सुब्रत राय: मैं मैनेजमेंट की ओर लपका, पीछे आक्रोशित मजदूरों का रेला

मेरा कोना

: पानी के पहले घूंट पर श्याम को खून की उल्टी हुई तो मेरा संयम टूटा : जयब्रत राय और श्रीवास्तव समेत दर्जनों अफसर थरथर कांप रहे थे : शटर इतनी ताकत से खोला, मानो हनुमान जी अपना सीना चीर रहे हों : नंगे अवधूत की डायरी पर दर्ज हैं सुनहरे दर्ज चार बरस- दस :

कुमार सौवीर

लखनऊ : इसी बीच श्याम को प्यास लगी। पहले से ही वह बहुत कृषकाय हो चुका था। इमली का चिंया देखा है न आपने, बिलकुल उसी मानिन्द। मैं बाकी मजदूरों से बातचीत कर रहा था। इसलिए तत्काल उसके पास नहीं पहुंच सका। लेकिन उसके आसपास बैठै साथियों ने उसे ग्लास में पानी दिया गया। उसने अभी एक घूंट ही पिया होगा, कि अचानक उसे खांसी आ गयी और उसने खून की उल्टी कर दी। सुब्रत राय: मैं मैनेजमेंट की ओर लपका, पीछे आक्रोशित मजदूरों का रेला सुब्रत राय: मैं मैनेजमेंट की ओर लपका, पीछे आक्रोशित मजदूरों का रेला

बस, फिर क्या था। हड़कंप मच गया, कि श्याम को खून की उल्टीं हुई है। मैं श्याम के पास दौड़ कर पहुंचा तो पाया कि उसके कुर्ता पर खासा खून पसरा है।

मेरी आंखों में खून उतर गया। मैं गालियां देते हुए और चिग्घाड़ता हुआ सहारा भवन के मुख्यालय की ओर दौड़ा, मेरे साथ मजदूर भी बढ़े। कुछ तो स्तब्ध थे, तो मेरे साथ गुस्से में थे, जबकि कुछ लोग मुझे रोकने की कोशिश कर रहे थे। लेकिन मेरे साथ ही साथ मजदूरों की एक विशाल लहर उस भवन की ओर बढ़ी जहां सहारा इंडिया के लोग वहां बैठक कर रहे थे। अब तक पूरा मजदूर समुदाय सहारा इंडिया और सुब्रत राय के खिलाफ गगनचुम्बी नारे लगा कर पूरा इलाका गुंजायमान कर रहा था। एक नारा उठता तो एक ओर लालकुआं से जवाब आता था और फिर माडल हाउसेस से लेकर हुसैनगंज चौराहा और दूसरी ओर बुद्ध मंदिर के आसपास तक फैले मजदूर-समुद्र से जवाब मिलता था।

मामला संगीन हो गया। मैं तीर की तरह बढ़ रहा था, जबकि इतना हौलानाक हंगामा का शोर सुन कर सहारा के बड़े लोग दौड़ कर बाहर निकलने लगे। गेट पर पीएसी का एक गार्ड था, उसने मुझे रोकने की कोशिश की, लेकिन मेरे पीछे दौड़ रहे मजदूरों के सैलाब को कैसे रोक सकता वह गार्ड। पीएसी के बाकी लोग जांघिया में अपने टेंट के बाहर निकल कर स्तब्ध  रह गये और मैं बंदूक की गोली की तरह उस आफिस की ओर बढ़ा, जहां जयब्रत राय, ओपी श्रीवास्त्व और अखिलेश त्रिपाठी करीब चार दर्जन लोग मौजूद थे।

मुझे और मेरे पीछे मजदूरों का रेला देख कर आफिस में बैठे अफसरों ने दरवाजा बंद करने की कोशिश की, लेकिन तब तक मैं पहुंच गया था। इसके कि पहले कि दरवाजा बंद हो पाता, मेरे एक ही धक्के से खुल गया। उसे रोकने में जुटे लोगों में कुछ तो धड़ाम से गिर पड़े। एक-दूजे पर अरररर-अरररर। इसके बाद एक गलियारा था। कोई दस  फीट का। उसके बाद बारामदा, और फिर एक शटरनुमा ग्रिल-चैनल। गलियारा से निकल कर मैं बारामदा में पहुंचा तो उस चैनल को बंद करने की कोशिश करने लगे सहारा के लोग कि हम लोग अंदर नहीं घुस पायें, जहां जयब्रत राय, ओपी और अखिलेश त्रिपाठी वगैरह बड़े अफसर मौजूद थे।

लेकिन तूफान की तरह मैं ग्रिल के पास पहुंचा। भीतर से कोई अब्दुरल दबीर नाम का कोई व्यंक्ति चैनल को बंद करने की कोशिश कर रहा था, कि मैं पहुंच गया। चैनल के दोनों शटर को खोलने की कोशिश की मैंने। दोनों हाथों से। जैसे हनुमान जी अपना सीना चीर कर दिखा रहे हों। गजब ताकत आ गयी थी उस वक्त मुझ में। सुब्रत राय को गाली देने वाली एक ही जयजयकारा टाइप हुंकार से चैनल खुल गया। पूरा का पूरा। अब्दुल दबीर की आर्तनाद करती एक जोरदार चीख निकली। चैनल में उसकी उंगलियां कुचल चुकी थीं। ( क्रमश:)

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