घन घमंड गरजत चहुं ओरा: जेल में ठूंसे गये पत्रकार जुबैर

बिटिया खबर

: हृषिकेश मुखर्जी अगर जिन्‍दा होते, तो दिल्‍ली पुलिस उनको भी गर्दनिया देकर जेल में सड़ा डालती : आकाश में बादलों की गर्जना से मन डरने लग जाय तो क्या सोचें कि त्रेता है या कलयुग : पत्रकार-जगत में तेजी से काले बादलों को छांटने के लिए जनार्दन यादव का यह लेख वाकई आंख खोलने वाला है :

जनार्दन यादव

नई दिल्‍ली : सिनेमा जगत में एक महान डायरेक्टर रह चुके हैं हृषिकेश मुखर्जी। मुखर्जी जी ने सन-83 में एक बेमिसाल फिल्‍म बनायी थी, जिसका नाम था “किसी से ना कहना”। लेकिन आज तो वे अपनी जान की ख़ैर मना रहे होंगे। स्वर्ग में। वजह यह कि विश्‍वविख्‍यात बकलोल दिल्ली पुलिस की पकड़ उनके गर्दन तक नहीं पहुंची। दरअसल, फिल्‍म में एक देशी होटल के नामपट्ट में “हनीमून होटल”का अक्षरों में फेरबदल से “हनुमान होटल” किया दिखाया गया था। लेकिन सन-14 को ट्विटर पर दिल्‍ली के एक पत्रकार जुबैर ने मुखर्जी जी की इस फिल्म के एक दृश्य को उद्धृत करते हुए एक पोस्‍ट डाली थी। उन्‍होंने “संस्कारी होटल” का सांकेतिक प्रयोग करते हुए आज के हालात पर चुटकी ली गई थी। फिल्म में होटल मालिक नायक नायिका को बताता है कि उनके वक्त में हनीमून जैसी रिवायत नहीं थी इसलिए नाम बदल दिया। लेकिन दिल्‍ली पुलिस ने आज उसी करीब चालीस बरस पहले बनी उस फिल्‍म और करीब सात बरस पहले जुबेर की पोस्‍ट पर सांप्रदायिक बताते हुए उसे जेल में बंद कर दिया है।
आज जब हम बेगुनाहों को वहशी हिंदुत्ववादियों के हाथो जन गंवाते देखते हैं तो प्रश्न उठना लाजिमी हो जाता है। अंधविश्वास, अराजकता, नफरती तत्वों से समाज को बचाए रखने में प्रयत्नशील दिल्ली के जाने माने पत्रकार मोहम्मद जुबैर जो आल्टन्यूज पोर्टल चलाते हैं, को गिरफ्तार कर लिया गया। हिंदुत्व की पहलवानी पंचायती करने वाले लंगोटनी संतों को ये रास नहीं आ रहा था कि उनकी लंगोट की डोरी का डोरा कोई छुए।
27 जून सोमवार को दिल्ली पुलिस ने जुबैर को पूछताछ के लिए बुलाया। जुबैर पर जो मुकदमा दर्ज है उससे पुलिस पूछताछ तो कर सकती है गिरफ्तार नहीं, क्योंकि हाईकोर्ट ने गिरफ्तार न करने का आदेश दे रखा है। तब क्यों पुलिस एक गुमनाम ट्वीट के शिकायत पर जहां एफआईआर भी दर्ज नहीं है गिरफ्तार कर लेती है? प्रतीक सिन्हा जो पत्रकार जुबैर के साथी हैं उनका कहना है।

तुम फ्रॉड हो। मैनफोर्स-ब्रांड सनी लियोन को निहारोगे, नवरात्रि में मुंह बिचकाओगे

इमरजेंसी की ज्यादतियों को कोसते हैं परंतु बिना एलानिया इमरजेंसी के इमरजेंसी से भी बदतर हालात में आज देशवासी जी रहें हैं। गणेश छाप बीड़ी जलाकर धुआं फेकेंगे,राम तंबाकू चबाओगे तब हिंदुत्व की मर्यादा छिन्नभिन्न नहीं होगी। बंदर छाप मंजन रगड़ोगे तब हनुमान की आस्था आहत नहीं होगी। आस्था आहत होगी हनुमान होटल में हनीमून कोई कैसे मनाएगा तब। बदलते परिवेश में स्वयं को बदलिए,लोप होते लोकतंत्र को स्वस्थ बनाए रखने का पुरजोर प्रयत्न कीजिए। आज पत्रकारों की एक ऐसी जमात तैयार कर दी गई है जो नोटबंदी से लेकर अग्निपथ तक की नाकामयाबियों को उपलब्धियां बता बता कर जनता को बरगलाते हुए अपने आराध्य का गुणगान करती रहती है।
तीस्ता, श्रीकुमार, जुबैर, संजीव भट्ट, गौतम नवलखा, सुधा भारद्वाज, रोना विल्सन, कवि वरवर राव, आनंद तेलतवंदे, उमर खालिद, सिद्धि कप्पन आदि को राजद्रोह, धर्म का अपमान, आतंकवाद, वैमनस्‍य फैलाने जैसे आरोपों की आड़ में जेल के सिकचों में बंद कर दिया जाता है। जिन धाराओं में पत्रकार जुबैर को गिरफ्तार किया गया है उन्हीं धाराओं में नूपुर शर्मा, नवीन जिंदल, यति नरसिंघान्द पर मुकदमें दर्ज है. पर उनमें कोई गिफ्तार नहीं हुआ। शासन के साथ गलबहियां डाले वे छुट्टे घूम रहे हैं।

गरबा: उजालों की आड़ में छिपा एक अंधा खेल

पत्रकार जुबैर ने 83 में बनी फिल्म के एक दृश्य में एक देशी होटल के नामपट्ट में “हनीमून होटल”का अक्षरों में फेरबदल से “हनुमान होटल” किया दिखाया गया था। “संस्कारी होटल” का सांकेतिक प्रयोग करते हुए आज के हालात पर चुटकी ली गई थी ट्वीट के माध्यम से, फिल्म में होटल मालिक नायक नायिका को बताता है कि उनके वक्त में हनीमून जैसी रिवायत नहीं थी इसलिए नाम बदल दिया।
दिलचस्प तो यह है कि इस ट्वीट पर शिकायतकर्ता का नाम पता भी साफ साफ नहीं है। पुलिस इसी शिकायत को आधार बनाकर गिरफ्तार कर ली है। कई साल पहले के ट्वीट पर हंगामा खड़ा करना, असल व ज्वलंत मुद्दों को भटकाना नहीं तो और क्या है।
“प्रियाहीन डरपत मन मोरा”। हद हो गई है भाई,,,आकाश में बादलों की गर्जना से मन डरने लग जाय तो क्या सोचें कि त्रेता है या कलयुग,,,

(आल्‍ट न्‍यूज के सह-सम्‍पादक मोहम्‍मद जुबैर की गिरफ्तारी साबित करती है कि सहमति और असहमतियों पर सरकारी नजरिया दरअसल सत्‍ता की रुचि तक सिमट गयी है, और उसमें सच या झूठ और सहमति और असहमति के तर्कों को नहीं खोला, समझा या झिंझोड़े जाने की जरूरत नहीं समझती है सरकार और सरकार की पुलिस। इतना ही नहीं, आज के माहौल में तो मनमर्जी व्‍याख्‍या बुनने और उस पर हिंसक कवायद करने पर आमादा है। पत्रकार-जगत में तेजी से काले बादलों को छांटने के लिए जनार्दन यादव का यह लेख वाकई आंख खोलने वाला है।
लेखक जनार्दन यादव बीएसएफ के पूर्व अधिकारी हैं और सेवानिवृत्‍त होने के बाद पत्रकारिता में सक्रिय हो गये हैं। अब अगर श्री यादव से सम्‍पर्क करना चाहते हैं तो उनका 9968582278 नम्‍बर नोट कर लें। )

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