बुर्के और घूंघट में दबी रह जाती है आवाजें

सक्सेस सांग

लोक-गायिका इला अरूण चाहती हैं दबी आवाजों को उठाना

: संगीत का विकास चाहिए तो बड़ी दूकानों के सामने बजवाइये सारंगी : मुम्बई में सुबह चार का सूरज न देख पाने का मलाल है इला को : स्लमडॉग मिलिनेयर का गीत रिंग-रिंग रिंगा ने फिर दिलायी नई पहचान :

साशा सौवीर

लखनऊ : ‘मां कहती थीं कि कहां धूल में पड़ी हो, नवाबों की नगरी आओ. आम की बगिया देखो. हर ईंट का स्वर्णिम इतिहास है।’ पहले तो मैं हंस देती थी, लेकिन बाद में यहां आई तो लगा सच ही तो है, कितनी प्यारी और अनोखी जगह है। हर इमारत अपने आप में कुछ बोलती है। मां सच ही कहती थीं। यहां तो पहली ही नजर में प्यार हो गया। कहने को तो मुंबई में रहती हूं, लेकिन दिल तो लखनवी ही है, मां की यादें भी जुड़ी हैं।

प्रसिद्ध गायिका और अभिनेत्री इला अरूण अपने बीते कल को कुछ यूं बयां करती हैं। माता-पिता से लगाव इतना कि उनके गुजर जाने के कइ्र्र साल बाद भी लखनऊ में कदम रखते ही लगता है कि वे आशीर्वाद दे रहे हों। कहने को तो वे मुंबई की चकाचौंध में रहती हैं लेकिन अपनी मिट्टी और जमीन को याद करती हैं। इला बताती हैं कि उनकी माता उन्नाव की रहने वाली थीं और पिता काकूपुर के। पिता बैंक में मैनेजर थे तो उनका ट्रांसफर जयपुर हो गया। पिता सेवानिवृत्त होने के बाद मां को लेकर लखनऊ में बस गए। उन्होंने इला से भी यहां आने का आग्रह किया, जब वह वहां गईं तो लगा कि जैसे इस जगह से जन्मों का नाता है। सबसे प्यारी चीज यहां की उर्दू भाषा लगी। इसी के बाद से उर्दू के प्रति ऐसा परवान चढ़ा कि किताबें पढ़-पढ़ कर इस भाषा पर पकड़ बना ली। भागदौड़ वाले शहर मुंबई में चार बजे न उठ पाने का मलाल है इला को। फिर भी पांच बजे तक उठ जाती हैं। उन्हें सूर्योदय देखना पसंद है।

चोली के पीछे गाने ने दी प्रतिष्ठा

यूं तो इला ने अपने जीवन में कई हिट गाने गाए। लेकिन कुछ गानों को वह अपने करियर की नींव मानती हैं। खलनायक का गीत चोली के पीछे इन्हीं गीतों में शामिल है। इसके अलावा स्लमडॉग मिलिनेयर का गीत रिंग-रिंग रिंगा भी खूब सराहा गया। आइपीएल में प्रीति जिंटा की टीम के लिए हल्ला बोल गाना भी मजेदार था।

रियलिटी शो भी करेंगी

शायरी, गजलों और लोकगानों पर आधारित इला एक रियलिटी शो शुरू करने जा रही हैं। इसमें वे उन युवाओं को मौका देंगी जिनकी उर्दू पर अच्छी पकड़ होगी और शायरी व गजलों का शौक होगा। बकौल इला यहां से उन्होंने दो शायरों का चयन भी कर लिया है लेकिन उनके नाम नहीं उजागर किए। यह शो डीडी उर्दू पर प्रसारित होगा।

सरकार करे सहयोग

लखनऊ में हेरिटेज वॉक का मैंने मजा उठाया। यहां अभी कुछ और भी किया जा सकता है। जैसे गलियों में यहां के मशहूर व्यंजनों के स्टाल लगा दें। सारंगी वाले को बिठा दें। इससे खूबसूरती के साथ-साथ रोजगार भी मिलेगा। युवा मुख्यमंत्री कला प्रेमी हैं और मुङो पूरा भरोसा है कि वे इस ओर ध्यान देंगे।

महिलाओं की स्थिति

इला के मुताबिक उत्तर प्रदेश में महिलाओं की आवाज बुर्के या घूंघट में दब जाती है। परंपराओं में वह इतना बंध जाती हैं कि अपने हितों व अधिकारों के लिए भी नहीं खड़ी हो पाती। इसी आवाज को निकालने के लिए वह कुछ करना चाहती हैं।

और अब लखनऊ

जयपुर में पली बढ़ी इला को लखनऊ से खासा लगाव है। उर्दू भाषा और लखनवी तहजीब से गहरे नाते के चलते वे दोनों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आगे बढ़ाने के लिए एक रियलिटी शो में जल्द ही लखनऊ की प्रतिभाओं को मौका देंगी।

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इला अरूण से उनकी यह बातचीत आज दैनिक जागरण में प्रकाशित हुई है। साशा सौवीर दैनिक जागरण के लखनऊ संस्करण में रिपोर्टर के पद पर कार्यरत हैं। वे मेरी बिटिया डॉट कॉम की संस्थापक भी रह चुकी हैं। साशा से sashasauvir@yahoo.com अथवा sashasauvir@ymail.com से सम्पर्क किया जा सकता है।

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