आईएएस वीक में खुद की पीठ ठोंकी, चरित्र पर चर्चा नहीं

मेरा कोना

: पुच्च पुच्च, टॉमी डोंट बार्क। सिट डाउन : दर्जनों अफसरों की गर्दन फंसी है भ्रष्टाचार के मामलों में : कई अफसरों की गिरफ्तारी की तैयारी में है सीबीआई : लो देख लो, बड़े बाबुओं की करतूतें- एक :

कुमार सौवीर

लखनऊ : उप्र के आधा दर्जन से ज्यादा आईएएस अफसर जेल काट चुके हैं। दो ने जेल जाने के लिए जेल की वर्दी पहनने की तैयारी कर ली है। दो दर्जन से ज्यादा अफसरों पर सीबीआई का मामला दर्ज हो चुका है। कई अफसर जेल जाने से बचने के लिए सुप्रीम कोर्ट तक की भागा-दौड़ी में व्यस्त हैं। न जाने कितने अफसर अपनी चमड़ी बचाने के लिए कचेहरी और वकीलों के चैम्बरों में जी-खोल कर पैसा खर्च कर रहे हैं। किसी के घर करोड़ों की रकम बरामद हुई है, तो कोई अपने अनैतिक रिश्तों और धंधों-करतूतों में फंसा है। न जाने कितने आईएएस अफसरों के बारे में खबर है कि उन्होंने जिले में पोस्टिंग के दौरान पुलिस कप्तान को फंसाने की हरचंद साजिश रची। किसी ने अपने कप्तान का तबादला करा दिया तो किसी ने उसे बाकायदा पाल लिया:- “पुच्च पुच्च, टॉमी डोंट बार्क। सिट डाउन।”

यह है यूपी की नौकरशाही। अभी चंद दिन पहले ही तो यूपी के इन बड़े बाबुओं यानी आईएएस अफसरों की यूनियन ने आईएएस-वीक के नाम पर अपना सालाना जलसा-जश्न मना लिया। मुख्यमंत्री से  लेकर राज्यपाल तक के यहां भेंट-मुलाकात और भोजन के न जाने कितने दौर चले। इस पूरे दौरान कभी तो क्रिकेट मैच खेला गया, तो कभी गीत-गजल का समां बाध लिया गया। कभी दौड़ तो कभी बास्केटबॉल। नाटक और अभिव्यक्ति की कई प्रतियोगिताएं आयोजित की गयीं। तो कहीं इन अफसरों की मेमसाहबों ने भी अपने लिए खास-खास कम्पटीशन आयोजित कराये।

इतना ही नहीं, इस पूरे हफ्ते इन अफसरों ने अपने कैडर की बेहतरी के लिए जितनी भी कोशिशें हो सकती हैं, उनका तस्करा मुख्यमंत्री के सामने रख दिया। जितनी भी दिक्कतें हो सकती हैं इन अफसरों को, उसे तत्काल निपटाने की जी-तोड़ कोशिश कर ली। सत्ता में अफसरशाही में अपने दखल को और मजबूत करने के लिए इन आईएएस अफसरों ने न जाने कितनी रणनीतियां बना डालीं। बताते हैं कि कई अफसरों ने यहां तक इस बात पर जोर दिया कि कैसे अधीनस्थ सेवा-कैडरों की लगाम-जीन आईएएस के हाथों थमा दी जाए।

लेकिन इस पूरे आयोजन या ऐसे किसी भी आयोजन में इस यूनियन ने इस कोहराम पर चर्चा नहीं की, कि किस तरह आईएएस लॉबी खुद अपनी ही नींव को खोखला कर रही है। इस यूनियन ने इस बात पर कभी भी चर्चा नहीं की कि नीरा यादव, अखण्डप्रताप सिंह और प्रदीप शुक्ला जैसे अफसर क्यों सरकारी खजाने पर कुण्डली मार कर जनता का धन के बजाय अपनी खानदानी जागीर में तब्दील कर देते हैं। क्याप वजह है कि यह आला नौकर खुद को किसी सामन्त और सम्राट तक की भूमिका को छीन लेते हैं। वह क्या कारण है कि सेवा के बजाय इन अफसरों को राजसी ठाठबाट सुहाता है। आम आदमी से क्यों  कटता जा रहा है नौकरों का सरताज।

एक बार भी चर्चा नहीं की आईएएस एसोसियेशन ने, कि क्यों और क्या कारण हैं कि आईएएस अफसरों ने नौकरशाही की विश्वसनीयता और उसकी गरिमा को लगातार रौंदना जारी रखा है। क्या कारण है कि एक जन-समर्पित नौकरों का संगठन होने के बजाय, आईएएस कैडर जन-विरोधी हरकतों में लिप्त हो जाता है। क्या कारण है कि अधिकाश अफसर बेईमान, अराजक, लम्पट और गैरजिम्मेदार होते जा रहे हैं। पता नहीं कि इन अफसरों को इस बात का इलहाम है या नहीं कि ऐश्वर्य में सनी अपनी जिन्दगी गुजार कर रहे इन आईएएस अफसरों के चेहरे पर चढ़ा मेकअप का रंग लगातार बदरंग होता जा रहा है। यह आज सख्त जरूरत है कि यह अफसर खुद के गिरहबान में झांकें, और अगर वे खुद ऐसा नहीं करेंगे तो आज न तो कभी यह काम दूसरी ताकतें कर देंगी।

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लो देख लो, बड़े बाबुओं की करतूतें

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