पीएन ओक कौन? तेजोमहालय का झगड़ा सिर्फ बकवास

बिटिया खबर

: आजाद हिन्‍द फौज की इकलौती जीवित सेनानी मानवती आर्य से बातचीत : नेता जी के साथ बर्मा को छान मारा था मानवती ने : ताजमहल बनाम तेजोमहालय का विवाद सिर्फ बकवास : पीएन ओक एक घटिया, फर्जी और झूठा कहानीकार :
कुमार सौवीर
कानपुर : आपने ताजमहल पर छिड़े ताजा विवाद के बारे में तो खूब सुना ही होगा। वही ताजमहल, जिसे अपनी पत्‍नी मुमताज की याद में तब के शाहंशाह शाहजहां ने बनवाया था। यह खूब सुना होगा कि कभी दुनिया का सातवां अजूबा रहा आगरा का ताजमहल दरअसल एक हिन्‍दू मंदिर था, जिसे मुसलमानों ने तोड़ कर मकबरे के तौर पर विकसित कर दिया। आपको यह भी खूब पता होगा कि मरहूम साहित्‍यकार-इतिहासकार पुरूषोत्‍तम नागेश ओक ने ताजमहल को तेजोमहालय करार दिया था।
आपको सब कुछ पता हो सकता है, लेकिन आपको यह तनिक भी पता नहीं होगा कि दरअसल पुरूषोत्‍तम नागेश ओक का नाम ही नहीं सुना है मानवती आर्य ने। मानवती को पता ही नहीं है कि यह पीएन ओक यानी पुरूषोत्‍तम ओक कौन हैं। जिनके किसी शोध का सार-सारांश यह है कि ताजमहल दरअसल एक हिन्‍दू धार्मिक इमारत है, और ताजमहल के बनने के पहले वहां भोलेनाथ शिव-शंकर महादेव का एक विशाल मंदिर हुआ करता था। लेकिन मुसलमान आक्रांताओं ने उस मंदिर को ढहा कर वहां ताजमहल बना डाला।
काफी दिलचस्‍प कहानी है पीएन ओक यानी पुरूषोत्‍तम नागेश ओक की। और उससे भी दिलचस्‍प कहानी है मानवती आर्य की। ओक का निधन हुए सात बरस बीत चुका है, जबकि मानवती आर्य जी कानपुर के नवाबगंज स्थित पत्रकार-पुरम में रहती हैं। आइये, हम आपको इन दोनों शख्सियतों के बारे में खुलासा कर दिये देते हैं। बीती 26 दिसम्‍बर-19 को मानवती आर्य ने अपना नश्‍वर शरीर त्‍याग दिया है। उनकी आयु 100 वर्ष हो चुकी थी। लेकिन जब हमने उनसे भेंट की, उस समय उनकी आयु 97 बरस थी। मानवती जी से मिलने के लिए प्रमुख न्‍यूज पोर्टल www.dolatti.com की ओर से हम उनके आवास कानपुर पहुंचे। साथ थे लखनऊ में मेरे साथी रंजीत पांडेय।
आपको बता दें कि मानवती आर्य जी नेताजी सुभाषचंद्र बोस के आह्वान पर आजाद हिन्‍द फौज में शामिल हुई थीं। अपनी भारत में मुस्लिम सुलतान नामक एक पुस्‍तक में दिये गये अपने परिचय में खुद की शिक्षा मुम्‍बई से एमए और एलएलबी तक की शिक्षा का ब्‍योरा दिया है। उसके बाद एक बरस तक अध्‍यापन के बाद सेना में भर्ती का भी ब्‍योरा है। लेकिन द्वितीय विश्‍व युद्ध में सिंगापुर में तैनात रह चुके हैं ओक जी, जैसा कि ओक जी ने लिखा है। उन्‍होंने लिखा है कि अंग्रेजी सेना के समर्पण के बाद उन्‍होंने आजाद हिन्‍द फौज की स्‍थापना में भाग लिया। सैगोन में आजाद हिन्‍द रेडियो के निदेशक के तौर पर भी काम किया। विश्‍वयुद्ध की समाप्ति के बाद बर्मा समेत कई देशों के जंगलों में भ्रमण किया और वे कलकत्‍ता पहुंचे। सन-47 से 74 तक पत्रकारिता की, जिसमें हिन्‍दुस्‍तान टाइम्‍स तथा स्‍टेट्समैन में काम किया। फिर भारत के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय में अधिकारी रहे। फिर अमरीका दूतावास की सूचना सेवा में काम किया।
विकीपीडिया के अनुसार ओक आजाद हिन्‍द फौज के संस्‍थापक नेताजी सुभाषचंद्र बोस जी के सहायक रहे और जनरल जेआर भोंसले के एडीसी रहे। लेकिन सच यह नहीं है जो विकीपीडिया में दर्ज है। कम से कम मानवती आर्य जी से हुई हमारी भेंट से इतना तो तय ही हो गया कि पीएन ओक एक फर्जी और झूठी कहानी बुनने वाला कारीगर है, जिसने इतिहास को कलंकित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
अब आइये, हम आपको मिलाते हैं मानवती आर्य जी से। फैजाबाद के एक गांव में जन्‍मी मानवती अपने सरकारी अधिकारी पिता के साथ बर्मा के रंगून में रहती थीं। पढ़ाई में अव्‍वल मानवती जी शुरू से ही आजादी की मतवाली थीं। अचानक उन्‍होंने आजाद हिन्‍द फौज के नेताजी सुभाषचंद्र बोस को सुना, तो जोश से भर गयीं। परिवार ने भी कोई अवरोध नहीं किया, और मानवती जी फौज में शामिल हो गयीं। जल्‍दी ही वे नेता जी की करीबी बन गयीं। और उसके बाद आजादी तक वे लगातार फौज के लिए ही काम करती रहीं। नेताजी का नाम सुनते ही मानवती की आंखें भर जाती हैं।
मानवती जी को आज सुनने में काफी दिक्‍कत होती है। इसीलिए हमने कागज पर लिख कर अपने सवाल पेश किये। मेरी मदद की मानवती जी की पुत्रवधू ने। हमने पूछा कि क्‍या वे पुरूषोत्‍तम नागेश ओक को जानती हैं, अथवा आपने उनका नाम सुना है। यह भी पूछा कि क्‍या ओक जैसे किसी नाम-राशी शख्‍स का नाम फौज के संस्‍थापकों में रहा है, अथवा फौज के रेडियो के निदेशक रह चुके हैं ओक जी। मानवती जी ने साफ इनकार कर दिया। उनका कहना था कि ऐसा कोई भी शख्‍स मेरे जीवन में नहीं रहा, न मैंने उनका नाम सुना है, और न ही फौज के संस्‍थापकों में से ऐसा कोई शख्‍स रहा है। उन्‍होंने यह भी इनकार किया कि नेताजी के सेगौन रेडियो में निदेशक के तौर पर कोई भी शख्‍स रहा।
इतना ही नहीं, हमने मौके का लाभ उठाते हुए यह पूछ लिया कि तब बर्मा में रोहिंग्‍या मुसलमानों की क्‍या हालत थी, मानवती जी ने बताया कि तब रोहिंग्‍या मुसलमान छिट-पुट ही थे। उनकी कोई बड़ी बस्‍ती भी नहीं थी। पूरी शान्ति रहती थी बर्मा में। कोई भी अशांत भाव कभी भी नहीं सुना गया। आज वहां की हालत के बारे में उन्‍होंने साफ कहा कि उन्‍हें इस बारे में कोई भी जानकारी नहीं है।

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