होहो कर चिल्‍लाये नंगे पुलिसवाले, “देखो नंगा पत्रकार”

बिटिया खबर

: विधायक की लाज बचाने को पत्रकारिता की हत्‍या की पुलिसवालों ने : गाजीपुर में सिर्फ उगाही, भाड़ में जाए कार्रवाई : पुलिस को वर्दी तो दूर, कच्छों की भी क्या जरूरत : पुलिसवालों की भाषा, बोली, तमीज, अंदाज़, व्यवहार और मनोवृत्ति के संदर्भ में आम आदमी की बेबसी : तनख्वाह पुलिस को, आम आदमी को अपमान :

कुमार सौवीर

लखनऊ : गजब रवायत है हिन्‍दुस्‍तान में। आपस में जब पुलिसवाले बातचीत करते हैं तो अदब से बोलते हैं, जय हिन्‍द सर। लेकिन वही पुलिसवाले जब किसी आदमी से बात करते हैं तो उनके मुखारबिंद से केवल मां, बहन और बेटी की शील को भंग करती गालियां ही होती हैं। ऐसी हालत में तनिक भी नहीं सोचते कि जो गालियां वे आम आदमी के घर की महिलाओं को लेकर सरेआम कर रहे हैं, वही व्‍यवहार जब कोई उनके साथ करना शुरू कर दे, तो उन्‍हें कैसा लगेगा।
यूपी से सीमांत एक पुलिस थाने पर पुलिसवालों ने करीब पौन दर्जन पत्रकारों को पकड़ा और उन्‍हें गालियों से नवाजते हुए जम कर ठोंक-पीट लिया। इतना ही नहीं, इन पुलिसवालों ने उन पत्रकारों को सामूहिक तौर पर नंगा भी कर दिया। सिर्फ कच्‍छा छोड़ दिया। पुलिसवालों ने इस नंगे किये गये पत्रकारों की फोटो भी खूब खिंचवा कर वायरल भी किया। लेकिन जब हंगामा मचा तो पुलिसवालों ने अपनी चमड़ी बचाने के लिए एक निहायत बचकाना और बेहूदा बहाना यह बनाया कि हवालात में आत्‍महत्‍या न करने की आशंका से बचने के लिए ही इन पत्रकारों को न्‍यूनतम कपड़ों में रखा गया था।
निहायत शर्मनाक तर्क है इस पुलिस का। दरअसल, पुलिसवालों को अपने स्‍थानीय विधायक की लाज बचानी थी, जिनकी नंगी-करतूतों का खुलासा यह पत्रकार कर रहे थे। विधायक जी ने पुलिसवालों को ललुहाया, तो पुलिसवाले उन्‍हें सरेआम सड़क पर या उनके घरों में घुस कर पकड़ लाये और थाने में उन्‍हें मारपीट कर नंगा कर दिया। विधायक खुश, पुलिसवाले मगन हो गये। किसी भेंड़-बकरी की तरह नंगे इस पत्रकारों को पूरे देश में नंगा कर दिया गया, और बस पत्रकारिता आत्‍महत्‍या की नौबत तक पहुंच गयी।
यही तो असली नंगई है पुलिसवालों की। विधायक की लाज बचाने के लिए पुलिसवालों ने पत्रकारों को नंगा तो कर दिया लेकिन उस समस्या का समाधान कत्‍तई नहीं हो पाया, जिसके चलते अधिकांश पुलिसवाले सिर्फ थाने में ही नहीं, बल्कि सड़क, गली, मोहल्ले और चौराहों पर भी नंगी-भाषा से लैस होकर अपनी नंगई का नंग-धड़ंग प्रदर्शन करते रहते हैं।
आप अनुपात देख लीजिए ! आम आदमी और पुलिसवालों की भाषा, बोली, तमीज, अंदाज़, व्यवहार और मनोवृत्ति के संदर्भ में। तनख्वाह सिर्फ पुलिसवालों को मिलती है, आम आदमी तो खून-पसीने से पैसा उगाह कर पुलिसवालों के चरणों पर उसे मजबूरन अर्पित कर देता है। आम आदमी थाने पर तब जाता है, जब उसके दुर्दिन आ जाते हैं, और अपनी उसी विक्षिप्तता के चलते वह अपनी जेब ही नहीं, अक्सर तो खेत, घर-गहना व बर्तन-भांडा तक बेच देता है।
और रही बात आत्महत्या की आशंका के चलते थाने में लोगों को सिर्फ कच्छा पर रखने की, तो फिर पुलिसवालों को वर्दी तो दूर, कच्छों की भी क्या जरूरत? बड़े पुलिसवालों का व्यवहार अपनी छोटे कर्मचारियों के साथ क्या कम अपमानजनक होता है? जब कोई छोटा पुलिसवाला या सिपाही अपने अधिकारियों की सरेआम गालियां सुनता-खाता रहता है, ऐसी हालत में वह आम आदमी के साथ कैसे मानवीय व्‍यवहार कर सकता है। गालियां और मारपीट तो होती ही है, मामला रफादफा करने के लिए मोटी रकम भी उगाह लेते हैं पुलिसवाले।

ताजा नजीर है गाजीपुर के नोनहरा पुलिस थाने का। किस्‍सा यह कि देवरिया में एक पुरुष सिपाही से अपने प्रेम-संबंधों के चलते चर्चित हुई। वह दोनों ही अलग-अलग मामलों में पहले ही प्रेम-संबंधों से प्रगाढ़ थे। मगर पुरुष सिपाही की करतूतों के चलते सिपाही को बर्खास्‍त कर दिया गया, तो वह महिला इलाहाबाद तबादले पर भेजी गयी। लेकिन उसने गाजीपुर के एक अन्‍य युवक के खिलाफ नोनहरा थाने पर अर्जी लगायी। बताते हैं कि इस मामले पर कार्रवाई करने के बजाय पुलिस ने उस युवती को 25 हजार रुपयों का जुर्माना दिलाया और दस हजार रुपया थाना पुलिस ने आपस में बांट लिया। युवक को थाने पर पीटा गया और और उसकी मदद करने गयी युवती को महिला सिपाही ने सड़क पर पटक कर पीटा और घायल किया। लेकिन मामला केवल लेनदेन पर ही निपटाया गया।
और फिर रही बात आत्‍महत्‍या की, तो अपने गिरहबान में झांक कर पूछिये कि हवालात में हुई किसी आत्महत्या का कोई खुलासा हो पाया है अब तक? चाहे वह कासगंज का मामला हो, या फिर लखनऊ के गोमतीनगर विस्तार थाना की हवालात का। कासगंज के थाने की हवालात में दो फीट ऊंचे प्लास्टिक की टोंटी से लटक कर एक 65 को के युवक बन्दी की आत्महत्या का किस्सा पुलिसवालों ने सुनाया था। जबकि गोमती नगर विस्तार थाने की हवालात में एक युवक को बेल्ट से गले में फंसा कर आत्महत्या का बहाना पुलिस ने गढ़ा था। जबकि खबरें बताती हैं कि यह हत्या एक डीआईजी ने अपने घर और फिर थाना की हवालात में उस युवक की वहशियाना पिटाई से हुई थी। हंगामा हुआ तो जांच हुई। जानकार बताते हैं कि उस डीआईजी की करतूत और उसके कटे अंगूठे के निशान उस मृतक के गले पर पाया गया था। लेकिन पुलिस अब तक उस मामले पर डीआईजी पर हाथ रखने का साहस नहीं दिखा सकी है। जानकारों का कहना है कि उस युवक मजदूर के साथ ऐसा शैतानी हरकत इसलिए की गयी थी, क्यों कि वह प्रेम-प्रसंग का मामला है। डीआईजी पूरे दौरान खुद क्रूरता करता, लेकिन पुलिस थाना के सारे लोग खामोश रहे।
सुलतानपुर में 3 मई-21 को कुड़वार थाने के लॉकअप में बंदी राजेश कोरी की मौत के मामले में मानावाधिकार आयोग ने संज्ञान लेकर जिला प्रशासन से रिपोर्ट मांगा, जिसमें उन्होंने लॉकअप में बंदी की मौत का कारण शर्ट से फांसी लगाना बताया है़। 15 नवम्‍बर-21 को कल्‍याणपुर थाने की हवालात में एक युवक को पुलिस ने पीट कर मार दिया, लेकिन बताया कि उसने आत्‍महत्‍या की थी। इस युवक को चोरी के मामले में पुलिस ने पकड़ा था, लेकिन लाश पर गहरी चोटों के निशान पाये गये। यूपी के हमीरपुर में एक आरोपी की मौदहा थाना की हवालात में मौत हो गई. पुलिस का कहना है कि देर रात आरोपी ने अपनी शर्ट से हवालात के गेट में फांसी लगा ली. लेकिन घटना के समय पर अलग-अलग बयान और दो-दो खराब सीसीटीवी से यूपी पुलिस पर ही सवाल उठ रहे हैं।
इतना ही नहीं, कुछ बरस पहले तो शाहजहांपुर में एक पत्रकार जागेंद्र सिंह को एक मंत्री के इशारे पर कोतवाली के प्रभारी समेत दर्जन भर पुलिसवालों ने पेट्रोल डाल कर जिन्‍दा फूंक दिया था। लखनऊ के कृष्‍णानगर से भागे प्रेमी-प्रेमिका को पकड़ने बरेली गयी पुलिस ने युगल को इतना प्रताडि़त किया था, कि हरदोई में रास्‍ते में पुलिस कस्‍टडी में ही दोनों ने सल्‍फास खाकर आत्‍महत्‍या कर ली थी। राजधानी के रैदास मंदिर रेल क्रासिंग पर विशाल सैनी नामक एक युवक ने ट्रेन से कट कर आत्‍महत्‍या करने के पहले जो सुसाइड-नोट लिखी थी, उसमें विशाल ने अपनी आत्‍महत्‍या का कारण लखनऊ की एडीसीपी प्राची सिंह को जिम्‍मेदार माना था।

और इसके बाद हाथरस का उस कांड का जिक्र करने की कोई जरूरत क्‍या है, जिसमें एक बलात्‍कार पीडि़त युवती की लाश को पुलिसवालों ने पेट्रोल डाल कर फूंक डाला था।

 

 

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