आशियाना काण्ड ने साबित किया कि यूपी में पाप हैं बेटियां

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

: क्या पार्टी, क्या नेता, क्या वकील, और क्या अफसर, सब बिक गये : “ग्रेट-कॉंसिपिरेसी”, लखनऊ की आबोहवा अब बेटियों के लायक नहीं : बेटियों पर हादसे छिपे चुनाव घोषणापत्र जैसा लगते हैं सपा-बसपा में :

कुमार सौवीर

लखनऊ : अगर आपके इलाके में किसी प्रभावशाली, बाहुबली और जुगाड़ी नेता हो, अगर उस बाहुबली नेता के पास वकीलों की भीड़ जुटाने का माद्दा हो, अगर उस नेता का भतीजा बलात्कारी हो, अगर उस नेता के पास नामचीन बड़े वकीलों की सेवाएं ले पाने की हैसियत हो, और अगर उस नेता के पास सरकारी मशीनरी को खरीद पाने का माद्दा हो और सबसे बड़ी बात यह कि आप यूपी में रहते हों, और अगर खुदा-न-ख्वास्ता आप अपने परिवार में बेटी का सपना पाले बैठे हैं, तो बेहतर है कि आप अपनी बच्ची को जन्म देने का ख्याल ही मार डालियेगा। कम से कम यूपी और उसमें भी लखनऊ की अबोहवा अब मासूम बच्चियों के लायक नहीं रहीं। हकीकत तो यही है कि बेटियां बचाओ आन्‍दोलन उत्तर प्रदेश में अब माखौल बन चुका है। 

आशियाना कालोनी में एक 13 साल की गरीब बच्ची के साथ 11 साल पहले जो जघन्य सामूहिक बलात्‍कार हुआ, उसने पूरे लखनऊ, यूपी ही नहीं, बल्कि पूरे देश को हिला दिया है। यह इसलिए नहीं कि यह केवल बलात्‍कार का मामला है, बल्कि इसलिए क्योंकि इस काण्ड को लेकर चले मुकदमे ने समाज के हर तबके को पूरी तरह नाकारा और बिकाऊ साबित कर दिया है। हो सकता है कि किसी बच्ची के बाप के तौर पर आपको ऐसे हादसे अंदर तक हिला डालें, लेकिन इस अमानवीय हादसे और उसके बाद जो कुछ हुआ, वह एक “ग्रेट-कॉंसिपिरेसी” से कम नहीं है, जिसमें नेता, वकील, अफसर से लेकर सारी छोटी-मोटी कडि़यां पूरी तरह बेनकाब हुईं।

इस पूरे हादसे में इस पीडि़त बच्ची की जितनी भी छीछालेदर हुई, जेवेनाइल एक्ट को जितना फाड़ा गया, किशोर बोर्ड के अवधारणा के साथ जितना दुराचार किया गया, आलीशान ओहदों पर बैठे वकीलों को कितना नंगा किया गया, न्‍याय और कानून पर कितने सवाल उठाये गये और सबसे बडी बात तो यह कि राजनीति से जुड़े अपराधियों का जितना हस्तक्षेप हुआ, वे बेमिसाल है।

बहरहाल, अब जरा देखिये कि यूपी में बेटियों की सुरक्षा और उन्हें खुशहाल माहौल मुहैया कराने के लिए दावे तो इस पूरे 11 साल तक खूब हुए, लेकिन अमल में जो भी दांव-पेंच लगाये-फंसाये गये, वे ऐसे किसी भी पवित्र आंदोलन की अन्‍त्‍येष्टि कर पाने के लिए पर्याप्‍त थे। आप जरा इस पूरे काण्ड को सिलसिलेदार देखने की जहमत उठाइये तो आप की आंखें और आत्मा तक फट जाएगी। चाहे वह बहुजन समाज पार्टी की मुख्यमंत्री मायावती का शासन काल रहा हो, या फिर समाजवादी पार्टी का पहले मुलायम सिंह यादव और अब अखिलेश यादव समेत दो बार हुआ शासनकाल, लगेगा ही नहीं कि यूपी की राजनीति और बसपा व सपा की सरकारें बच्चियों के प्रति तनिक भी संवेदनशील हैं। और शर्मनाक बात तो यह है कि समाजवादी पार्टी की सरकारों में तो महिलाओं की अस्मिता तो बुरी तरह नोंची-खसोटी गयी है। किसी राजनीतिक छिपे चुनाव घोषणा की अनुपालन जैसे अनुष्ठान की तरह।

दो मई-05 आशियाना कालोनी में 13 साल की इस बच्ची को करीब छह लोगों ने सरेशाम अगवा किया और उसके साथ रात भर सामूहिक बलात्कार होता रहा। इसके बाद यह बलात्कारी भाग गये। पुलिस ने इस हादसे की खबर मिलने पर उन सभी को दबोच लिया। पकड़े गये बलात्कारियों में से एक युवक को उसके राजनीतिक परिवार के एक बाहुबली के दबाव में उसे जेल भेजने के बजाय पुलिस की साजिश में उसे किशोर-गृह में भर्ती करा दिया। उस समय समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव का मुख्यमंत्री के तौर पर शासन था। नतीजा यह हुआ कि इस हादसे के 15 दिन बाद ही किशोर न्याय बोर्ड ने इस हादसे में पकड़े गये उस युवक को किशोर न्याय बोर्ड ने उसे नाबालिग करार दे दिया। यानी मामला इस बलात्कारी के पक्ष में छूट गया। लेकिन इसके सात साल बाद हाईकोर्ट ने 25 अप्रैल-12 को आदेश दिया कि इस बलात्कारी युवक की उम्र की असली उम्र साबित करायी जाए। यह करने में इस बोर्ड ने दो साल ले लिये। हालांकि इस फैसले में बोर्ड ने फैसला कर दिया कि बलात्कार के वक्त वह दुराचारी युवक पूरी तरह बालिग था।

क्या अब भी कुछ कहने-बोलने के लिए बचा है दोस्तों?

खबर सहयोग और चित्र साभार: प्रभात त्रिपाठी, लखनऊ

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