुंच कर अधीनस्‍थों के साथ कई बैठकों में भी शामिल रहा। लेकिन सरकार ने इस मामले पर कोई भी कार्रवाई नहीं की। ठीक यही मामला कनिका कपूर की पार्टी में हुआ। यह सवाल अब तक धूल खा चुका है कि इस पार्टी की इजाजत किसने दी थी और उस मामले में यूपी के मानवाधिकार आयोग के अध्‍यक्ष और हाईकोर्ट के पूर्व जस्टिस संजय मिश्र तथा यूपी के स्‍वास्‍थ्‍य मंत्री तेजप्रताप सिंह समेत सैकड़ों शामिल हुए, जो समाज में खासा रसूखदार माने जाते हैं।
यूपी सरकार इन मामलों में शुरू से ही अपने होंठ सिले हुए है। जबकि इन लोगों ने हजारों लोगों को संक्रमित करने की जघन्‍य हरकत और अपराध किया। इसके विपरीत अनिरुद्ध सत्‍यार्थ ने ऐसा कोई जुर्म नहीं किया। बल्कि इस बड़ा-दारोगा यूपी केसबसे बड़े शिक्षक भर्ती घोटाले का सच बेपर्दा करने में जुटा रहा। हां, सत्‍यार्थ को अपने कोरोना मित्र को अपने घर नहीं टिकाना चाहिए था। यह गलती तो हो सकती है, लेकिन अपराध तो कत्‍तई नहीं। लेकिन ऐसा किन पर‍िस्थितियों में हो गया, इसका खुलासा किया जाना जरूरी है कि जो तथ्‍य सामने आ रहे हैं, वह वाकई सच हैं, या फिर किन्‍हीं साजिशों के चलते इस बड़ा-दारोगा पर थोपे जा रहे हैं।

दोलत्‍ती टीम इस मामले में छिद्रान्‍वेषण में है। आप में से किसी के पास भी इस मामले में इधर अथवा उधर की सूचना हों, तो आप निम्‍न वाट्सऐप अथवा ईमेल पर भेज सकते हैं। 9453029126 के अलावा kumarsauvir@gmail.com अथवा dolattitv@gmail.com। आप चाहेंगे, तो हम आपका नाम और अन्‍य परिचय पूरी तरह गुप्‍त ही रखेंगे। :- कुमार सौवीर, संपादक

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