: अंग तो प्रत्यक्ष है, अब जरा यह भी बताना जरूर कि दिमाग कैसा होता है : मेडिकल कालेज में दाखिला के पहले दिन शालिनी जब गर्भाशय देखा तो दंग रह गयी : आइये इस बाप-बिटिया की संवेदनशीलता और उनके पत्राचार शैली को आंकिये :
कुमार सौवीर
लखनऊ : बहद्दर बिटिया चाहिये ? तो आइये ना बलिया। हम यहां आपको दिखायेंगे अपनी बिटिया। नाम है शालिनी यादव। फोटो में सबसे दाहिनी ओर।
लेकिन पहले शालिनी के बारे में मोटी-मोटा बात समझ लीजिये। शालिनी यादव पिछले सीपीएमटी परीक्षा में 98वीं नम्बर पर आयी। आजमगढ़ मेडिकल कालेज में उसे प्रवेश मिला और अब जल्दी ही हमारे खानदान में एक डॉक्टर शामिल हो जाएगी। लेकिन सर्वाधिक महत्वपूर्ण खबर तो यह है कि पूरे बलिया में यादव-कुनबे की इकलौती बिटिया हमारी ही है, जिसने डॉक्टरी में प्रवेश लिया है।
अरररररररररररररर्रे। सॉरी। मैं शालिनी के पिता के बारे में तो बताना ही भूल गया। आप जनार्दन यादव को तो खूब जानते ही होंगे ना। अरे बीएसएफ वाले जनार्दन यादव। जनार्दन यादव आजकल खुद को पत्रकारिता की भट्ठी में होम हो चुके हैं। पूरा देश छान रहे हैं, मित्रता, रिश्तेदारी निपटाय रहेे हैं। इंटरव्यू भी ले रहे हैं, रिपोर्ट्स लिख रहे हैं। मतलब यह कि जो काम उन्होंने कभी नहीं किया, वही कर रहे हैं। शालिनी उन्हीं जनार्दन की बिटिया है। लेकिन बपौती तो हम-आप की है उस बिटिया पर।
खैर, असल चर्चा तो शालिनी की जिज्ञासा को लेकर है। इंटर पास होते ही उसे सीपीएमटी में प्रवेश मिला था। नयी-नयी उमंगें, नये-नये हौसले, नयी-नयी जिज्ञासाएं। आज उसने अपने मेडिकल कालेज में ऑटोनोमी क्लास की मेज़ पर डिसेक्शन के दौरान गर्भाशय का हिस्सा देखा, तो चकित रह गयी। अपने इस नये ज्ञान को उसने फौरन अपने पिता को ह्वाट्सअप में तस्वीर समेत भेज दिया।
अब जानते हैं कि इस अहीर-श्रेष्ठ ने उसे क्या ज्ञान दिया ? आप सुनेंगे तो अपने दांतों तले जीभ दबा देंगे। बिलकुल कृष्ण के गीता उपदेश की तरह। उसने लिखा:- “भाग्यशाली हो, जो भगवान की बनायी कृति का अध्ययन और उसे समझने का मौका मिला है तुम्हें।
” हम तो केवल कल्पना मात्र ही कर सकते हैं कि अमुक-अमुक अंग कौन-कौन हैं।
“लेकिन मेरी प्यारी बिटिया, जरा यह भी बताना जरूर, कि दिमाग कैसा होता है।”
वाकई, मैं तो अभिभूत हूं। कायल हूं, इस बाप-बिटिया की संवेदनशीलता और उनके पत्राचार शैली पर।