डीएम साहेब ! तुम चोर हो क्‍या ?

बिटिया खबर

: पहले डीएम पर हुआ गेम, तो डीएम ने पत्रकारों में ही अप्‍लाई किया नेशनल-गेम, अब चिल्‍ल-पों : पेपर-लीक का मामला छिपाने को डीएम ने पत्रकारों को फंसाया : जिसने प्रशासन की कलई खोली, उसको जेल में क्‍यों ठूंसा : खामोशी की सड़ांध मारती कथरी में हैं डीएम : मैं पत्रकार हूं, जेल में ठूंसे गये पत्रकारों की आवाज सुन रहा हूं :

कुमार सौवीर

लखनऊ : मंगल पांडे-चित्‍तू पांडे ही नहीं, बाटी-चोखा और अपने नेशनल-गेम के लिए भी बलिया खासा मशहूर है। हालांकि बलिया के इस चरित्र से यहां आने वाले अफसरों को कोई लेनादेना नहीं होता रहा है, लेकिन बागी बलिया में इस समय फिर एक नया हंगामा खड़ा हो गया है। बताते हैं कि यहां के पत्रकारों ने यहां आने वाले काहिल-आलसी, कामचोर, बेईमान और बहुरंगी चरित्रवाले अफसरों की कलई खोलना शुरू किया, तो इन अफसरों ने भी बलिया के पत्रकारों के साथ बलिया का नेशनल-गेम खेल डाला। नतीजा, कई पत्रकारों को जिलाधिकारी ने जेल में ठूंस डाला। अब जाहिर है कि हंगामा तो खड़ा होना ही था, अब पत्रकार अपनी वेदना चिल्‍ला-चिल्‍ला कर व्‍यक्‍त कर रहे हैं। ऐसे पत्रकारों का मकसद यहां के डीएम को ही बलिया के नेशनल-गेम का मूल आधार-चरित्र साबित करना ही है। यह दीगर बात है कि इस गेम-हंगामा से सहमे यहां के डीएम साहब में अभी तक इतना भी साहस नहीं जुट पाया है कि वह सरेआम ऐसे आरोपों पर अपना स्‍पष्‍टीकरण व्‍यक्‍त कर सकें।

बलिया का नेशनल-गेम

बलिया दरअसल एक स्‍थान, जिला और स्थिर भू-क्षेत्र नहीं है, बल्कि एक सांस्‍कृतिक पहचान का आधार स्‍तम्‍भ भी है। जिला के तौर पर उसका घनिष्‍ठ संबंध पड़ोसी राज्‍य बिहार के जिला छपरा से खूब है। बलिया का गजेटियर बताता है कि अक्‍सर ही बलिया और छपरा के बीच रोटी-बेटी ही नहीं, बल्कि गांवों का भी खूब करीबी रिश्‍ता रहा है। कभी बलिया का कुछ हिस्‍सा छपरा छीन लेता है, जबकि कभी छपरा का कुछ हिस्‍सा बलिया के खाते में दर्ज हो जाता है। इस अदला-बदली का आधार होता है दोनों राज्‍यों को बांटती नदी का कटाव। बताते हैं कि बिहार का लौंडा-नाच के ठुमके बलिया में दिखे तो बलिया में ऐसे नेशनल-गेम की दुन्‍दुभि बजने लगी, कि बड़े-बड़े नेता, अफसर और जानेमाने लोग भी इस नेशनल-गेम के प्रति आकर्षित हो गये।
लेकिन अकर्मक-क्रिया पर आधारित ऐसे रस-भीने लोगों में सकर्मक क्रिया का भाव उमड़ने लगा। और देखते ही देखते बलिया में नेशनल-गेम अवतरित हो कर विख्‍यात हो गया। कहने की जरूरत नहीं कि ऐसे ही नेशनल-गेम की दुर्धर्ष गतिविधियों और उसकी उठापटकी से प्रेरित होकर यहां के कुछ पत्रकारों ने बलिया के जिला अधिकारी इंद्र विक्रम सिंह के साथ बलिया का यह नेशनल-गेम खेल दिया। वजह बना बोर्ड में प्रश्‍नपत्र, जिसको जिला प्रशासन की करतूतों के चलते परीक्षाओं के दो-एक दिन पहले ही हर परीक्षार्थी तक पहुंचाने का मौका दे दिया। डीएम के साथ ऐसा गेम खेलने के लिए लालायित पत्रकारों ने प्रशासनिक करतूतों के चलते लीक हो चुके ऐसे प्रश्‍नपत्रों को न केवल वायरल कर दिया, बल्कि एक अमर उजाला ने तो उसको बाकायदा दो दिन पहले ही प्रकाशित ही कर दिया।
अब इस गेम के चलते जबर्दस्‍त और असह्य पीड़ा से बिलबिला पड़े बलिया के डीएम। लगे डीएम साहब चिल्‍लाने। दरअसल, इस पेपर के लीक होने की खबर लखनऊ तक पहुंच चुकी थी और डीएम का काम लगाने में तत्‍पर लोगों ने इस पेपर-लीक मुख्‍यमंत्री तक पहुंचाने की तत्‍परता दिखानी शुरू कर दी। जाहिर है कि डीएम साहब बुरी तरह परपराने लगे। उन्‍होंने अपने खासमखास लोगों से मंत्रणा की और तय किया कि यह नेशनल-गेम खेलने वाले पत्रकार के साथ ही पलट कर उसे इस बलियाटिक नेशनल-गेम में पटक लिया जाए।
अमर उजाला के रिपोर्टर थे अजीत ओझा। सूत्र बताते हैं कि डीएम ने अजीत ओझा के साथ यह नेशनल-गेम खेलने के लिए फोन किया और पूछा कि लीक हुआ पेपर तुम्‍हारे पास है। अजीत मारे खुशी में बोले, हां हां है। डीएम ने चाहा कि वे वह पेपर की फोटो वाट्सऐप पर भेज दें। उत्‍साहित अजीत ने भेज दिया। और फिर चंद मिनटों बाद ही डीएम ने पुलिस भेज कर पेपर लीक करने के आरोप में अजीत को पकड़वा कर हवालात में बंद कर दिया। इस पर बवाल शुरू हुआ तो डीएम ने इसके बाद दिग्विजय सिंह और मनोज गुप्‍ता को भी जेल भेज दिया।
लेकिन अब तक प्रशासन नहीं तय कर पाया है कि वह इन पत्रकारों को किस आधार पर जेल भेजा गया। हालांकि जानकार बताते हैं कि प्रशासन और पुलिसवाले इस जुगाड़ में हैं कि इन पत्रकारों को किसी न किसी मामले में रंगेहाथ साबित कर पाये, लेकिन अब तक ऐसा हो नहीं पाया है। यह भी पता नहीं चल पाया है प्रशासन को कि आखिर इस पत्रकारों को इस पेपर-लीक का मकसद क्‍या था और उसमें उसका आपराधिक संलिप्‍तता क्‍या है।
सवाल यह है कि जो करतूत डीएम और उसके प्रशासन ने की है, उसके लिए वह पत्रकार कैसे जिम्‍मेदार बनाये गये जिन्‍होंने प्रशासन में धंसे काहिल, आलसी, कामचोर, बेईमान और बहुरंगी चरित्रवाले अफसरों की कलई वाली नंगई को जग-जाहिर किया था। लेकिन इतना तो जरूर हो गया है कि जिलाधिकारी के इस कदम से पेपर-लीक का मामला पूरी तरह ठण्‍डा ही हो गया है।
उधर आज बलिया की कचहरी में जब अजीत ओझा, दिग्विजय सिंह और मनोज गुप्‍ता को अदालत में पेश किया गया तो वहां आने-जाने वाले रास्‍ते में भी यह पत्रकार लगातार यही चिल्‍लाते रहे कि, बलिया का डीएम चोर है, बेईमान है।

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