आप ईमानदार अफसर हैं, तो पहले बेईमान “बाबुओं” को नंगा कीजिए

मेरा कोना

: ओके मिस्टर सिविल सर्वेंट, बताओ कि कौन-कौन बेईमान हैं तुम्हारी सेवाओं में : आकण्ठ  बदनामी के बावजूद सम्मान की गुहार केवल आईएएस में ही मुमकिन : तुम्हें अधीनस्थों को बाबू-नुमा गाली पर ऐतराज है, लेकिन अपनों की करतूतें तो देखो : हैरत कि खुद को बचाने की कवायद में दूसरों को गरियाते हैं आला बाबू : अधीनस्थ  सेवाओं के आला अफसरों तक को कुत्ते की तरह झिड़कते हैं आईएएस अफसर : लो देख लो, बड़े बाबुओं की करतूतें- नौ :

कुमार सौवीर

लखनऊ : दुनिया की जितनी भी सबसे बड़ी और हैसियतदार ताकतें हैं, उनमें शील और सदाशयता का प्रचुर भाव कूट-कूट कर भरा होता है। चाहे वह अमेरिका हो, ब्रिटेन हो, जर्मनी अथवा जापान जैसे समाज हों, डब्यूएचओ, रेडक्रॉस और आईएलओ जैसे संगठन हों अथवा फिर मार्क जुगरबर्ग और लक्ष्मीविलास मित्तल जैसी शख्सियतें। लेकिन भारत में ऐसा हर्गिज नहीं है।

अभी कुछ ही वक्त पहले तक भारत में प्रभावशाली, विशाल और सर्वाधिक ताकतवर अफसरों के संगठन के तौर पर आईएएस यानी भारतीय प्रशासनिक सेवा को मान्यता दी जाती थी। लेकिन इस संगठन ने अपनी साख के पैरों पर खुद ही कुल्हाड़ी कर उसे क्षत-विक्षत कर डाला है। बावजूद इसके कि यह सरकारी सेवाओं का दुनिया में सबसे बड़ा संगठन के तौर पर माना जाता है, लेकिन आज इस विशालतम संगठन में विश्वसनीयता का संकट महामारी के तौर पर है। इस सेवा के अधिकांश सदस्यों पर पिछले दो दशकों के दौरान इतने गंदे, बदबूदार और घिनौने दाग पड़े हैं कि समाज में उसके प्रति नजरिया ही बिलकुल उलट गया।

नतीजा यह है कि आज इसी सेवा के नेतागणों के अपने सम्मान के लिए खुलेआम यह चीत्कार-आर्तनाद और गिड़गिड़ाहट करनी पड़ रही है कि उन्हें बाबू न पुकारा जाए। तर्क यह दिया जा रहा है कि बाबू एक गाली है, और चूंकि वे श्रेष्ठ़तम सेवा के सदस्य हैं, इसलिए इस गाली का उनके लिए इस्तेमाल करना बहुत अपमानजनक, घटियापन और उनकी गरिमा को गहरी चोट देने वाला है। इन नेताओं का कहना है कि उन्हें बाबू कहलाना किसी गाली से कम नहीं लगता। हां, लोग अगर उन्हें  सिविल सर्वेंट कहना चाहें तो कह दें। उनके हिसाब से सिविल सर्वेंट पुकारा जाना ज्यांदा सम्मानजनक है। खैर,

एक दौर था जब आईएएस का मतलब हुआ करता था देश-समाज के प्रति निष्ठा, आम आदमी तक उसकी पहुंच, शालीनता, अध्ययन, ईमानदारी, ज्ञान, क्रियान्वयन, योजनाओं को लागू करना और कानून को हर कीमत पर लागू कराना आदि-इत्यादि। और इससे बड़ी बात यह हुआ करती हुआ करती थी कि यह सेवा के अफसर और उसका एकाकृत अपने पूरी सांगठनिक-क्षमता के बल पर अपनी छवि पर एक भी दाग पड़ने का मौका ही नहीं देता है।

ऐसा नहीं है कि आईएएस सेवा के अफसरों में ईमानदारों का अकाल है। हैं, कई अफसर मौजूद हैं, जिन पर एक धेला भर का आरोप नहीं लगा। कई तो ऐसे हैं, जो जन-सेवा में अपना जीवन ही न्योछावर कर चुके हैं। इस पर तनिक भी ध्यान नहीं देते कि सरकार ने उन्हें किस तरह  की कुर्सी थमाई है। उन्हें सूखी कुर्सी पर बैठ कर भी उसी तन्मयता, निष्ठा, शालीनता और श्रेष्ठतम प्रदर्शन करने की जिजीविषा होती है, जैसी कभी कथित मलाईदार कुर्सी पर बैठ कर। वे किसी भी पद या कुर्सी पर बैठ कर अपने दायित्वों का निर्वहन करते हैं।

लेकिन समस्या फिर वही है। आज दो तीन दशक पहले तक इस संवर्ग में जब बेईमान अफसर की पहचान और याद आम आदमी तक में मुंहजुबानी रहती थी। लेकिन तीन दशक के बाद इस संवर्ग की गंगा में पानी के बजाय केवल कींचड़ ही बहने लगा है। पहले बेईमान अफसर का मतलब अखण्ड प्रताप सिंह, नीरा यादव जैसे लोग थे, जिन्हें समाज ही नहीं, बल्कि खुद आईएएस सेवाओं में किसी ब्लैकशीप यानी कुल-कलंक कहा-पुकारा और पहचाना जाता था। लेकिन आज देखिये, आज आईएएस अफसरों में ईमानदार लोगों का नाम पूछ लीजिए तो खुद आईएएस अफसरों के चेहरे पर हवाइयां उडऩे लगेंगी। वे एक प्रवाह में गिनती में पचीस आईएएस भी नहीं गिन सकेंगे कि कौन अफसर वाकई बेदाग है, ईमानदार है।

खैर, तमाम आलोचना के बावजूद हमें इस दुनिया के इस विशालतम और देश की क्रीम-सेवा पर विश्वास करना ही पड़ेगा। यह हमारी मजबूरी भी है और हमारा दायित्व भी। हम सब के सब समुदाय को कैसे गाली दे सकते हैं। हमें स्वारगत करना पड़ेगा कि आईएएस एसोसियेशन के नेता संजय भुसरेड्डी और अमृत अभिजात जैसे लोगों की भावनाओं का। इन लोगों ने कम से यह कम यह जिगर दिखाया  है और कुबूल किया है कि उनके इस संवर्ग में चंद लोग ही सही, लेकिन पूरी ईमानदारी के साथ अपने दायित्व का निर्वाह नहीं कर रहे हैं। हमें संजय भुसरेड्डी और अमृत अभिजात जैसे लोगों के इस दावे पर यह भी मानना ही पड़ेगा कि चूंकि उनकी सेवा में चंद लोग बेईमान है, इसलिए पूरी सेवा को बेईमान नहीं करार दिया जा सकता है। हम सहमत हैं। पूरी तरह। लेकिन क्या अब संजय भुसरेड्डी और अमृत अभिजात जैसे आला अफसरों की जिम्मेदारी नहीं है कि कम से कम वे अपने संवर्ग में घुन की तरह घुसे बेईमान अफसरों के नामों का खुलासा करें।

करना तो करना ही होगा भुसरेड्डी जी और अभिजात जी, वरना आप की छवि भी गेहूं के साथ पिसने से कोई नहीं रोक सकेगा।

(यूपी की ब्यूरोक्रेसी से जुड़ी खबरों को अगर देखना-पढ़ना चाहें तो कृपया इसे क्लिक करें)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *