राजीव ईमानदार आईएएस थे, तलवा चाटने में फंस गये

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

: बेईमानी में नीरा यादव खुद तो डूबीं, राजीव का भी सत्यानाश कर डाला : अब नवोदित अफसरों को देखना चाहिए कि उनके कौन वरिष्ठ कमीने हैं : इतने भी सरल-ईमानदार नहीं हैं आईएएस अफसर, जितने का दावा होता है : लो देख लो, बड़े बाबुओं की करतूतें- दस :

कुमार सौवीर

लखनऊ : नोएडा के जमीन घोटाले जो आईएएस अफसर आजकल जेल में सड़ रहा है, हकीकत यह है कि उसने अपनी पूरी जिन्दगी बेहद सादगी, सौम्यता और ईमानदारी के साथ निबाही है। इस शख्स का नाम है राजीव कुमार। केवल आईएएस और यूपी के किसी भी संवर्ग के किसी भी कर्मचारी-अधिकारी ही नहीं, बल्कि ठेकेदारी आदि सरकारी कामधाम से जुड़े किसी भी अधिकारी से बात कर लीजिए, राजीव कुमार को अपना सीना ठोंक कर बेहद शरीफ, कर्तव्यनिष्ठ और ईमानदार का तमगा लगा देगा। यह है राजीव कुमार की सार्वजनिक छवि। लेकिन यही राजीव इस समय डासना जेल में बन्दी है।

कैदियों की वर्दी पहन कर किसी सामान्य कैदी की तरह तीन साल की सजा अभी उन्हें काटनी ही पड़ेगी। जीवन तो हमेशा-हमेशा के लिए खत्म हो ही चुका है। इलाहाबाद में एक इंजीनियरिंग कालेज में लेक्चरर ने बताया कि एक बार कालेज में आयोजित एक कार्याशाला में उन्हें भाषण देना था। औपचारिकता के तहत इसी लेक्चरर की ड्यूटी राजीव कुमार को लाने और वापस ले जाने के लिए लगायी गयी थी। निर्धारित समय से पहले ही यह शिक्षक राजीव के बंगले पर पहुंचा। बाकी अफसरों के ठीक उलट राजीव के बंगले पर न कोई चौकीदार था और न कोई संतरी। घंटी बजायी। पता चला साहब पूजा कर रहे हैं। जहां अन्य प्रमुख सचिवों के घर पे नौकरों और होम गार्डों की फौज रहती है, इनके घर पे सिर्फ एक नौकर। उसी ने चाय पिलायी।

एक घंटे बाद राजीव कुमार निकले, और बोले:- “आप आये हैं लेने? तो फिर चलिये चलते हैं।” यह भी पूछा कि, “आप लेक्चटरर हैं। “

मैने जवाब दिया हां। तो बोले आप मेरे साथ मेरी गाड़ी मैं आइये। मैने कहा सर गाड़ी है। तो बोले गाड़ी पीछे लगवा लीजीये। मैं उनके साथ बैठा। पूरे रास्ते बातचीत हुई। उनको जब पता चला मैं आइएएस  की तैयारी कर पहा हूं तो बहुत खुश हुए और बोले की सेलेक्ट हो जाना तो मुझे सूचना देना। ऐसा लग ही नही रहा था की किसी इतने बड़े अफसर के साथ बैठा हूं। जब कालेज पहुंचे तो वहां भी वैसा ही व्यवहार। सबके साथ अच्छे से परिचय। जहां अन्य सीनीयर आईएएस अपनी नाक पर मक्खी नही बैठने देते ये अफसर बिल्कुल ही विपरीत थे।

यह तो रही राजीव कुमार की व्यबहारगत छवि। जो लोग जानते हैं, उनके मुताबिक ईमानदारी के मामले में भी राजीव कुमार बेमिसाल थे। एक वरिष्ठ अधिकारी ने उनके जेल जाने की खबर पर बहुत दुख व्यक्त  करते हुए कहा कि:- “जेल गया है वो भी सिर्फ इस गुनाह के लिये की उनकी बॉस एक डकैत महिला थी।

फिर सवाल यह है कि नीरा यादव के कहने पर अगर काउंटर-साइन राजीव ने किया तो फिर वह ईमानदार कैसे। मैंने राजीव कुमार के प्रशंसक एक अन्ये अधिकारी से यही सवाल पूछा कि:- “भले ही नीरा यादव के कहने पर राजीव कुमार ने यह अपराध किया, तो फिर उसे निर्दोष कैसे ठहराया जा सकता है?”

जवाब मिला कि इस मामले में राजीव अपनी सज्जनता, शालीनता, और वरिष्ठ के प्रति सम्मान के चलते फंसाये गये थे। प्रदीप शुक्ला तो खुद और आपनी कई पुश्तों के लिए मलाई चाटने के लिये अदालतों के चक्कर में पड़े थे, बल्कि राजीव कुमार ने कभी भी ऐसी ख्वाहिश नहीं की थी।

मैंने लपक कर पूछ लिया:- “फिर तो इसका मतलब यह होता है कि राजीव बेईमान नहीं हैं, लेकिन परले दर्जे के मूर्ख जरूर हैं। अब वह मूर्खता का आधार चेक करना पड़ेगा । यही न?” इस पर वह अधिकारी शांत हो गये, लेकिन उनके चेहरे पर राजीव कुमार के समर्थन जैसी कसमसाहट जरूर तैरती रही।

स्पष्ट है कि राजीव कुमार खुद भले बेईमान न हों, लेकिन बेईमानों के चारों-ओर अपना प्रभा-मण्डल मजबूत करने की कोशिश में उन्होंने अपनी वरिष्ठ अधिकारी नीरा यादव के चरणों का चुम्बन किया। यह मान कर नीरा यादव को अपनी अराध्य के तौर पर पूजने लगे, कि उनके भविष्य का कल्याण केवल नीरा यादव जैसे वरिष्ठ अधिकार ही करेंगे। ऐसे में वे अपने वे दायित्व और कानूनों को भी भूल गये जो उन्हें सरकार ने और जनता ने सौंप रखे थे। नतीजा, यह कि राजीव कुमार अब अपना बुढापा खराब कर रहे हैं।

अब आखिरी सवाल यह है कि आईएएस में कितने ईमानदार, सरल, योग्य और कुशल अधिकारी मौजूद हैं, जिनको अपना भविष्‍य अपनी क्षमता और कुशलता के बल पर नहीं, बल्कि नीरा यादव जैसे वरिष्ठों के इशारे का अंधानुकरण करना ही है? और अगर ऐसे लोगों की संख्या खासी ज्यादा है, तो फिर आप किस आधार पर आईएएस सेवा को बाबू जैसा लांछन कैसे लगा सकते हैं?

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लो देख लो, बड़े बाबुओं की करतूतें

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