: दिल्ली के निर्भया-कांड गिरि इंस्टीच्यूट ऑफ सोशल साइंसेज के निदेशक पर लगा था नौकरानी से दुराचरण का आरोप : किसी को अपना भविष्य दिख रहा था, कुछ उपकृत होने की प्रत्याशी में थे, तो बाकी लोग मित्रता निभाने में :
कुमार सौवीर
लखनऊ : (गतांक से आगे) आपको याद होगा कई बरस पहले दिल्ली की एक डरावनी रात में एक बस पर सवार एक युवती के साथ भयावह दुराचरण, सामूहिक बलात्कार और नृशंस कांड हुआ था, जिसमें उस बच्ची की मौत हो गई थी। लेकिन मौत से पहले उस बच्ची ने अपराधियों से पुरजोर विरोध किया लेकिन हार गई। नतीजा, दुराचारियों ने उसे ऐसी भयावह मौत दे दी, कि सुनने वालों तक के रोंगटे दहल गये। लेकिन उसके मरने के बाद उस बच्ची को पूरे देश ने निर्भया नाम दिया गया, और प्रमुख न्यूज पोर्टल मेरी बिटिया डॉट कॉम ने उस बहादुर बच्ची को मेरीबिटिया के नाम पर से सम्मानित किया। उस हादसे के बाद महिलाओं और बच्चियों के साथ होने वाले दुराचरण के खिलाफ सरकार ने खासे कड़े कदम उठाए। सख्त कानून बना। देश-विदेश के समाज विज्ञानियों और जागरूक व्यक्तियों, संस्थाओं ने उस पर जबरदस्त प्रक्रिया की, और ऐसे सामाजिक कलंकों की आशंकाओं पर रोकने के लिए व्यापक शोध और सलाहें भी दी गयीं।
लेकिन उस पूरे सामाजिक अभियान को लखनऊ की पुलिस ने पूरी तरह कलंकित कर दिया। यहां के केंद्र व राज्य सरकार से वित्त-पोषित कर सामाजिक समस्याओं को खोजने का जिम्मा अपने कांधों पर रखे प्रख्यात गिरी सामाजिक अध्ययन केंद्र पर ही कलंक लग गया। केंद्र के निदेशक प्रोफेसर सुनील कुमार शर्मा पर अरोप लगा कि वहां काम करने वाली बच्ची से दुराचारण किया।
इतना ही नहीं, जब यह मामला खुला, और यह बच्ची तथा उसके पिता मामला दर्ज कराने के लिए पुलिस थाने पर पहुंचे, तो उसे उल्टे पांव वापस कर दिया गया। इतना ही नहीं, पुलिस ने इस गरीब बच्ची का मामला दर्ज करने के बजाय, पूरा मामला ही बेच डाला। संस्थान के एक शिक्षक का अारोप है कि पुलिस ने जांच के दौरान भारी रकम घूस के तौर पर उगाही। जाहिर है कि तब आरोप संस्थान के निदेशक प्रोफेसर राजेंद्र शर्मा का पूरा बचाव किया और एक ऐसा बेहूदा तथा एक-तरफा सुलहनामा तैयार कराया गया जो पाक्सो और बल्कि सामान्य छेड़खानी का मामला से कोसों दूर निकल गया।
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संस्थान के लिए एक वरिष्ठ शिक्षक ने बताया किया मामला जब सत्ता पर थाने के सामने पहुंचा तो प्रोफेसर सुरेंद्र कुमार शर्मा घबरा गये। उनके छक्के छूट गए। उन्होंने संस्थान के अपने करीबी शिक्षकों और करने अन्य कई और घनिष्ठ मित्रों से संपर्क साधा, पुलिस पर दबाव बनाया गया। इस पूरी कवायद में करीब 7 दिन लग गया। इसी बीच मोटी-ऊंची डील हो गयीं, तो पुलिस ने मामला अपने माथे से झटक लिया। और सुरेंद्र शर्मा को बेदाग वगीकरण साबित करना के लिए सुलहनामा तैयार कराया गया।
लेकिन इन सब बड़े बड़े लोगों ने मिलकर यह सारी कवायद ने तो पूरी कर ली लेकिन वे यह भूल गए उस बच्ची के भविष्य का क्या होगा। एक आग जो थाने से अदालत के रास्ते पूरे समाज में भड़क कर पूरी शिद्दत के साथ जवाब मांगने के लिए उठ सकती थी, उस पर बर्फ छिड़क कर उसे खामोश कर दिया गया। इन सब लोगों ने मिलकर निदेशक प्रो सुरेंद्र शर्मा की इस शर्मनाक जीत का जश्न मनाया। जश्न में शामिल सभी लोगों के अपने-अपने स्वार्थ थे। इनमें से कुछ को अपना भविष्य प्रोफेसर सुरेंद्र के हाथों में दिख रहा था, तो कुछ लोग उपकृत होने की प्रत्याशी में साथ थे, तो बाकी लोग अपनी मित्रता निभाने में सामने आ गये।
सूत्र यहां तक बताते हैं कि इस मामले में पुलिस की मुट्ठी प्रोफेसर सुरेंद्र ने जमकर गरम की। लेकिन हैरत की बात है कि उस बच्ची के प्रति हुए हादसे के बाद तैयार हुए इकतरफा सुलहनामा में उन मसलों का जिक्र ही नहीं किया गया जो उस बच्ची के प्रति प्रोफेसर सुरेंद्र के दुराचरण को लेकर था (क्रमश:)
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