चमार नहीं, हरिजन में सम्‍मान खोजने लगे हैं बसपा के दलित

दोलत्ती

: कठोर परिश्रम का प्रतीक हैं सुखलाल। महीने में दस दिन लखनऊ, बाकी दिन गांव में खेती : मायावती ने पूछा था कि क्‍या गांधी जी शैतान की औलाद हैं :
कुमार सौवीर 
लखनऊ : यह सुखलाल हैं। बहराइच के अरई गांव के रहने वाले। अरई के बारे में आपको शायद कोई खास जानकारी न हो, इसलिए हम आपको इस का पूरा ब्‍योरा बताये देते हैं, ताकि आपको यहां तक पहुंचने में सहूलियत हो जाए।
बहराइच से लखनऊ बढ़ते समय कैसरगंज से बस 5 किलोमीटर की दूरी पर है यह अरई गांव। घाघरा नदी का कछार से जुड़ा इलाका है यह। थाना लगता है फखरपुर। सरकारी बसों के हिसाब से लखनऊ से दो घंटे लगते हैं अरई गांव तक पहुंचने में।
लखनऊ की गोमती नदी के किराने बसे न्यू हैदराबाद पोस्ट ऑफिस के आसपास बनने वाले मकानों में मजदूरी करते हैं सुखलाल। वे तकरीबन 35 बरसों से लखनऊ के अस्‍थाई वाशिंदा होने का गर्व महसूस करते हैं। महीने में 10 दिन यहां लखनऊ में मजदूरी, और उसके बाद 20 दिन वे चले जाते हैं अपनेआशियाना बहराइच में। गांव में 6 बच्चे हैं उनके। एक पत्नी और बाकी बच्‍चे। अरे पूरा-भरा खानदान हैं।
उनके खुद के हिस्से में 8 बीघा जमीन है। उस पर खेती करते हैं सुखलाल। किल्‍लतें तो बनी ही रहती हैं, मसलन छुटका बेटा अब स्‍कूल जाने की जिद पाले रखे है। लेकिन प्राइवेट स्‍कूल में बच्‍चों को भेज पाना सुखलाल के वश की बात नहीं। इतनी खेती या मजूरी में इतनी कमाई तो होती ही नहीं है कि वे अपने बच्‍चों को मोटी रकम अदा कर प्राइवेट स्‍कूल में भर्ती करा पायें। आखिरकार कोई गुंजाइश भी तो होनी चाहिए, है कि नहीं।
छोटा परिवार का पेट भरने भर का पर्याप्त होती है खेती। बाकी लखनऊ से मजदूरी में कमाकर लेकर जाते हैं सुखलाल। परिवार और बच्चे का भरण पोषण के लिए साढ़े चार सौ रुपए की रोजाना मजदूरी के बाद उन्‍हें किसी दूसरी तरफ अपना मुंह मोड़ने की हैसियत ही नहीं जुटा पाती। हैसियत की सीमा में जो भी कमाते हैं । अपना पेट भरने के लिए बस ज्यादा से ज्यादा 60 रोजाना पूरा खर्च करता है। आटा एक साथ खरीद लेते हैं या गांव से ले आता है। सुबह खाली रोटी बना लेते हैं और दोपहर को किसी होटल से छोला सब्जी लेकर रोटी के साथ मालपुआ उड़ाते हैं। शाम को बढ़िया रोटी-सब्जी-दाल, और कभी-कभी मुर्गे की चीखें सुन लेते हैं। मसालेदार चीखें।
सुखलाल से मिलकर एक नई जानकारी मिली। आपको याद होगा कि आज से कोई 25 साल पहले मायावती ने एक नया शिगूफा छोड़ा था। उन्होंने कहा था कि हरिजन अगर भगवान की औलाद हैं तो गांधी तो क्या शैतान की औलाद थे। दरअसल, मायावती की राजनीति बसपा का वोट बैंक यानी चमार जाति उनके साथ अपने पूरे पहचान के साथ जुड़े रखने की थी। और इसमें गांधी दर्शन बाधा था। लेकिन सुखलाल के बयान से साफ हो गया कि बसपा का दलित हमेशा गांधी जी का ही दामन थामे रहेगा। चमार से बेहतर समझेगा हरिजन शब्‍द में खुद को सम्‍मान के लिए।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *