हर्ज क्‍या है, अगर औरतें अपने लिए भी जीना चाहती हैं

सक्सेस सांग

वह दौर गया, जब मन मसोस कर बैठ जाती थीं महिलाएं

( गतांक से आगे :- नो, नो। मेल आर नॉट एलाउड। ) लगभग पांच साल पहले स्थापित एक अन्य विमेल ट्रैवल क्लब विमेन ऑन क्लाउड्स क्लब की शिरीन मेहरा कहती हैं, हमारे साथ सैर-सपाटे पर जाने वाली औरतें जिंदगी में एकाकी होती हों, ऐसा नहीं है। कई बार ऐसा भी होता है कि परिवार में पति तो हैं मगर अपनी नौकरी या बिजनेस में इतने उलझे होते हैं कि एक या दो दिन से ज्यादा का पर्यटन उन्हें सुहाता नहीं है। कई बार यह भी होता है कि अपनी नौकरी के सिलसिले में वे इतना ज्यादा टूर पर रहते हैं कि खाली वक्त मिलते ही बस टीवी के आगे बैठना, बची-खुची नींद लेना या घर में खाना-पीना ही उनको पसंद आता है। अगर पुराना दौर रहा होता तो ऐसे में अकसर औरतों को अपने सपने भुला देने पड़ते थे। वो परिवार के साथ तालमेल बैठाया करती थीं, मगर अपने मन को मारने का मलाल जब-तब सताता रहता था। लेकिन अब ऐसा नहीं हैं। औरतें अब अपने लिए भी जीना चाहती हैं।

सुमित्रा के वाउ क्लब के साथ आप 8 से 21 जून 2013 तक कैलाश मानसरोवर की यात्रा पर निकल सकती हैं या फिर मई में भूटान और चीन-तिब्बत की सैर भी कर सकती हैं। सिंगापुर से लेकर तनजानिया और उज्बेकिस्तान तक की सैर इस ऑल विमेन टूर क्लब के साथ सुकून भरे अंदाज में की जा सकती है। वाउ क्लब की साधना भतीजा ने बताया कि हर टूर में एक वाउ बडी भी साथ में रहता है जो सैर सपाटे पर निकली महिलाओं की पूरी देखभाल की जिम्मेदारी उठाता है। सैर की मंजिलों पर महिलाएं सिंगल, ट्विन शेयरिंग जैसे विकल्प चुन सकती हैं यानी मन तो हो होटल के कमरे में अकेले रहने की आजादी और अगर खर्चा बांटने का इरादा हो तो किसी साथी ट्रैवलर के साथ कमरा शेयर करने की सुविधा भी। इस तरह, ये ऑल विमेन टूर काफी हद तक लचीले होते हैं।

विमेन ट्रैवल ग्रुप्स के साथ टूर पर भी सिर्फ औरतें ही जा सकती हैं, अगर कोई महिला टूरिस्ट अपनी बेटी को साथ ले जाना चाहती है तो वह ऐसा कर सकती है, लेकिन लड़कों को साथ नहीं ले जाया जा सकता। ऑल विमेन ट्रैवल क्लबों की लोकप्रियता दिन दूनी रात चौगुनी रफ्तार से बढ़ रही है जिसे देखकर आसानी से यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि गर्ल्सत रियली वॉन्ट टू हैव ऑल द फन इन लाइफ। आर्थिक आजादी ने उन्हें अपने छोटे-छोटे सपनों को पूरा करने का हौसला दिया है तो वहीं परिवार वाले भी अब कुछ खुले हैं। उनके परिजन भी अब उन्हें अकेले जाने से नहीं रोकते। इन पेशेवर क्लबों ने अपनी साख बनायी है और यायावरी की उत्सुक महिलाओं को वो दिया है जिसकी फरमाइश उन्होंने की। जैसे अकसर योग, ध्यान, रिलैक्सेशन वाले टूर हाथों हाथ बिक जाते हैं। इसी तरह, मिस्र के पिरामिडों से रूबरू कराने वाले टूर भी हैं तो कर्नाटक में गोकरणा तट पर सुकून भरे, मेडिटेशन-योग थेरेपी के अवसर दिलाने वाले टूर भी।

सुरक्षा आज के दौर में सबसे अहम मसला है, और सुमित्रा इसका भरपूर ख्याल रखती हैं। वे कहती हंर कि वे हमेशा ख्यातिनाम होटलों, लोकल साख प्राप्त साइट-सीन कंपनियों और गाइडों को ही तरजीह देती हैं। वैसे भी अब बड़े होटल महिला टूरिस्टों की बढ़ती संख्या में मद्देनजर काफी एहतियात बरतने लगे हैं। जैसे, कुछ होटल तो बाकायदा एक पूरा फ्लोर ही महिला टूरिस्टों के लिए आरक्षित रखने लगे हैं।  उस फ्लोर पर सर्विसिंग स्टाफ में भी महिला ही रखी जाती हैं।

यानी अगर कैलाश मानसरोवर की परिक्रमा का सपना बरसों से आपकी आंखों में तैर रहा है या ऋषिकेश में, गंगा की अठखेलियां करती लहरों पर राफटिंग करने का अरमान मन के किसी कोने में छिपा हो, और नहीं तो लेह की बुलंद चोटियों के दीदार की ख्वाहिश कहीं अटककर रह गई है या फिर विदेशी सरजमीं पर टहलने का अरमान हो लेकिन सिर्फ इस वजह से मन मसोसकर रह जाना पड़ जाता हो कि आप अकेली हैं तो अब इस मजबूरी को झट से अलविदा कहने का वक्त आ चुका है। (साभार:- ट्रिब्‍यून)

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