गणतंत्र-दिवस: नाफ़रमानी-मूवमेंट की प्रतीक आइएएस बी चन्द्रकला

बिटिया खबर
: नौकरशाहों तो कसमें गणतंत्र के नाम पर खाते हैं, लेकिन संविधान की आत्‍मा को दुत्‍कारते रहते हैं : खनन-मामले वाली चन्द्रकला ने कल प्रवर्तन निदेशालय को ठेंगा दिखाया था :

कुमार सौवीर
लखनऊ : गणतंत्र पर गाल बजाते लोगों को आपने खूब देखा होगा। खास तौर पर नौकरशाहों को, जो कसमें तो गणतंत्र के नाम पर खाते हैं, लेकिन संविधान की आत्‍मा को किसी अपृश्‍य की तरह दुरदुराते रहते हैं। आजादी का जितना नंगा नाच इन अफसरों ने किया है, उसका शतांश उनके आका यानी नेता नहीं कर सकते। ऐसा हर्गिज नहीं कि नेताओं में ऐसा बढ़-चढ़ कर नग्‍न-नृत्‍य करने का माद्दा नहीं है, बल्कि सच बात तो यह है कि नेताओं के पास आज भी दायित्‍व का बोध मौजूद है जो उनकी जनता के सामने अपना मुंह दिखाने पर मजबूर कर देता है। आप उसे जन-दबाव भी कह सकते हैं।
जबकि नौकरशाही का बेलगाम अंदाज उसे रोज-ब-रोज स्‍वयं को निर्वस्‍त्र करता ही रहता है। जैसी कथनी, वैसी करनी वाली कहावत आप-सब ने हमेशा सुनी होगी, मगर आज हम आपको दिखाए देते हैं। असहयोग आंदोलन यानी नाफ़रमानी-मूवमेंट का ताजा साक्षात प्रतिमा बन चुकी हैं ईंट से ईंट बजाने वाली हाई-फाई आइएएस अफसर, यानी सोशल-साइट्स की बेमिसाल शाहकार बी चन्द्रकला।
अरबों के खनन-घोटाले में फंसी बी चन्द्रकला ने कल प्रवर्तन निदेशालय को ठेंगा दिखा दिया। साफ संकेत दिया कि तुम्हारा हुक्म माने हमारी जूतियां। नहीं आऊंगी तुम हरामखोरों के दरवज्जे पर, जो मन आये, करते रहना। तुम्‍हारी जितनी औकात थी, उस भर तवज्‍जो दे चुकी हूं मैं तुमको। जितने भी कागत-पत्‍तर हाथ में समा सकते थे, उतने कागज अपने वकील के माध्‍यम से मैंने तुमको भेज कर थमा दिया है। अब तुम जानो, और तुम्‍हारा काम जाने।
हैरत की बात है कि इस मामले में चंद्रकला ने कोई भी ऐसा कोई कारण नहीं दिया है, जिसमें साफ हो सके कि चंद्रकला ने प्रवर्तन निदेशालय की नोटिस का नाफरमानी किस आधार पर की।
अब यही हरकत अगर कोई आम आदमी कर बैठता, तो यही अफसर लोग उस पर तेल-पानी लेकर चढ़ जाते।

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