डीएम सटका, या रिपोर्टर ने चढाया गांजा-स्मैक का दम!

मेरा कोना

: चीतलों के शिकार की खबर निराधार, मगर जांच कमेटी बना डाली : अब डीएम और वरिष्‍ठ संवाददाता तय करेंगे कि असल बेवकूफ कौन : फर्जी खबरें गढ़ने में माहिर होते जा रहे हैं हिन्दुस्तान के रिपोर्टर : अफसरों को तेल लगाते हैं वरिष्ठ संवाददाता, फर्जी खबरों के जनक : गांववाले खुद ही बहुत संवेदनशील, हमेशा निर्द्वन्द्व घूमते रहे चीतल :

कुमार सौवीर

लखनऊ : अब हकीकत तो यह है कि घनश्याम दास बिड़ला ने अपने सपनों से सींच कर अपनी अधिकांश कमाई लुटाने वाला दैनिक हिन्दुयस्तान अखबार के ताजा वंशजों ने तय कर लिया है कि अब चाहे कुछ भी हो, इस अखबार की ऐसी की तैसी करके ही छोड़ेंगे। ताजा मामला है लखनऊ के सटे इलाकों में चीतलों पर आधारित खबर, जिसे इस अखबार ने उसे शिकार का रंग दे दिया है। इतना ही नहीं, इस तथाकथित मामले को उछालने के लिए इस अखबार ने इस खबर में जो तर्क प्लॉट किया है, उसे पढ़कर कोई भी सजग पाठक ठठाकर हंस पड़ सकता है।

कल 19 अप्रैल-16 के प्रथम पृष्ठ के सबसे नीचे जो खबर छापी गयी है, उसमें न तर्क है और न ही दिमाग का तनिक भी इस्तेमाल। इस खबर को पढ़कर या तो आपके लखनऊ के डीएम के बारे मूर्खनुमा छवि बनेगा, या फिर साफ लगेगा कि इस रिपोर्टर ने स्मैक-गांजा की पिनक में उसे लिख मारा है। खबर लिखी है वरिष्ठ संवाददाता की, लेकिन हैरत की बात है कि इस खबर को चेक करने की कोई भी जहमत इस अखबार के संपादक या उसके जिम्मेदार पत्रकारों ने उठायी। यानी बड़े जिम्मेदार पत्रकारों ने खबर को सनसनीखेज बनाने सारे घोड़े खोल दिये।

खबर का अंदाज ही मूर्खतापूर्ण है। लिखा गया है कि डीएम राजशेखर ने इस मामले की जांच के लिए एक कमेटी बना दी है। खबर के मुताबिक जिलाधिकारी राजशेखर ने अब स्थलीय जांच के लिए यह जांच कमेटी बनी है जिसमें ज्वाइंट मैजिस्ट्रेट प्रेम रंजन सिंह को अध्यक्ष बनाया गया है। यानी शुरूआत ही मजाक बन गया। आप किसी भी सरकारी अधिकारी या कर्मचारी से पूछ लीजिए कि ज्वाइंट मैजिस्ट्रेट कौन होता है। दरअसल यह पद एक नये-नवेले आईएएस में चुने गये उस व्यूक्ति को दिया जाता है, जो अभी पूरी तरह आईएएस अफसर नहीं बन पाया है। उसे प्रशिक्षु कहा जाता है। वह केवल काम सीखता है, अधिकार उसे कोई भी नहीं दिये जाते हैं। कभी उसे लेखपाल के पास भेजकर काम सीखना होता है या फिर दारोगा, सिपाही के कामकाज को सीखना पड़ता है। उसे कभी नायब तहसीलदार के नीचे काम करना होता है तो कभी बीडीओ या एसडीएम के तौर पर। ऐसे में उसे किसी जांच कमेटी का अध्यसक्ष बना डालना जैसा निहायत मूर्खता ऐलान करा दिया जाना समझ में बाहर है।

बात यहीं तक होती तो भी गनीमत थी। इस रिपोर्टर ने खबर छापी है कि अवध वन के प्रभागीय वनाधिकारी, लखनऊ विकास प्राधिकरण, मोहनलालगंज के पुलिस उपाधीक्षक और लखनऊ के मुख्य पशु चिकित्सक को इस जांच कमेटी में नामित किया गया है। जाहिर है कि उन्हें  नामित करना का मकसद जांच-कमेटी में सदस्य बनाना ही है। बस, यही तो गजब मूर्खता की बात है। एलडीए का सचिव एक पीसीएस संवर्ग का वरिष्ठतम अधिकारियों में से एक होता है, ठीक यही हालत, प्रभागीय वनाधिकारी और मुख्य पशु चिकित्सक की होती है। और तो और, सीओ स्तर का अधिकारी भी एक पुलिस वरिष्ठ अधिकारी होता है। ऐसी हालत में इन चारों वरिष्ठ अधिकारियों को किस आधार पर उस जांच-कमेटी का सदस्य और एक ज्वाइंट मैजिस्ट्रेट जैसे नवेले अफसर को उसी कमेटी का अध्यक्ष बना डाला गया।

इसका जवाब तो अब लखनऊ के डीएम राजशेखर ही देंगे या फिर इस खबर को लिखने वाले वरिष्‍ठ संवाददाता। कहने की जरूरत नहीं कि इन दोनों ही व्येक्तियों को आपस में ही यह तय करना होगा कि यह मूर्खतापूर्ण खबर का असली जिम्मेरदार कौन है।

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