: जिन्दगी एक पल में तबाह हुई, आपने उसमें ग्यारह साल लगा दिये : आपकी नाक के नीचे होती रही कानून की खरीद-फरोख्त, आप चुप : माफियाओं ने किया कानून का नंगा-नाच, जानता है बच्चा-बच्चा : : मी लार्ड ! न्याय की इस हालत पर हमें आती है इस व्यवस्था पर शर्म :
कुमार सौवीर
लखनऊ : आशियाना कालोनी में छह गुण्डों ने एक अल्पवयस्क बच्ची का अपहरण करके उसका सामूहिक दुराचार किया। गरीब परिवार की यह बच्ची आसपास के मकानों में झाडू-पोंछा लगा करने अपने परिवार की आजीविका हासिल करती थी। लेकिन एक पल में ही इस बच्ची की जिन्दगी तबाह हो गयी। इस हौलनाक हादसे में शामिल एक बिगडैल युवक राजधानी में एक बड़े बाहुबली से बने एक नेता का सगा भतीजा है। लखनऊ का एक-एक बच्चा, पत्ता-बूटा, अबोहवा तक गवाह है कि इस बाहुबली के बल पर ही पिछले 11 बरसों से न्याय की जमकर खरीद-फरोख्त होती रही। नेता इस पार्टी से उस पार्टी तक पाला बदलते रहा, वकीलों और पुलिसवालों की जेबें लगातार भरती रहीं, सरकारी अफसरों की जमीनें हर बार मजबूत होती गयीं। लेकिन इस पूरे दौरान वह मासूम बच्ची और उसका परिवार खून के घूंट पीता रहा।
मी लॉर्ड। आप तो न्याय के स्थापित देव हैं। फिर यह कैसे हो सकता है कि आपके हाईकोर्ट के शहर में यह हादसा हुआ और आपको भनक तक नहीं मिल पायी? चलो मान लिया कि हो सकता है कि आपको यह चीखें आपके कानों-दिमागों तक नहीं पहुंच पायीं। लेकिन फाइलें तो आपके सामने थीं। आप को ही पता था कि इस दर्दनाक हादसे की सुनवाई क्यों लटकायी जा रही है। क्यों? उस युवक को नाबालिग बनाने पर आमादा थे सरकारी अफसर, जिनहोंने किशोर न्यायलय बोर्ड में आनन-फानन कागज-पत्तार दुरूस्तल कराये और ऐलानिया कह दिया कि बलात्काआर का मुख्यद अभियुक्तन गौरव शुक्ला् एक मासूम और दुधमुंहा बच्चा है। मी लॉर्ड। क्यां आपको इस अंदेशे का अंदाजा नहीं हुआ कि वह कौन से कारण था, जिनके चलते सात साल तक किशोर न्याय बोर्ड के अफसर उस दुराचारी-बलात्कारी गुण्डे को मासूम और दुधमुंहा बचचा के तौर पर अपने पहलू में लेटे रखे। क्या आपके पास यह भी सवाल नहीं आया कि 25 मई-12 में जब आपने किशोर न्याय बोर्ड को यह आदेश किया कि इस युवक की उम्र जांच की जाए, इसके बावजूद दो साल बाद ही इस जांच का रिपोर्ट आयी जिसमें लिखा था कि उस हादसे के दिन तक गौरव शुक्ला पूरी तरह बालिग था।
मी लॉर्ड। क्या आपके संज्ञान में यह एक बार भी यह तथ्य नहीं लाया गया कि उम्र की जांच करने में ज्यादा से ज्यादा दो-चार-दस दिन से ज्यादा वक्त नहीं लगता है। इसके बावजूद इस पूरी कवायद में सरकारी अफसरों ने पूरा नौ साल केवल इसी जांच में खर्च कर दिया कि गौरव शुक्ला बालिग था या नहीं। और उस शर्मनाक हादसे के वक्त गौरव शुक्ला नामक उस वहशी बलात्कारी ने एक मासूम बच्ची का जीवन तबाह कर दिया। केवल अपने चाचा की हैसियत के बल पर।
मी लॉर्ड। क्या आपके सामने गौरव शुक्ला की स्कूली पढाई से जुडे़ कागजात नहीं पेश किये गये, जिसमें साफ-साफ दर्ज था कि गौरव शुक्ला की उम्र उस हादसे के वक्त 18 साल से ज्यादा थी। क्याक आपने यह नहीं देखा कि उस दुराचारी के हाईस्कूल के प्रमाण पत्र में उसकी उम्र का तस्करा साफ-साफ दर्ज है। क्या उस पूरे दौरान ऐसे कोई भी कागजात नहीं पेश किये गये जिसमें आपके सामने साबित तय किया जा सके कि गौरव शुक्ला ने अपनी उम्र को लेकर झूठ बोला, जबकि वह पूरी तरह बालिग था और उसने मानवता के चेहरे पर एक अमिट कालिख पोत दी थी।
मी लार्ड। हम लोग यह जानना के इच्छुक हैं कि इस पूरी की सुनवाई के दौरान बचाव के वकीलों का रवैया क्या उनकी वकालत-एथिक्स के हिसाब था। क्या वे वकील यह नहीं जानते थे कि गौरव शुक्ला सिरे से अपराधी है? लेकिन इसके बावजूद उन वकीलों ने उस बच्ची के खिलाफ षडयंत्र किया और एक खतरनाक अपराधी को बचाने का षडयंत्र किया।
मी लार्ड। यह चंद सवाल हैं जो आम आदमी जानना चाहता है, केवल आपसे ही नहीं, पूरी व्यवस्था से, आपकी न्याय व्यवस्था से, आपके काले कोर्ट वाली बिरादरी से। और खासकर लखनऊ की पूरी जनता से, कि यह सब जानते-बूझते हुए भी उन लोगों ने जन-दबाव नहीं बनाया और यह पूरा का पूरा मुकदमा एक माखौल सा बन गया। वह तो गनीमत रही कि प्रो रूपरेखा वर्मा, वंदना मिश्र और उषा विश्वकर्मा जैसी सक्रिय महिलाएं कई-कई बार सड़क पर उतरीं और उन लोगों के प्रयासों के चलते ही यह मुकदमा गौरव शुक्ला नामक उस हैवान के खिलाफ गया। और जैसी भी हुई, इंसानियत की इज्जत के चंद बचे टुकड़े न्याय और इंसानियत के बदन को ढांपे रखने के असफल प्रयास करते रहे। नाम का ही सही, लेकिन न्याय और इंसानियत बची ही रही।