“बडे बाबू” लोग बुक्का फाड़ कर चिल्लाये, बोले: प्लीज हमें बाबू मत पुकारो

मेरा कोना

: ऑल इण्डिया आईएएस एसोसियेशन ने दर्ज की है अपनी आपत्ति : देश-सेवा में जुटे अफसरों की सर्वोच्च सेवा को बाबू कहना गाली है : सिविल सर्वेंट या फिर और कोई दूसरा नाम दे दो, मगर बाबू नहीं : चंद लोग अपना दायित्व पूरा नहीं कर रहे, फिर समूह को गाली क्यों : लो देख लो, बड़े बाबुओं की करतूतें- आठ :

कुमार सौवीर

लखनऊ : भारत के हर राज्यर में तैनात किसी भी सेवा के अधिकारी अथवा कर्मचारी से जरा बात करके देखिये। पूछिये कि आईएएस अफसरों के बारे में उसकी क्या राय है। छूटते ही जवाब मिलेगा:- “सफेद हाथी”।


यानी एक ऐसा हाथी, जो कामधाम तो नहीं धेला भर नहीं करता, लेकिन खाता-पीता बहुत है। अच्छे-खासे कामधाम को निपटाने के बजाय उसमें अड़ंगा लगाने में महारत है आईएएस के अफसरों में। और उनमें शीर्ष पर हैं उत्तर प्रदेश के आईएएस अफसर। अहंकार चेहरे से टपकता है, तमीज और सीधी बात करना उनकी अदा बन चुकी है, काम लटकाना शगल है, बनता काम बिगाड़ देना उनकी सिफत है, खर्च बेहिसाब और बेशुमार होता है। मैराथन विजेता हैं बेईमानी के क्षेत्र में। आरसी की क्या जरूरत है, आप प्रतिशत निकाल लीजिएगा न, आप पायेंगे कि जेल जाने की प्रतियोगिता शायद उन्हीं सेवा के लिए बनी है।

 

और अब यही अफसर आर्तनाद करते दिख रहे हैं कि:- “हमें बाबू न पुकारो।”

मेरे मित्र हैं गोलेश स्वामी। लखनऊ हिन्दुस्तान में रिपोर्टर हैं। आज उन्होंने एक खबर लिखी है। बोले हैं कि आल इंडिया आईएएस एसोसियेशन के सचिव संजय भुसरेड्डी और यूपी आईएएस एसोसिेशन के पूर्व सचिव अमृत अभिजात अपने संवर्ग के अफसरों को बाबू के तौर पर पुकारे जाने पर आहत हैं। बाबू पुकारे जाने से विह्वल इन अफसरों को यह बाबू शब्द  किसी गाली और अपमानजक लगता है। उनके हिसाब से देश की सेवा में लगे इन अफसरों की सर्वोच्च सेवा के सदस्यों को यह गाली नहीं दी जानी चाहिए। यह अधिकारी बोले हैं कि बाबू शब्द ठीक नहीं है, क्यों कि यह बेहद अपमानजनक शब्द है।

इन एसोसियेशनों के इन पदाधिकारियों का कहना है कि बाबू के बजाय तो यह हो कि हमें सिविल सर्वेंट के तौर पर पुकार लें। उनका कहना है कि इस मसले पर विरोध जताने के लिए पिछली सामान्य बैठक में बातचीत हुई थी, और अब अगली बार भी इस पर बात होगी जरूर। फिलहाल तो यह अफसर फेसबुक पर अपना यह विरोध व्यक्त करने पर आमादा हैं। क्यों कि उन्हें लगता है कि अब पानी नाक से ऊपर होता जा रहा है। आखिर कब तक हमारे सदस्य “बाबू” जैसे अपमानजक और गाली-सूचक शब्द से नवाजते रहेंगे।

हैरत की बात है कि यही वह सेवा है जिस पर इस वक्त सर्वाधिक अहंकार, गुरूर, बेईमानी, भ्रष्टाहचार, अनैतिकता, अनाचार, अराजकता, सरकारी कामधाम में अड़ंगा लगाना, आम आदमी तक को त्राण न देने के लिए साजिशें रचना, दस्तावेजों में हेर-फेर करना, बेईमानी करना और बेईमानी के लिए दूसरे संवर्गों को मजबूर करना इनकी रग-रग में बस चुका है। तमीज से बातचीत कर पाना तक वे भूल गये हैं।

एक वरिष्ठ अधीनस्थ सेवा संघ के एक बड़े पूर्व अध्‍यक्ष का कहना है कि आईएएस ने बाकी सारी सेवाओं को बाकायदा किसी खुजैले कुत्ते से भी बदतर बना डाला है। वे खुद तो धेला भर काम नहीं करते हैं, लेकिन बाकी संवर्ग में अराजकता, बेईमानी, अडंगाबाजी फैलाने में उनका योगदान अविस्मरणीय है। उप्र पीसीएस अफसर्स ऐसासियेशन के पूर्व अध्यक्ष और भारतीय पीसीएस अफिसर्स एसोसियेशन रहे हरदेव सिंह ने अफसरशाही की बेईमानी और उनकी लफंगई पर बाकायदा एक ग्रन्थ तक रच दिया था। धर्म सिंह रावत ने तो अपने दौर में आईएएस अफसरों की नंगई का खुला खुलासा किया था।

लेकिन सच यह भी है कि सारे आईएएस अफसर ऐसे नहीं हैं। एक दौर था जब हर धर्म-दायित्व की आत्मा आईएएस अफसर के चेहरे पर दमकती थी, अब ऐसे अफसर खोजे नहीं मिलते। लुप्तप्राय हो चुके हैं। दुर्लभ प्रजाति।

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लो देख लो, बड़े बाबुओं की करतूतें

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