: मौत के बाद भी होती रही चौधरी की सम्पत्ति से धोखाधड़ी : उन दिनों में भी कार्यकारिणी में बदलाव हुआ, जब चौधरी ऑपरेशन-टेबल पर बेहोश थे : फारेंसिक जांच में भी साबित हो चुकी है दिग्गज भाजपाई ओमप्रकाश सिंह परिवार की धोखाधड़ी : सरदार पटेल डेंटल कालेज को चबा डाला बड़े भाजपा नेता ने (तीन)
कुमार सौवीर
लखनऊ : निजी, समाज और राजनीति में शुचिता, सचाई, संकल्प और निष्ठा का राग अलापने वाले कुछ भाजपाइयों की असलियत परखनाा हो तो सीधे यूपी के पूर्व सिंचाई मंत्री ओमप्रकाश सिंह के परिवार की गतिविधियों में झांकिये। एक महान शिक्षा संस्थान के संस्थापक ओपी चौधरी की मौत के बाद जिस तरह उसकी पत्नी और उसकी दोनों बेटियों को इस परिवार ने दर-दर का भिखारी बना डालने में कोई कसर नहीं छोड़ी। यह कहानी है लखनऊ के सरदार पटेल डेंटल कालेज का, जहां उसके संस्थापक की मौत के बाद लूट-पाट का वह घिनौना खेल खेला गया, कि आत्मीय सम्बन्ध और विश्वास हमेशा-हमेशा के लिए दफ्न हो गये। अब हालत यह है कि ओपी चौधरी के खानदान के हर एक सदस्य को इस कालेज से या तो बर्खास्त कर दिया जा चुका है या फिर उन्हें कार्यकारिणी समिति से निकाल दिया गया है।
सूत्र बताते हैं कि यह सब कुछ एक साजिश के तहत हुआ। कार्यकारिणी समिति में तब्दीलियां तब की गयीं जब चौधरी या तो मृत्यु शैया पर थे या फिर उनकी मौत हो चुकी थी। कई बार तो तब भी घोटाले किये गये जब पीजीआई में चौधरी का ऑपरेशन चल रहा होता था, और उसके बाद वे लगातार चौबीसों घंटों तक बेहोश रहे, लेकिन अनुराग सिंह और उनकी चौकड़ी ने उन तब्दीलियों के रजिस्टर पर ओपी चौधरी को मीटिंग में उपस्थित दिखा कर उनका फर्जी दस्तखत तक बनवा लिया। “अनुराग सिंह ऐण्ड कम्पनी ” द्वारा तैयार की गयी वसीयत के मुताबिक ओपी चौधरी ने अपनी सारी चल-अचल सम्पत्ति का इकलौता वारिस अनुराग सिंह की पत्नी स्नेहलता सिंह के नाम दिया था, जो ओमप्रकाश सिंह की बहू हैं। इस वसीयत में चौधरी ने अपनी पत्नी रामदुलारी चौधरी को और उनकी दो बेटी डॉक्टर सरिता और सुधा कटियार को अपनी सम्पत्ति से बिलकुल बेदखल कर दिया।
जाहिर है कि यह एक बड़े पैमाने पर हुई धोखाधड़ी का मामला था। सूत्र बताते हैं कि “अनुराग सिंह ऐण्ड कम्पनी ” ने चौधरी की जो झूठी वसीयत तैयार की, इसलिए यह कम्पनी उस वसीयत को रजिस्टर्ड भी नहीं करा पायी। जिस तारीख को इस वसीयत बनाने का दावा और कागजात तैयार किया गया है, उसके पिछले दस दिनों से पीजीआई के कागजातों के मुताबिक ओपी चौधरी बेहोश चल रहे थे। इस दिन के बाद के दो दिनों बाद ही चौधरी कोमा के चलते वेंटीलेटर पर चले गये थे।
इस झूठ और धोखाधडी का खुलासा तब हो गया जब सब-रजिस्ट्रार ने इस वसीयतनामा की जांच के बाद उसे पंजीकृत करने से इनकार कर दिया। सब-रजिस्ट्रार ने इस वसीयत के अभिलेख और गवाहों के परीक्षण के बाद पाया कि ओपी चौधरी के जीवन-काल में उस वसीयत का निष्पादन नहीं हुआ था। इतना ही नहीं, उस तथाकथित वसीयत के कागजातों में गवाह के तौर पर जिन दो लोगों का नाम गवाह के तौर पर दर्ज हुआ बताया गया है, उसे भी सब-रजिस्ट्रार ने संदिग्ध और अन्तर्विरोधी पाया। ऐसी हालत में सब-रजिस्ट्रार ने उस वसीयत के दस्तावेज को रजिस्टर करने से साफ इनकार कर दिया। (क्रमश:)
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